पान खइला के फायदा

आलोक पुराणिक

ई निबंध ओह लड़िका के कापी से उड़ावल गइल बा जवना के निबंध प्रतियोगिता में पहिला स्थान मिलल बा. निबंध क विषय रहे - पान क शान.

पान खइला के तमाम फायदन में से एगो बड़ फायदा ई बा कि बुड़बक बतासो अकलमंद लउके लागे ला.

कइसे, त अइसे कि पान खइला का बाद कुछ देर ले जरुरी रूप से मौन मुद्रा में बइठे पड़ेला. एह मुद्रा में हर बंदा अकलमंदे लागे ला. अकलमंदी हासिल करे क एक तरीका त ई होला कि बंदा बहुत पढ़े, विद्वानन के सोहबत करे आ दोसर तरीका ई होला कि पान खाइल शुरु कर दे. पुरनिया लोग ज्यादा एही से अकलमंद होत रहुवे कि पान ढ़ेरे खात रहे.

पान पर विद्वान लोग बहुत कुछ कहले बा. ओकरा से हमनी का समाज आ समय का बारे में पता लागेला. जइसे एक जमाना में नीचे पान की दुकान आ ऊपर गोरी क मकान रहे क चलन रहे. मतलब लोग पान खाये खातिर पानखाऊ जात रहे आ लगले हाथ गोरी के दर्शनो कर आवत रहे. ई तब के बात हऽ, जब गोरी आम तौर पर अपना मकाने में रहत रही. अब के गोरी नौकरी में बाड़ी से घर पर ना होली. कई गो गोरी काल सेंटर में देर रात तकले काम करके घरे लवटे ली. त गोरियन का मकान का लगे पान के दुकान होखे के कवनो मतलबे ना बाचल. एहसे अब देखल जाला कि पान क दुकान आ गोरियन का मकान में कवनो नाता नइखे रह गइल. गोरियन के नौकरी कइला से अर्थशास्त्रीय दृष्टि से भलही बहुत फायदा हो गइल होखे, सौंदर्यशास्त्रीय नजरिया से देखीं त पान के दुकान क गोरी का मकान से लिंक नइखे रह गइल.

पान खाये वाला मूल रुप से कलाकार लोग होला. अलबत्ता कलाकारन क स्टाइल में फरक देखल जा सकेला. जइसे कुछ लोग पान के पीक सड़क का बगल का देवाल पर उछाल के फेंके ला. अइसनका लोगन के स्वभाव से प्रगतिशील कहल जा सके ला. काहे कि ऊ लोग हमेशा ऊपर का ओर देखे ला. कुछ लोग हमेशा जमीन क ओरि पीक फेंके ला. अइसनका लोग के जमीन से जुड़ल मानल जा सकेला.

पान खाकर जब बंदा ना बोले का मुद्रा में आ जाला त अचके मे ऊ बहुते अकलमंद बुझाये लागे ला. जवन पान खाए क सबसे बड़हन उपलब्धि हऽ. जइसे अगर संसद में ई जरुरी कर दिहल जाव कि हर सांसद के पान खाके आवे पड़ी, त तमाम लफड़ा, झगड़ा अपना आपे खतम हो जाई. बुश अगर अपना कार्यकाल में लगातार पान खइले रहते त तमाम बेकार के बयानन से बांच गइल रहते. मुशर्रफो अपना कार्यकाल में अगर लगातार पान खइले रहते त हमनी का उनका बकवास आ किताबो से बांच जइतीं जा.

एहसे अब समय आ गइल बा कि एगो पान संस्थान खोलल जाव, जवन एह तरह का सवालन पर विचार करे कि पान खाइल कला हऽ कि विज्ञान? पान से जुड़ल मसला पर एह संस्थान में शोध होखे.

आईं, पान खाइल जाव आ फेर मुँह बन्द कर के बइठ जाइल जाब.


आलोक पुराणिक जी हिन्दी के विख्यात लेखक व्यंगकार हईं. दिल्ली विश्वविद्यालय में वाणिज्य विभाग में प्राध्यापक हईं. ऊहाँ के रचना बहुते अखबारन में नियम से छपेला. अँजोरिया आभारी बिया कि आलोक जी अपना रचनन के भोजपुरी अनुवाद प्रकाशित करे के अनुमति अँजोरिया के दे दिहनी. बाकिर एह रचनन के हर तरह के अधिकार ऊहें लगे बा.

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