Customise Consent Preferences

We use cookies to help you navigate efficiently and perform certain functions. You will find detailed information about all cookies under each consent category below.

The cookies that are categorised as "Necessary" are stored on your browser as they are essential for enabling the basic functionalities of the site. ... 

Always Active

Necessary cookies are required to enable the basic features of this site, such as providing secure log-in or adjusting your consent preferences. These cookies do not store any personally identifiable data.

No cookies to display.

Functional cookies help perform certain functionalities like sharing the content of the website on social media platforms, collecting feedback, and other third-party features.

No cookies to display.

Analytical cookies are used to understand how visitors interact with the website. These cookies help provide information on metrics such as the number of visitors, bounce rate, traffic source, etc.

No cookies to display.

Performance cookies are used to understand and analyse the key performance indexes of the website which helps in delivering a better user experience for the visitors.

No cookies to display.

Advertisement cookies are used to provide visitors with customised advertisements based on the pages you visited previously and to analyse the effectiveness of the ad campaigns.

No cookies to display.

Ram Raksha Mishra Vimal

– रामरक्षा मिश्र विमल

भिनसहरा, करीब तीन बजे. साफ-साफ मुँह अभी नइखे चिन्हात केहूँ के अँजोरो. चन्दा आपन लुग्गा-फाटा बन्हली मोटरी अस आ कान्ही प धइके निकलि गइली पिछुवारी मिहें. नइहर से थेघ पहिलहीं टूट गइल रहे, एहसे फुआ ओरि डेग बढ़ावे शुरू कइली. मन से ई चिन्ता हटि गइल रहे कि केहू का कही. सात बरिस के रहली त एक बेरि फुआ किहाँ गइल रही, आजु दोसरकी पारी हऽ.

सुरुज का उगते दिशा-दिशा चमचमा गइलि. लइकाह सुरूज के अब पाम्ही आवे लागल रहे कि ओही वयस के चन्दा अपना फुआ का गरे लागि के भेंट करे लगली. आ फूआ हो फूआ….ओ हो हो हो !…..आ….चुप रहु बचिया….अब चुप हो जो !…. के सुर गूँजे लागल. सुरूज के बुझाइल जे चन्दा से उनुकर ई असंभव संजोग छने भरि के बा, एह से ऊ लोर पोंछत आपन गति तेज कइले.

फुआ, अब ना रहबि ओहिजा. अपना से दूर कइके बहुत दिन अलगा रखलू , बाकिर अब ई ना चली. अन्हारा इनार में ढकेलि के तनी खबरियो नइखू लेत ? चन्दा के ओह भेष में देखि के फुआ पूरा ठीक से चीन्हि ना पवली. आठ-नौ बरिस में चेहरा आ देंहि-धाजो में ढेर बदलाव आ गइल रहे. बाकिर, चिन्हला का बाद उनुका साफ-साफ बुझा गइल कि ई भागि के आवतिया. बाकिर, जसहीं ओकरा डहकत करेजा के सुर उनुका कान में परल, उनुकर खीसि जइसे पिघलि के आँखी मिहें बहे लागलि – का दुख भइल हा ए बचिया ? बताउ हमरा से. ऊ त तोरा के अपना परानो से जिआदे मानत रहले हा. फुआ चन्दा के लोर पोंछत पुछली. गाँव के लोग लगा-बझा देले हा ए फुआ कि ऊ अब सेयान भइलि , तनी आँकुश लगावऽ ओकरा पर. फुआ, खाली साँझ-सबेर पिछुवारी जाइल छोड़िके , जबसे हम सेयान भइनी आजु तक चौकठ से बहरी डेग नइखीं डलले. ई जनतो, गाँव के
कान भरला प ऊ हमरा के बड़ी मारि मरले हा. काल्हे हमरा बुझाइल जे मरद अतना कठोरो होखेले सऽ. अब त सोचि लेले बानी कि भलहीं डूबि के मरि जाइबि बाकिर ओह अङना लात ना लगाइबि. ओहिजा अब जाई त हमार रंथिए जाई. अतने बता के चन्दा सिसके लगली.

जाए द ए बाची, जवन लिलार प टँका गइल रहेला, तवन कतनो जतन कइला प मिटके ना. आ, गाँव के लोग के जे तू कहतारू, ओह लोग के
कवनो दोष नइखे, दोष बा संसार में मेहरारू के जनमे लिहला के. बेटी के जनम होला त घर उदासी के अन्हरिया में डूबि जाला आ बेटा का जनम प अतना ना छीपा बाजेला कि खुशी हाला-गरगद्द में बदलि जाले…… तू एहिजे रहऽ , ऊ अइहें नू ! हम पूछबि उनुका से कि काहें दुख देतारे हमरा बेटी के. चुप रह…. फुआ चुप करावे लगली चन्दा के.

रोअला-धोअला के बाद फुआ-भतीजी दु-दु कवर खाइल आ सुति गइल लोग. चन्दा के त पहिले निनिए ना लागत रहे , बाकिर जब लागलि त सपना में सउनाए लगली.

ठीक गधबेरि. दिन आ राति के सीमा-रेखा प चढ़िके ऊ घूमे निकलल बाड़ी. रोज-रोज नियन आजो उनुकर भावुक मन जंगले ओरि घींचि ल आइल बा. ओह जंगल के लमहर-लमहर आ मरखाह जानवरन के अउलई से भयावह भी कहल जाई , बाकिर निडर लोग खातिर जो मनमोहक ना कहल जाई त लागता जे अन्याय हो जाई. किसिम-किसिम के फूल-पत्ती कहीं फेड़न के बीच त कहीं बैरकंटियन में सीना तनले हँसत-मुस्करात लउकता, त अनासे मन ओनिए खिंचा जाता. सहकल बयार के झुरझुराते मस्त हो गइली चंदा. जंगल का सुनराई में भुला गइली ऊ. अनासे जब
उनकर नजरि अपना आगा एक ओरि पाँकी प गइल त एगो फूल लउकल , भूल से केहूँ के लात पड़ गइल रहे ओपर. काहें दो ऊ ओके उठाके सूँघे लगली जबकि बन में ओइसन कतने गुलाब के टटका फूल मिलि जइते सन.

फूल अबहुँओ ओही तरे गमगमात रहे. टप…..टप…..टप…..आँ…ई कइसन आवाज ? उनकर धियान अपना पीछा से आवत आवाज ओरि गइल , त ऊ फिरि के पीछे ताके लगली. ऊ कवनो घोड़ा रहे जवन दउरत चलत आवत रहे , ओ पर के सवारो फइलँवे से लउकत रहे. घोड़ा रुकल आ चंदा के पँजरा रुकल. दू अनजान नयन मिलल. भाई साहब के जवन हाल होखे , चंदा चिहइली जरूर , बाकिर तनि गइली, डेरइली ना. उनुका कथियो के डर थोरे रहे , बाबूजी ओह इलाका के नवाब रहन.

भाइएजी के मुँह पहिले खुलल – अपने के एह सुनसान…..जंगल में…..आपन परिचय… ? उनुका हबड़ाइ के बोलला से चंदा ना हबड़इली आ आपन
परिचय दिहली. पहिले परिचय के आदान-प्रदान , फेरु बात प बात. बाते-बाते दूनो आदमी के भीतर परेम के अंकुर फूटल आ जलदिए पोढ़ो हो गइल. ऊ लोग एक दोसरा के प्यार में खो गइल. प्यारे कहल ठीक होई काहें कि ओह जुवक-जुवती का मिलन से फूलो पत्ती लजाके सिकुरि गइली .

चंदा अपना प्यार का संसार में बिचरत रहली. उनुकर नजरि जब अपना आगा गइलि त एगो हाथी लउकलि. ओकरा चाल से बुझात रहे कि पगलाइलि ह. डेरा के अतना ना जोर से ऊ अचकचइली कि उनुकर नीनि टूटि गइलि.

ऊ सोचे लगली – ओह ,आजु काहें के हम ई दुख भोगितीं जो बाबूजी के तनिको दया आइल रहित. अउर कुछ ना त कम से कम बूढ़ से बियाह त ना कइले रहिते……. चंदा रोवे लगली. अचानक उनकर धियान दोसरा ओरि हो गइल. ऊ सोच-विचार का नदी में डूबे उतराए लगली – ई सब मन में लेइयो आइल पाप हऽ का त. राम-राम ! कतना गिरि गइलि बिया हमार मति ……..ओह…… बाकिर सपना के मन परते उनुकर आँखि भरि-भरि आवे आ हियरा के पीर फूटि के बहे लागे.

ईहे क्रम चलत रहे उनुकर तले केवाड़ी खटखटाइलि. ऊ उठली आ “के हटे?” कहत केवाड़ी खोलि दिहली. आगा देखतारी त पतिदेव खड़ा बानी. पहिले त अचकचइली बाकिर पीछे लवटि अइली आ फुआ के जगवली. फुआ बड़ा आदर सत्कार कइली उहाँ के. बाद में पूछली – ए पाहुन
रउरा से छिपल नइखे कि बचिया कइसन हटे. आठ-नौ बरिस बीत गइल ओकरे सङे, बाकिर तबो कहला-सुनला में परिके रउँवा बचिया के मरलीं हा. भला बताईं . एक त ओकर बियाह अनमेल हो गइल, दोसरे जो रउँवा असहीं खिसियात रहबि ओकरा पर, त कइसे जीही ऊ? उनुका आँखि में लोर नाचे लागल – ” बाप-मतारी किहाँ ना जाले. का जाउ ओ लोग किहाँ , जे साते बरिस पर ओकरा के बेंचि दिहल. तनिको माया-मोह ना लागल. आ एगो हमार करेजा कि रोवे लागलि हा. बचिया त बुझाइल हा कि करेजा फाटि के टूके टूक हो जाई. ए पाहुन, रउँवे बताईं, अब ओकर अलम्म त एगो हमहीं नु बानी…..ईहे नु ओकर नइहर बा…… ?

“ईहे सब सोचिके हम रउँवा किहाँ अइलीं हा, काहें कि ऊ स्वाभिमानी हई , नइहर कदापि ना जा सकसु.” अपना स्वामी का मुँह से अपना के स्वाभिमानी सुनि के चंदा का आँखि से झर-झर लोर झरे लागल. केवाड़ी का अलोता लुकइले ऊ सोचे लगली – ” ओह कतना नीक बाड़े हमार मालिक. कतहत बड़ गलती हम कइलीं जे भागिके एहिजा चलि अइलीं , आ ऊ अइसन जे एको शबद बोलले हा न , बलुक हमरा स्वाभिमानता पर खुश बाड़े. हम कइसन नीच बानी जे उनुका के गलत समझ लेले बानी. चाहे बूढ़ होखसु भा लरिका, हमरा भागि में ऊहे लिखा गइल बाड़े पति, त हमरा उनुके के भगवान समझे के चाहीं.” उनुकर सोच-विचार के गति तनी धीम भइल त सुने लगली अपना साजन के बात. ऊ कहत रहले – “देखीं हम करीं का ? साँच पूछीं त हमार ढेर दोष एह में नइखे. चंदा के हमहूँ अपना बेटी अस मनितीं बाकिर माई के हठ पर बियाह करे के परल. एक ओरि ओकर जान रहे आ दोसरा ओरि हमार बियाह आ ऊहो चंदे के सङे. हम मजबूर रहीं. भइल ऊहे जवन भगवान के मजूर रहे. चंदा का अतना कष्ट उठावे के परल हमरे गलती से. ऊ माफ कऽ देसु हमरा के. अब फेरु ना होई अइसन.” ऊहो बेचारे डबडबा गइलन.


( हिंदुस्तान,पटना,२० अप्रैल १९८९ में प्रकाशित. )


अँजोरिया पर विमल जी के पुरान रचना

2 Comments

  1. आशुतोष कुमार सिंह

    जिनगी में अगर केहू के अल्लम मिल जाव त जिनगी के राह आसान हो जाला. बहुत सुंदर प्रस्तुति.

  2. संतोष पटेल

    vimalji ke ee rachana ke sabse niman jawan chij lagal u ba kahani ke plot auri theth bhojpuri savad.
    aaj kal bhojpuri ke aisan savd pade ke kamme milela.

    sadhuvad
    santosh patel
    sampadak: bhojpuri jingi