चुसाइल वोटर आ बुताईल बलब

आलोक पुराणिक

चुनावी गतिविधियन पर कवि जालीदास रचित चुनाव प्रपंच नामक महाग्रंथ के कुछ महत्वपूर्ण छन्द अईसे बा :

वोटाणि, खोटाणि, भा वार्ता आफ हार्ड पोटाणि
तबहियों ना पिघलल वोटर, सिर पर पड़ल सोटाणि.
चालू वोटर आ टालू महबूबा के पूछऽ ना बात
केहू ना जान सकल, केहू ना बूझ पावल हे तात.

कहे के मतलब कवि जालीदास ई कवित्त खास तौर पर ओह कैंडीडेटन का दशा आ दिशा पर लिखले बाड़न जे चुनाव के रिजल्ट अईला का बाद पस्त होके पड़ल बाड़न.

चुनाव से पहिले वोट के बात कईनी, तरह तरह के खोट से रिझावे बझावे के कोशिश कइनी. पोटा लगावे के बात कइनी. बाकिर वोटर नाहिये नू पिघलल आ ओकर जवाब मूड़ी पर सोटा का तरह पड़ल बा. ज्ञानीजन कह गईल बाड़न कि दू गो समुझल बड़ामुश्किल होला, पहिला त चालू वोटर के आ दोसरे टालू महबूबा के जवन रोज टालेले प्रणय निवेदन के. साफ मनो ना करेले आ साफ हँओ ना करे ले.

अइसहीं वोटर बाड़े जे चुनाव का पहिले घर का आगा एगो पार्टी के झंडा लगा के कुछ दोसरे सन्देश देबेले बाकिर गरदन में दुपट्टा दोसरे पार्टी के पहिरले रहेले. वोट डाले घरी तीसरका पार्टी के वोट दे आवेले आ सभका से चउथका पार्टी के वोट देबे के बात करेलन सन.आ जब रिजल्ट आवेला त डांस करे जीते वाला पार्टी का दफ्तर चहुँप जाले.अइसनका चालू वोटर आ वइसनका टालू महबूबा के भाँपल केहू का बस में नईखे, मोरे बाप.

बदलल एहिजा के खेला,
मजनू ना पहिचाने लैला,
रोमियो का लगे चहुँपली जब जूलियट
जवाब मिलल चल हट, मुँहफट
वोटर के देख के लागल अईसे करेंट
जईसे कर्जखोर देखले होखे वसूली के एजेंट.

कहे के मतलब चुनाव का बाद खेला बदल गईल बा. मजनू लैलो के पहिचाने से इन्कार कर रहल बा. मजनू के इंटैंशन साफ बा कि अब चुनाव त हो चुकल आ लैला वोटर का तरह चूसा चुकली. अब उनुका के भाव काहे दिहल जाव. अईसहीं जब जूलियट रोमियो का लगे चहुँपली त बतावल गईल कि चलऽ हटऽ, चुनावी मौसम खतम हो चुकल. अब भाव मत खा. जवन नेता पहिले खंभा आ पेड़ो से वोट मांगत फिरत रहुवे अब वोटर देख के अईसे बिदकत बा जईसे कवनो कर्जखोर वसूली करे वाला एजेंट देख लिहले होखे.

मतलब कि दू गो प्रेमियन के प्रेम तूड़वावे के होखे त ओह में से एगो के नेता आ दोसरका के वोटर बना दिहल चाहीं. कुछ दिन बाद नेता प्रेमी वोटर प्रेमिका के चिन्हहूं से मुकर जाई. अकबर का टाईम में ई तरकीब मौजूद ना रहुवे, ना त अनारकली सलीम काण्ड बहुते ठीक ठाक निपट गईल रहित. सलीम के फतेहपुर सिकरी विधानसभा इलाका के कैंडिडेटे बना दिहल काफी रहित, फेर वोट पड़ गईला का बाद ऊ अनारकली के पहिचानहूं से इन्कार कर दित.

ज्ञानी जन कहत बाड़न कि चुनाव का बाद नेता पति पत्नियो के पहिचाने से मुकर जाव त अचरज नाहोखे के चाहीं. चुसाइल वोटर बुताईल बलब का माफिक होखेला,से ओकरा पर टाइम खोटी काहे करऽ.


आलोक पुराणिक जी हिन्दी के विख्यात लेखक व्यंगकार हईं. दिल्ली विश्वविद्यालय में वाणिज्य विभाग में प्राध्यापक हईं. ऊहाँ के रचना बहुते अखबारन में नियम से छपेला. अँजोरिया आभारी बिया कि आलोक जी अपना रचनन के भोजपुरी अनुवाद प्रकाशित करे के अनुमति अँजोरिया के दे दिहनी. बाकिर एह रचनन के हर तरह के अधिकार ऊहें लगे बा.

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