अभय त्रिपाठी

बनारस, उत्तर प्रदेश

गाँव से शहर तक के रास्ता

गाँव से शहर तक के रास्ता सबके भेंटा गइल,
शहरी भीड़ में वापसी क रास्ता ही छेंटा गइल.

पढ़ाई बहाने बबुआ जी से शुरुआत भइल,
देखादेखी सबकरा दिल में फिर बरसात भइल,
हाइड्रोजन बल्ब के आगे लालटेन लुटा गइल,
गाँव से शहर तक के रास्ता....

बबुआ के ठाठ देख बाबू क आँख खुल गइल,
शहरी हवा देख माइ के गाल भी फूल गइल,
गवँइ सोंध माटी के खुशबू सेंट मे फेंटा गइल,
गाँव से शहर तक के रास्ता....

गाँव के किसानी मालिकाना सबके भुला गइल,
शहरी मजदूरी में चेहरा चायपानी से धुला गइल,
गवँइ भोली आत्मा शहरी प्रदुषण में लेटा गइल
गाँव से शहर तक के रास्ता....

आईं फिर से गाँव के रास्ता खोले क पारा बने,
जय जवान जय किसान सब शहरी के नारा बने,
होत होखी केहु खातिर शहर स्वरग के जइसन,
इहाँ के हर गँउआ जग में देश के जयकारा बने,
केहु के पुरखन के माटी खोजे क दरकार ना हो,
फिर कवनो पनघट पनिहारिन से फरकार ना हो,
धान रोपनी के गूँजे पूरे सिवान में कुछ ए तरह,
माटी के किसान फिर मजदूरी के गुलाम ना हो,
हमरा भीतर के शहरी भूत दिल से मेटा गइल,
गाँव से शहर तक के रास्ता...

से शहर तक के रास्ता सबके भेंटा गइल,
शहरी भीड़ में वापसी क रास्ता ही छेंटा गइल..