बिल्ली के गला में घंटी के बांधे?

15 Aug 2008

अभय त्रिपाठी

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सवाल बड़ा विकट बा. स्वाभाविक बा जवाब भी वईसने होखी. पर सबसे जरुरी ई बा कि सवाल जनमला के कारण जानल जाव. हम पिछला दिनन से चलल आ रहल अमरनाथ श्राइन बोर्ड के जमीन विवाद से उपजल आन्दोलन के बात कर रहल बानी. एगो समस्या बनल बनावल होला अउरी एगो समस्या के बनावल जाला. हालात कईसनो होखे बनावल गईल समस्या के विरोध के पीछे ठाड़ लोगन के हाँ में हाँ मिलावल वईसने बात होखी जइसे शिवजी के भस्मासुर के वरदान दिहल. शिवजी के बचाव खातिर त फ़िर भी विष्णु जी पहुँच गइले पर इंहा उपद्रव के आग में जले वाले निर्दोष लोग के बचाव खातिर के आगे आई.

जहाँ तक हमार जानकारी बा समस्या के शुरुआत जम्मू कश्मीर सरकार द्वारा अमरनाथ श्राइन बोर्ड के आवंटित जमीन के करार रद्द करे के बाद शुरू भइल. मामला के धर्म से जोड़ के देखल गइल अउरी ठेकदार लोग आपन रोटी सेंके खातिर सड़क पर उतर गइल. पर भाई लोग यदि विरोध करे वाला लोग थोडी देर खातिर ई मान ले कि सरकार केहू के जमीन दिहलस फ़िर वापस ले लिहलस अउरी अइसना कउनो जमीन के आवंटन भइले नइखे त अतना बड बवाल होखला से बच जात. पर इहाँ ई सोचे वाला केहू सामने न आइल अउरी जे भी आगे आईल ओकरा के इहे लागल कि शिवजी ऊ लोग के भस्मासुर समझ के ई मुद्दा के विरोध के आड़ में आपन धार्मिक आ राजनीतिक रोटी सेंके के मौका दे रहल बाडन. बस फिर का? धरम अउरी राजनीति के ठेकेदार लोग भस्मासुर बनके विरोध के आड़ में चाहे एहर के चाहे ओहर के जनता के जला रहल बाड़े.

केहू आदमी बा जे अइसना ठेकेदार लोग से ई पूछ सके कि ई विरोध में अगर सबसे बड नुकसान भइल त केकर भइल. शायद केहू पूछे वाला मिल भी जाए पर का ऊ लोग ताल ठोंक के ई बात स्वीकार सकेला के सावन के महिना में अमरनाथ जाके आपन धार्मिक भावना के पूर्ति करे के समय में ई विरोध के कारण सबसे बड नुक्सान हिंदू धार्मिक भावना के ही भइल. जे ओ तरफ़ चल गईल रहे ओकरा के ई तरफ़ लौटे में परेशानी भइल और जे ओ तरफ़ जाए के तैयारी में लागल रहे ओकरा के अमरनाथ जाए के इरादा बंद करे के पडल. कोढ़ में खाज ई कि ई विरोध प्रदर्शन के दौरान कुछ निर्दोष लोग के जान से भी हाथ धोये के पड़ गइल.

का कउनो राजनीतिक पार्टी या धार्मिक पार्टी जे ई आन्दोलन में अग्रणी रहे निर्दोष लोग के मौत के जिम्मेदारी लेबे के तैयार बा? का ऊ लोग ताल ठोंक के कह सकेला कि जवना लोग के मौत भइल उनमे से केहू भी उनकर पार्टी या घर से सम्बन्ध रखेला? कतई ना. ई विरोध प्रदर्शन में जेतना लोग के जान गइल सब निर्दोष लोग बा. शायद ऊ लोग के मौत के जिम्मेदारी सरकार पर थोप के एक अउर विरोध प्रदर्शन के तैयारी हो जाव पर इतना जरूर तय बा कि अइसना हर विरोध प्रदर्शन में हमेशा निर्दोष लोग के ही मौत होखी न कि राजनीति अउरी धर्म के रोटी सेंके वाला अगुआ लोग के.

बात इहें ख़तम हो जाईत तबो गनीमत रहित पर हद त तब हो गईल जब एही बात के लेके देश भर में चक्का जाम के रुपरेखा अमली जामा पहिनावल गइल अउरी कानपूर तथा पंजाब में चक्का जाम के दौरान जाम के कारण २ बीमार लोग के मौत भइल. ई बीमार लोग के न त विरोध करे वाला से मतलब रहे न ही सरकार से. सारा दिन स्क्रीन मीडिया चक्का जाम के अगुआ लोग से सवाल करत रह गइल कि ई मौत के जिम्मेदारी के लिही पर केहू सामने ना आइल. एक नेता महोदय अईले भी त ई कह के छुट्टी पइले कि बीमार लोग के अस्पताल जाए के का उहे रास्ता मिलल रहे. उनकर जवाब देबे के अंदाज अइसन रहे कि यदि पलट के ई सवाल हो जात कि केवल उहे रास्ता होत तब का होत त ऊ जरूर अपना तरफ़ से दुसर रास्ता के नक्शा बने के देखा देते.

अपना जोश में ऊ इहो बात भूल गइले कि ऐ तरह से चक्का जाम करे वाला हर पार्टी के अगुआ लोग चक्का जाम के समय जरूरी अउरी आकस्मिक सेवा में छेड़खानी न करे खातिर गला फाड़ के नारा लगावेले सन. पर हकीकत एहे बा कि जमीनी धरा पर अइसना कउनो नारा अउर वादा के मतलब न होला. आप लोग के हमार बात समझ में आइल होखे त हमार कहे के मतलब सिर्फ़ एतने बा कि वजह जो भी हो अउरी विरोध करे वाला केहू भी होखे यदि उनकर विरोध प्रदर्शन के दौरान एक भी मौत के संभावना होखे त या त विरोध के धारणा ही न बने या फ़िर अइसना समय पर होखे वाला कउनो भी निर्दोष लोग के मौत के जिम्मेदारी भी लेबे के तैयार रहे लोग. यदि अगुआ लोग एकरा खातिर तैयार न होत बा त अइसना हर विरोध के नकारल बहुत ही जरुरी बा नाही त समाज के हालात वइसन शिवजी जइसन हो जाई जेकरा पीछे भस्मासुर रूपी धर्म और राजनीति के अगुआ लोग उनकर के जरावे खातिर हमेशा तैयार मिली.

ई खेला में जब भी नुकसान होखी जनता के ही होखी एहिसे चेते के जिम्मेदारी भी जनता के ही बा फ़िर जनता चाहे एहर के हो या ओहर के. एही से जरुरत बा कि जनता बिल्लीनुमा बनावल समस्या के समय रहते ही पहचान जाव नाही त बीच बचाव करे खातिर जब भी बन्दर रूपी धरम या राजनीति के अगुआ लोग आगे आयी त जनता के उहे हाल होखी जऊन हाल दू बिल्ली के लडाई में बन्दर के बीच बचाव करत समय भइल रहे. दूसरा अर्थ में हमार कहे के मतलब ई बा कि समाज के अइसन स्थिति से बचे के जरूरत बा जहाँ बिल्ली के गला में घंटी बांधे के जरुरत पड़े नाही त ई सवाल हमेशा बनल रही कि बिल्ली के गला में घंटी बंधी के.


सम्पादक के नोट : अभय त्रिपाठी जी के एह लेख से अँजोरिया के सहमत भईल जरुरी नइखे. उहाँ के एगो आदर्शवादी हालात के बात करत बानि जवन अपना देश में नइखे. गलत बाति के विरोध कइल छोड़ देब त गलत आउरी बढ़त जाई. जवन देश करोड़ो अरबो रुपया हज सबसिडी का रुप में देला, अरबो रुपिया काश्मीर के भरण पोषण पर खरच करेला, करीब करीब हर राज्य का राजधानी में हज हाउस बनावल बा, ओहि देश में बहुसंख्यक हिन्दू समाज रिफ्यूजी बनि के छितरात बा. अमरनाथ यात्रियन खातिर अगर कुछ पहाड़ी जमीन देइये दिहल रहे त का आफत आ गइल रहे? ओहिजा के बस जाई? जब तू लोग काश्मीर में पुरखन के जमीन पर बसल हिन्दू लोग के खदेड़ भगवलऽ त के ओहिजा बसे के सोची? आ उहो ओह जगहा पर जवन साल के आउ महिना बरफ में तोपाइल रहेला. एके देश में हिन्दूवन खातिर अलगा कायदा कानून जइसन हालात बना दिहल बा. दोसरा आन्दोलनन पर त केहू सवाल ना उठावे? मरे खातिर त लोग आजादिओ का लड़ाई में मरल रहे, त का ओह चलते आजादी खातिर लड़ाई छो ड़ दिहल गईल? देश के बँटवारा करा के लाखन लोग के जान ले लिहल गईल. ओकर जिम्मेवारी के लिहल?

भाई त्रिपाठी जी, शेर कहला सुनला में बड़ा निमन लागेला बाकिर जब सामने आ जाला त पाजामा आगा से गीला आ पाछा से पीला जहोखे लागेला. गलत बात के विरोध होखे के चाहीं. जम के होखे के चाहीं. जब अपना देश में सब केहू के विरोध प्रदर्शन के आजादी बा त खाली हिन्दूवने पर ई रोक काहे लागो?

असहमत भईला का बादो एह लेख के प्रकाशित कईल एहसे जरुरी समुझली कि हमार कुछ पाठक लोग हमरो बात से असहमत हो सकेला. आ सभ्य समाज में असहमति पर सहमत होखल पहिलका शर्त होला. रउरा निश्चिन्त रह सकेनी कि रउरो लेख जरुर प्रकाशित कईल जाई. एहसे जवना भी मुद्दा पर रउरा आपन विचार प्रकाशित करवावे चाहत बानी ओकरा के लिख के भेज दीं. भेजे के सर्वोत्तम तरीका त होई कि रउरा यूटीएफ-8 में टाइप करि के भेजीं. बाकिर शायद ऊ व्यावहारिक ना होखी काहे कि सभे एह से परिचित ना होई. एह से दूसर तरीका बा कि देवनागरी में लिख के ओकर स्कैन कापी हमरा के मेल कर दीं. हमरा ईमेल पता हऽ editor@anjoria.com लेख रउरा अपना भोजपुरी में लिख के भेजीं. काहे कि हर जगहा के भोजपुरी में कुछ अलग सवाद होला आ हम चाहेम कि हर जगहा के भोजपुरी के जगहा दिहल जाव. भोजपुरी के कवनो मानक स्वरूप अबले नइखे बन पावल. बनवला के जरुरतो अबहीं नइखे.


अभय त्रिपाठी जी के जवाब

भाई ओमप्रकाश जी,

केहू, केहू के बात से असहमत हो सकेला पर रउआ त एतना बात लिख देने बानी कि राउर बात के जवाब दिहल जरुरी हो गईल.. वइसे देखल जाव त ई एतना जरुरी भी ना रहे कहे से कि रउआ खुद ही लिख देने बानी कि हमार बात आदर्शवादी हालात के बा अउरी हम खुद के आदर्शवादी हालत वाला इंसान ही मानिले लेकिन रउआ बात के जवाब ना दिहला पे हमरा मन में कहीं ना कहीं ई बईठ जात कि रउआ हमरा दुनिया से बाहर के जीव बानी जबकि अइसन कउनो बात नइखे. रउरा पूरा तसल्ली कर लीं कि हम कउनो शेर और शायरी ना लिखले बानी बाकि हम रउआ से पूरा सहमत बानी के शेर आईला पर हमार आगा से गीला अउरी पीछा से पीला हो जाई.

नव निर्माण या केहू तरह के विरोध प्रदर्शन करें में कउनो बुराई ना बा बाकि अइसना कउनो प्रदर्शन में विरोध के अगुआई करे वाला लोग के ई बात के ध्यान ता रखे के ही पड़ी के कउनो भी निर्दोष के जान माल के क्षति ना होखे या फिर अगुआ लोग के अइसना कउनो स्तिथि के जिम्मेदारी लेबे खातिर तैयार रहे के पड़ी. इहाँ ई सफाई देके काम ना चली कि गेहूं के साथे घुन भी पिसाला. रउआ त अपन भावना में एतना बह गईलीं कि अमरनाथ मामला के तुलना आजादी के लडाई से कर गईलीं. भाई ओमप्रकाश जी, हालात कईसनो होखे आजादी के लडाई के तुलना वोट के राजनीती से ना कइल जा सकल जाला. अमरनाथ मामला में जे लोग भी आगुआ बा उनकर मकसद वोट के राजनीती से आगे नइखे. आपके याद होखी त ठीक बा नाही त रामजनम भूमि मामला में का भईल बा ओकरा के याद कर लीं.

हमरा लेख में कहीं से भी हिन्दू या मुसलमान के जिक्र नइखे बाकि ई सही बा कि समस्या के जड़ में हिंदु अउरी मुसलमान आमने सामने ठाड़ देखाई पडत बाड़े. मामला कश्मीर से जुडल बा अउरी जहाँ भी बात कश्मीर के होखी उहाँ धारा ३७० के बीच में रखला बिना कउनो समाधान ना त निकालल जा सकल जाला अउरी ना ही निकाले के कोशिश करे के चाहीं. धारा ३७० गलत बा या सही एकरा पर बहस हो सकेला बाकि ओकरा बिना या त कश्मीर बिना भारत के कल्पना करे के पड़ी या फिर कश्मीर के जइसन बा जहाँ बा, स्वीकार करे के पड़ी. इ धारा के बारे में जेतना हमरा मालूम बा ऊ हिसाब से देश आजाद भईला के बाद जब एक तरफ गणतंत्र भारत के सरंचना तैयार होत रहुए त दूसरा तरफ पकिस्तान कश्मीर पर हमला कर दिहले रहुए. तत्कालीन रजा हरी सिंह नेहरू जी से मदद मंगले पर मदद के पहिला नेहरूजी हरी सिंह से कश्मीर के गणतंत्र भारत के अंग बने खातिर दबाव दिहले. ओही समय राजा हरी सिंह, फारुख अब्दुल्ला के पिता (शायद शेख अब्दुल्ला) अउरी भारत सरकार के बीच जवन समझौता बनल ओकरा के धारा ३७० में दाखिल कइल गईल.

आज धारा ३७० के यदि ख़तम कईल जा सकल जाला त ओकरा के सिर्फ अउरी सिर्फ कश्मीर के जनता ख़तम कर सकेले. बाकि कउनो दुसर ताकत ई धारा के ख़तम ना कर सकेला ई बात के जेतना जल्दी लोग समझ ले ओतना नीक बा नाही त राजनीती और धार्मिक रोटी सेकें वाला लोग के कमी नइखे. "कौआ कान ले गईल कौआ कान ले गईल" कहावत के ढिंढोरा पीतल भारत ही ना पूरा जनमानस के स्वाभाविक गुण बा बाकि ई कहावत के दिल से माने वाला ज्यादातर लोग अनपढ़ बिरादरी से आवेला अउरी ई भी सही बा कि भारतीय अल्पसंख्यक लोग के बीच साक्षरता के ज्यादा अभाव बा. लेकिन यदि भारतीय जनमानस के बाद शिक्षित वर्ग भी ई सच के झुठला के पहिले त हिंसक विरोध प्रदर्शन करत बिया फेरु अइसना प्रदर्शन में जान माल के क्षति के जायज ठहरावत बिया त बड़ा विडम्बना के बाद बा. ई हिसाब से त फिर कउनो भी नक्शाली मुवमेन्ट के भी गलत ना कह सकल जाला काहे से कि ऊ लोग के अनुसार ऊ लोग भी अपना समाज के तरक्की खातिर बन्दूक उठवले बा.

ना ओमप्रकाशजी सभ्य समाज में हिंसा के कउनो स्थान ना होखे के चाही नाही त काल के डाकू चोर लोग भी अपना के जायज काहे लागी अउरी सभ्य समाज ठाड़ होखे उनकर अगुवाई करे लागी. वइसे कुछा राजनीतिज्ञान के रूप में एकर शुरुआत हो चुकल बा एही से ई विषय में गंभीरता से ध्यान देबे के जरुरत बा. हमरा विचार से केहु असहमत हो सकेला केहु ना हम केहु के भी बदल ना सकिले लेकिन कम से कम हमरा दायरा में वजह कउनो होखे हिंसा के कउनो जगह नइखे.. हम सही बानी काहे से हम कहत बानी कि गिलास आधा भरल बा त दुसर भी सहिये बा जे कहत बा कि गिलास आधा खाली बा बाकि कौन सा उदहारण कहाँ दिहल जाई ई बात के ध्यान त रखे के ही पड़ी बाकि सब अपना मर्जी के मालिक बा अउरी सब सही भी बा..