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आपन बाति

17th Oct 2007

एने दू तीन दिन से कुछ व्यस्तता, कुछ असकत आ कुछ तकनीकि गड़बड़ी का चलते नया सामग्री नइखे दिया पावत.

तबहियों एह मौका के उपयोग हम अँजोरिया के व्यवस्थितत करे में लगवले बानीं. कुछ बदलाव तऽ रउरो लउकले होखी. आशा करत बानीं कि ई परिवर्तन रउरा नीक लागल होखी.

बहुत दिन से एगो समस्या से परेशान रहत रहीं. भोजपुरी के स्तरीय आ प्रतिनिधि सामग्री जुटावला में बड़ा दिक्कत होत रहुवे. जे लिखेवाला बा ऊ इन्टरनेट पर आवत नइखे, आ जे आवत बा से लिखत नइखे. दू लाइन के फीडबैक खातिर त हम छछन के रह जानीं.

भोजपुरी के प्रतिष्ठित आ प्रतिनिधि पत्रिका पाती के सहयोग से हमार ऊ समस्या हल हो गइल बा. अब नियमित रूप से रउरा के भोजपुरी के साहित्य पढ़े के मिलल करी. शोध करेवालन खातिर भी ढेरे सामग्री के जुटान होखी. बस हमेशा के तरह रउरा आपन नेह छोह बनवलें राखीं.

रउरा नेह छोह का बदौलत हम आपन सब दुख तकलीफ भुला के, अपना व्यक्तिगत संकट के एक ओर फरका राखि के अँजोरिया के उजियार करे में लागल बानीं आ ओकर परिनामों देखे के मिल रहल बा. प्रतिष्ठित साहित्यकारन का नजरि में अँजोरिया आ गइल बा.

हमार हमेशा से कोशिश रहल बा कि अँजोरिया पर स्तरीय सामग्री दिआव, अब ऊ कोशिश सफलीभूतो होखेलागल बा. एह सब खातिर हम मनोज भावुक जी, अभय त्रिपाठी जी, नीरज चतुर्वेदी जी, शैलेश मिश्रा जी, सियाराम सिंह, सुधीर भाई, शशिशेखर सिंह जी, निराला तिवारी जी, बिनय पाण्डे जी, शशिभूषण रायजी, एके उपाध्याय जी, डा॰राजेन्द्र भारती जी, आ परिचय दास जी वगैरह के आभारी बानीं. ऊहाँ लोग से समय समय पर मिलल उत्साह, दिशा निर्देश, नैतिक समर्थन, सहयोग, विरोध, कटाक्ष, आ आशीर्वाद से आजु अँजोरिया लोकप्रियता के शिखर का तरफ गतिमान होके बढ़ि रहल बा.

सबले बढ़िके हम डा॰अशोक द्विवेदी जी के आभारी बानीं कि अपना नेह छोह आ आशिर्वाद से अँजोरिया खातिर प्रतिनिधि साहित्य उपलब्ध करवनीं.

‍सम्पादक

28th Sept 2007

वेबसाइट बनावे के अगिला कड़ी आ देवनागरी फान्ट का बारे में अपना पाठकन के सवाल पर कोशिश करेम कि जल्दिये कुछ कह सकीं.अकेला आदमी एने तोपेला तले ओने उघार हो जाला. हम तऽ सोचत रहीं कि अतना पाठक लोग में से कुछ लोग लिखनिहारो भेंटा जाईत तऽ कुछ बोझा हलुक करित लोग आ संगही संगही कुछ नया विचारो भेंटाइत.

21st Sept 2007

कई दिन से अपना पाठकन के अभिरूचि के जानकारी लिहला का बाद हमरा बूझात बा कि यदि हम समाचार वाला हिस्सा हटा देईं, भा ओकरा के सीमित कर देईं तऽ जवन समय बाँची ओकर कुछ बेहतर इस्तेमाल भोजपुरी के ज्यादा सामग्री देके कइल जा सकेला.

समाचार संकलन में समय बहुत अधिका लागेला. चिरई के जान जाला आ खवईया के सवादो ना आवे. मुश्किल से एक चौथाई पाठक समाचारन के देखे के जहमत उठावेलें. ओकरा बदले यदि हम सामयिक लेख दींहि तऽ शायद ऊ अधिका प्रभावी होखी.

राउर का विचार बा ?

जहाँ तक रहल बाति समाचारन के तऽ ओकर कमी हम समाचारन के लिंक देके पूरा करेके कोशिश करम. जे जवना जिला के बा तहवाँ के समाचार देखि सकेला. अन्तर अतने भर पड़ी कि समाचार हिन्दी में होखी.

आजु रउरा अतने भर करीं कि सामने दिहल फीडबैक वाला जगहा पर हमरा विचार से सहमति खातिर YES आ असहमति खातिर NO लिख के भेज दीं.

दू चार दिन तकले एह फीडबैक मिलला से करीब करीब सबकर विचार से अवगत हो जायेम आ ओहि हिसाब से आगे काम करब.

राउर,
अँजोरिया सम्पादक