सन्यासी राजनेता नानाजी देशमुख

Nanaji Deshmukh : Sanyasi Rajnetaमहाराष्ट्र के परभनी जिला के कदोळी नाम के एगो छोटहन शहर में साल १९१६ का ११ अक्टूबर का दिने जनमल नानाजी के बचपन अभाव से संघर्ष करत बीतल. कमे उमिर में माता पिता के साया सिर से उठ गइल आ मामा किहाँ पलइले पोसइलें. गरीबी के मार आ पढ़ाई के अभिलाषा उनका से एगो सब्जी बेचेवाला के नौकरी करवलसि. बाद में मन्दिर में रह के पढ़ाई कइलन आ पिलानी का बिरला संस्थान से पढ़ाई पूरा कइला का बाद राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से जुड़ गइलें.

महाराष्ट्र के होखला का बावजूद नानाजी के कर्म भूमि उत्तर प्रदेश बनल जहवाँ उनका काम से खुश होके संघचालक गोलवलकर जी, जिनका के गुरुजी का नाम से मानल जाला, नानाजी के संघ प्रचारक के जिम्मेदारी दे के गोरखपुर भेज दिहलें. ओकरा बाद ऊ पूरा यूपी के सह प्रान्त प्रचारक बनलें. आजु उत्तर प्रदेश में संघ दृष्टि से आउ गो प्रान्त बा.

नानाजी देशमुख लोकमान्य तिलक का विचारधारा के समर्थक रहलें. यूपी में काम करत घरी ऊ दीनदयाल उपाध्याय जी का संपर्क में अइलें. दीनोदयाल जी के विचारधारा उनका के बहुते प्रबावित कइलस. अपना गोरखपुर प्रवास का दौरान नानाजी गो धर्मशाला में ठहरस. धर्मशाला केहू के तीन दिन से बेसी ठहरे ना देव त एह धर्मशाला से ओह धर्मशाला में जा के रहस. बाद में बाबा राघवदास उनका के अपना इहाँ रहे के अनुमति दे दिहलन एह शर्त पर कि उनको खाना नानाजी बनावल करीहें. तीने साल का मेहनत में गोरखपुर में अढ़ाई सौ शाखा लागे लगली सँ. ननेजी का प्रयास से साल १९५० में गोरखपुर में भारत के पहिलका सरस्वती शिशु मन्दिर विद्यालय के स्थापना भइल. आज सरस्वती शिशु मन्दिर विश्व के सबसे बड़ विद्यालय समूह बन गइल बा. संघ के आपन पत्रिका प्रकाशन करे के योजना बनल त नानाजी के प्रकाशन समूह के प्रबन्ध निर्देशक बनावल गइल. अतल बिहारी बाजपेयी सम्पादक बनले आ दीनदयाल उपाध्याय का मार्ग निर्देशन में राष्ट्रधर्म, पाञ्चजन्य, आ स्वदेश अखबार के प्रकाशन शुरु भइल. बाद में महात्मा गाँधी के हत्या के बाद गलतफहमी में सरकार संघ के प्रतिबन्धित कर दिहलसि त भूमिगत प्रकाशन के दौरो नानाजी के देखभाल में होखे लागल.

नानाजी के राजनीतिक सूझबूझ के नतीजा रहे कि उत्तरप्रदेश में पहिला गैर कांग्रेसी सरकार चौधरी चरण सिंह का नेतृत्व में बनावल गइल जवना में समाजवादी ताकत जनसंघ से हाथ मिला लिहलें. चन्द्रभानु गुप्ता जइसन राजनेता उनका से बार बार रणनीति में पराजित भइल. एक बेर राज्यसभा चुनाव में चन्द्रभानु गुप्ता के उम्मीदवार नानाजी का रणनीति का चलते हार गइले. साल ५७ में जब चन्द्रबानु गुप्ता अपने लखनऊ से चुनाव लड़े के तय कइलें त नानाजी के चक्रव्यूह उनका खिलाफ एगो अनजान नेता त्रिलोकी सिंह के लड़वा कि जितवा दिहलस. गुप्ता के एक बेर मउदाहा में हारे के पड़ल रहे. एह सब का चलते चन्द्रभानु गुप्ता नानाजी के नाम नाना फड़नवीस धर दिहलन.

साल ७४ का बिहार आन्दोलन में जब कांग्रेसी सरकार जयप्रकाश नारायण पर हमला कर के एगो जुलूस का दौरान उनका के मार दिहल चहलस त नानाजी ढाल बनके जेपी के झाँप लिहले आ सगरी लाठी के मार अपने देह पर झेल गइलें. एह दौरान उनकर हड्डी टूट गइल बाकिर जेपी के जान बाच गइल रहे.

साल ७७ में जब केन्द्र में पहिलका जनता सरकार बनल त मोरारजी देसाई नानाजी के उद्योग मंत्री बनावल चहलें जवना के सांसद चुनाव जीतल नानाजी नकार दिहलें. उनकर जोर हमेशा पद का बजाय जनता के सेवा पर रहल. साल १९८० में नानाजी सुझाव दिहलें कि साठ साल के बाद नेता लोग के रिटायर हो जाये के चाहीं त संघो में कहल गइल कि ओह उमिर में त आदमी का लगे बढ़िया अनुभव हो जाले आ फेर कवनो उदाहरणो नइखे त नानाजी देशमुख खुद अपने के उदाहरण बनावे के फैसला कर लिहलें. संघ का ओह बैठक से वापिस लवटत ऊ यूपी का गोन्डा जिला के एगो सबसे पिछड़ा गाँव चुनके ओहिजे काम करे के फैसला लिहलें. उनका प्रयास से ऊ गाँव आजु विकसित गाँवन में गिनल जाला. नानाजी के काम से खुश होके भारत सरकार उनका के पद्मविभूषण के उपाधि से सम्मानित कइलस.

आपन अन्तिम समय नानाजी चित्रकूट में बितवलन. चित्रकूट उनका पूरा काम का केन्द्र में आ गइल. कहत रहलें कि राजा राम से बेसी आदर ऊ वनवासी राम के देलें जे अपना वनवास के अवधि ऊ दलित आ पिछड़न के उत्थान में लगा दिहलें रहलन. नानाजी के खई प्रकल्पन में से एगो प्रकल्प दीनदयाल शोध संस्थान रहल. गाँव के विकास के उनकर योजना के ध्येय वाक्य रहल जनसहयोग से सम्पूर्ण विकास से सम्पूर्ण परिवर्तन. नानाजी के प्रयास से चित्रकूट के अस्सी गो गाँव में सामूहिक फैसला कइल गइल कि आपसी विवाद गाँवे में बतिया के सलटा लिहल जाई, अदालत के चक्कर ना लगावल जाई. एह फैसला के प्रशंसा तब के राष्ट्रपति अब्दुल कलाम कइले रहलें.

नानाजी देशमुख आपन पार्थिव शरीर आल इण्डिया इंस्टीच्यूट आफ मेडिकल साइन्सेज के दे दिहले बाड़े बाकिर अपना अन्तिम समय में इलाज खातिर ओहिजा ना जा के अपना आश्रमे का अस्पताल में इलाज करावे के फैसला लिहलें जहवाँ काल्हु २७ फरवरी के उनकर देहावसान हो गइल. बाकिर एह सन्यासी राजनेता के आवे वाला भविष्य हमेशा आदर से पूजी. हमनी सब उनका आत्मा खातिर मोक्ष के प्रार्थना करत बानी जा.

(Added on 28th Feb. 2010)