अब इयादि आवता लरिकाई

प्रभाकर गोपालपुरिया

बाबूजी के डाँटल अब बरदास्त से बाहर हो गइल रहे. हम माई से कहि दिहनी कि बाबूजी के समझा दे. बाति-बाति पर घघोटें मति. अब हम लइका नइखीं. कहीं अइसन मति होखे कि हमरियो मुँहे से उलटा-सुलटा न निकलि जाव. एह पर माई हमके समुझावे अउर कहे की बाबू, तोहरे बाप न हउअन. तोहरी अच्छे खातिर डाँटेने. अपनी बाप की बाति के केहु बुरा मानेला का? एकरी बाद हम माईयो क बाति अनसुना क के घर से बाहर चलि जाईं.

रोज साँझीखान माई से कुछ रुपया-पइसा लीं, चाहें झोरा में दु-चार किलो अनाजे ले लीं, अउर साइकिल उठा के बाजारी की ओर निकल जाईं. बाजारी में इयारन कुल्हि क साथे खूब चाह-पकउड़ी कटे अउर ओन्ने से पान चबात, थूकत, खिखिआत घरे चली आईं.

एन्ने बाबूजी अउर माई दिनभर घर में, खेत में काम करे लोग. सबेरे उठि के माई चउका-बरतन करे अउरी बाबूजी गोरुअन के सानी-पानी अउर गोबर-गोहथारि करें. ओकरी बाद दुनु परानी कुछु रुख-सूख खा के हँसुआ, खुरपी, कुदारी उठावे लोग अउर खेते क ओर निकल जाव लोग. एन्ने हम दिन उगले ले खटिया तूड़ी अउर उठले क बाद बार-ओर छारि के मटरगस्ती में लागि जाईं.

कुछ सालन क बाद हमार सादी-विआह हो गइल. दुगो लइकन के बाप हो गइनी. एन्ने बाबूजी खटिया ध ले ले रहने अउर माई के खाँसी टोला-महल्ला क लोग के रातिभर जगवले रहे. अब का करीं? कमाए गइले का सिवा कवनो चारा ना रहे. आखिर उधार-बाकी से कबले काम चलित?

एकदिन टरेन पकड़नी अउर मुंबई चलि अइनी. इहाँ आवते जब फुटपाथे पर सुते के परल अउर झाड़ा फिरे खातिर लाइन लगावे के परल त सब सेखी रफूचक्कर हो गइल. एकदिन एगो भलमानुस की किरिपा से जब एगो खोलि में रहे के इंतजाम हो गइल तब जा के जीव में जीव परल. ए खोली में हमरिए तरे दु जाने अउर पहिलहीं से डेरा डलले रहे लोग.

एकदिन सुतले रहनी तब्बे हमरी सथवा वालन में से एगो हमरी चुतरे पर एक लात बजवलसि अउर कहलसि की सरऊ, सुतले रहबऽ का? जो पानी भर. बुझाता अपनी बाप के घर बनवले बानेऽ. ओकरी एतना कहते हमार डेकार खुलि गइल अउर हम लगनी फूटि-फूटि के रोवे. ओई दिन माई-बाबूजी के बहुत इयादि आइल. घरे जाए के सोंचि लेहनी तबले कहीं अपनी दुनु लइकन अउर मेहरी के चेहरा इयादि आ गइल अउर मन मारि के घरे जाए के पलान केंसिल क देहनीं.

एन्ने-ओन्ने बहुत चक्कर लगवनी पर कतहीं निमन काम ना मिलल. कहीं जाईं त पढ़ाई-लिखाई पूछें कुल्हि, अउर १० फेल बतवते डाँटि के भगा दें कुल्हि. जब हमके ऊ डाँटे कुल्हि त हमरा उ दिन इयादि परे जब हमरा बाबूजी के डाँट घोंघियाइल बुझावऽ अउर हम उनसे लड़े खातिर तइयार हो जाईं. बाकिर इहवाँ त हमके एगो अदना आदमी ले दुरदुरा देव. अब हमार अकल ठेकाने आ गइल रहे अउर हम हारि-पाछि के वाचमैनी सुरु क देहनी.

कुछ सालन की बाद कुछ कमइले-वमइले की बाद जब घरे गइनी त बाबूजी अउर माइ के गोर पकड़ि के खूब रोवनी. अब हमरा आपन लइकाई अउर माई-माप के दुलार मन परे. एकदिन माई कहलसि की बाबू जवन बीति गइल ओके भुला जा अउर अब अपनी लइकन के ठीक से पढ़ावऽ-लिखावऽ अउरी अपनी कंटरोल में राखऽ. हम कहनी की हँ रे माई, अब जवन गलती हमसे हो गइल बा उ लइकन से ना होई अउर गँउवे में छोट-मोट रोजगार क के हम लगनी अपना लइकन के पढ़ावे अउर घर के खरचा चलावे.

प्रभाकर पाण्डेय,
आई.आई.टी. बांबे