नया कौनो ठौर देखे के पड़ी

Dr.Ashok Dvivedi

डा॰ अशोक द्विवेदी

रामजी के चिरई
रामजी के खेत
तब्बो न भरल इहाँ
चिरई के पेट.

पेट त पेट
अब रहलो के दुश्वारी!
जहाँ सोचसु गर बनाईं
उहे फेंड़वा कटे लागे.

आज का जमाना में
ई रहे बहुत छोट बात.
बाकि छोट पाँखि क छोट औकात...
बहुत धवली बहुत धुपली.
चोंच से चिन्ता उकेरली.
कहीं फूटल टीन बाजल
कहीं इंकटी, कहीं ढेला.
का कहसु, केसे कहसु ?
केहू कहल, फरियाद ले जा तूँ
जिला का कलक्टर का पास.
उहे कर सकेला कुछ!
हार थाकि के उहाँ गइली
हाँफि के पैमाल
तब्बो जान भर चिचियाई कहली
कूल्हि दुख, कूल्हि बिथा.

"बसलको के उजारल
न्याय ना हऽ.
उहो अइसनका समय में,
जब अबरकन के बसावल जात होखे."

रहे हाकिम खुर्राट
तनिको कान ना दिहलस.
बुझाइल, सुनिओ के ऊ
अनसुना कइलस.
बिचारी का करसु ?
कहीं केहू कहीं केहू
रहे आवत-जात
खासमखास सब....
पालिश लगावत.
आम केहू ना रहे.
अर्दली के, बड़े बाबू के सलामी
हाय रे केतना गुलामी ?
का सिपाही, का दारोगा
डिप्टियन के झुंड केतना
पहुँच वाला जासु भीतर
बेपहुँच के, के सुने ?

गुनावन में लागल चिरई,
करें का फरियाद आपन
फिकिर में छिछियात रहली,
ए ठहर से ओ ठहर.
तले सर-सर-सर उड़ावत धूर
कवनो कार आइल,
जोर से हारन सुनाइल.
अर्दली तकलस, धवरि के कान में
कहलस दुसरका के... तिसरका के..
चउथका के... फेर गइल भीतर
तब कहीं बहरा निकलले कलक्टर !
कार से उतरल
पहिरले साफ उज्जर रेशमी कुर्ता-पजामा
अउर पाछे दुई गो हथियार वाला.
देखि के कहले कलक्टर,

"अनेरे अइलीं इहाँ,
सब काम लगभग हो चलल बा.
उहें 'आफिस' बनी रउरा पार्टी के !
बस बिहाने तक रूकीं,
ऊ पार्क पूरा साफ होई
फेंड़ बस एगो बचल बा
उहो कटी जाई!"

चिरई रामजी के, भक.
कठया मारि दिहलस
चोंच दूनो सट गइल.
मन में बिचरली,
व्यर्थ बा फरियाद इहवाँ.
जिये खातिर अब
घड़ी भा दू घड़ी में
नया कौनो ठौर
देखे के पड़ी उनके.
एह शहर से दूर, बहुते दूर.
जहवाँ लोग
आवत-जात ना होखे
भले सुनसान होखे !