वंदे मातरम्

प्रभाकर गोपालपुरिया

आजु सबेरवें-सबेरवें पंपुसेट ले के चउरी की खेत्ते में जाए के रहल ह. बरसा महरानी लागता रिसिआ गइल बारी अउरी नहरियो में पानी बहुत कम्मे बा. अउरी हाँ एक बाति अउर, नहरी के पानी चउरी में चढ़ावत में केतने जाने से कपरफोड़उलियो करे के परीत. मंसूरिया रेड़तिया अउर अगर ए समय ओ के पानी ना मिलल त काटि के चउअन के खिआवे के परी, एकरी अलावा कवनो चारा नइखे.

अबहिन पंपुसेटवा के पलानी में से निकाली के पोंछत रहनी हँ तवले कहीं रमेसर काका डोल-डाल होके लवटल रहने हँ. हमके पंपुसेट पोंछत देखते रमेसर काका कहने ह कि बाबू जोगानी, हम अब्बे आपन पंपुसेट चउरी में चहुँपवा के आव तानी. हमार मंसूरी त पाटलो चालू हो गइल बा. तूँ एगो काम करऽ. अब आपन मसीन रहे दऽ अउर तिजहरियवा(तीसरा पहर) जा के हमरिए पंपुसेटवा से अपनो मंसुरिया पटा लिहऽ.

काका के इ बाति सुनते हम फटाफट आपन पंपुसेट फेन से खींचि के पलानी में क देहनी अउर गाई दुहे लगनी. गाई के दुहते समय हम रमेसर काका से कहनी कि काका तूँहू हाथ-ओथ मटिया लऽ, अबे चाय बनवावतानी. पी के तब जइहऽ. काका कहने ठीक बा बबुनवा, तब रुकि जो तनि हम दतुअनियो क ले तानी. हम कहनी ठीक बा.

गाई दुहले क बाद हम दूध ले के घर में गइनी अउर माई से कहनी की जल्दी से चाय बना दे, रमेसरो काका दुअरवे पर बइठल बाने. अउर हाँ, उ दतुअनिओ कइले बाने ए से तनि मुँहें में डाले के मिट्ठा-उट्ठा दे दे. हम चाय बनवा के लेके दुआरे गइनी अउर पीछे-पीछे माई कटोरा में मिट्ठा अउर एक लोटा पानी. रमेसर काका अबे मीठा खा के पानिए पीयत रहने तवले कहीं मास्टर काका अउर रमईओ काका पहुँचि गइल लोग. हम घर में जाके फेन से दु कप अउरी चाय ले अइनी. सब लोग उहवें खटिया पर बइठि के चाय पिए लागल लोग.

चाय पियते-पियत रमेसर काका कहने की ई चाय अंगरेजन के देन हऽ नाहिं त जब हमनी जान लइका रहनी जाँ ओ समय रस पी जाँ. काका के ई बाति सुनिके मास्टर काका कहने की रमेसर भइया, इ सब समय-समय के बाति हऽ. अबहिन इहे कुलि बात होते रहे तवले कहीं रमेसर काका मास्टर काका से पुछि बइठने कि आच्छा मास्टर, एगो बाति बतावऽ. तूँ त बहुते देस-दुनिया घूमतारऽ, लइकन के पढ़इबो करेलऽ. जब देखेनी तब रेडियो काने से सटवले रहे लऽ. हमरा इ नइखे बुझात कि बंदे मातरम पर एतना हो-हल्ला काहें होता जबकि ई त आपन रास्ट्रगीत हऽ?

रमेसर काका के बाति सुनते मास्टर काका गंभीर हो गइने अउर कहने की भईया, इ सब राजनीति हऽ. नाहीं त हमरी देखले से त जवन भी चीज, बात भारत से जुड़ल बा, ओकरी सम्मान से जुड़ल बा ओपर कवनो भी भारतवासी के गर्व होखे के चाहीं. पर इहाँ त सब उलटा-पुलटा बा अउर भोट क लालच में सरकारो कुछ नइखे करत. देस के चिंता आजु केहु के नइखे. सब दिखावा बा. अरे हमार बस चले त भारतीय संपत्ति, बात-विचार, ओ के गौरवांवित करे वाली हर एक बात आदि से खेलवाड़ करेवालन के सीधे फाँसी दे देतीं.

रमेसर काका कहने की हाँ ई त तूँ सही कहतारऽ कि सरकार सबके खुस रखले क चक्कर में आपन कर्तव्य भूला गइल बिया. अगर इहे हालि रहल त उ दिन दूर नइखे जब भारत ना त अखंड भारत रही अउर ना एगो संप्रभुता संपन्न देश.

रमेसर काका क चुप होखतहीं फेन से मास्टर काका कहल चालू कइने की भइया जवनेगाँ जन, गण, मन के राष्ट्रगान के दरजा प्राप्त बा ओहींगाँ बंदे मातरमो के. जन, गण, मन महान कवि रवींद्र ठाकुर लिखले रहन अउर ए के सबसे पहिले 1911 में कांग्रेस क अधिवेशन में गावल गइल रहे जवने में जार्ज पंचम भी हाजिर रहने. रवींद्र ठाकुर के ए गीत में राष्ट्रीयता की साथे-साथे स्वर्गिक पुट बा जबकि बंदे मातरम के रचना महान लेखक बंकिमचंद्रजी सन 1870 में कइले रहने. ई रचना आनंद मठ नाम क उपन्यासे में दिहल गइल रहे. एह गीत के बहुते मान रहे. पूरा भारतवासी ए गीत की प्रति सम्मान से नतमस्तक रहें. इहाँ तक की 1923 ले ई गीत हर जगह, सबे दल गावल करे. हम तहके एगो मिसाल के बाति इहो बता दीं कि 1905 में बंग-भंग की खिलाफ जवन आंदोलन भइल रहे ओमें का हिंदू अउर का मुसलमान, सब लोग सामिल भइल अउर ए गीत के जोस की साथ गावल लोग.

मास्टर काका क चुप होखते रमेसर काका कहने की हमरा कहीं से इहो सुने में आइल रहे की 1923 की कांग्रेस सम्मेलन में पहिला बेर मौलाना अहमद अली एकर बिरोध कइले रहने अउर उनकरी बिरोध के कारन ई रहे की इस्लाम में खुदा की बंदगी क अलावा केहू अउर के बंदगी के विधान नइखे. रमेसर काका के ई बाति सुनि के मास्टर काका तनि तैस में आ गइने अउर तनि तेज आवाज में बोलल सुरु कइने की त का हो भइया, तहरी कहले के मतलब ई बा की केहू अपनी मातृभूमि के बंदना ना क सकेला? अरे देस के, माई-बाप के, अपना से बड़हन के सब केहू सनमान देला, पूजा करेला, त ए में बुराई का बा? अगर इस्लाम अल्लाह की अलावा केहू की बंदगी के इजाजत ना देला त का माइयो-बाप की चरन में ना झुके के चाहीं. अरे माई-बाप, मातृभूमि के तूँ काहें ना ओही परम-पिता परमेश्वर क एगो रूप में देखतारऽ? देखेवाला देखतो बा, अउर जे भी समझदार बा, सच्चा भारतवासी बा उ ए गीत के विरोधो त नइखे करत. तूँ काहें भुला जातारऽ की बीर अब्दुल हमीद अपनीए घर के रहने. अरे ई त कुछ गिना-चुना स्वार्थियन के काम बा. हमरी भासा में अगर कहीं त इ देसद्रोहियन के काम बा.

अरे ई सब राजनीति से प्रेरित बा आ अब हर भारतवासी के ई मालूमो हो गइल बा. एइसन जहर फइलावेवालन के अब सफलता ना मिली. पहिले के जमाना लदि गइल जब जाति-धर्म क नाम पर केतने नेता, ढोंगी पंडित, कठमुल्ला आदि आपन उल्लू सीधा करत रहे लोग. अब भारत के जनता जागि गइल बिया. अरे भईया, हम त इहो पढ़ले बानी कि खिलाफतो आंदोलन में बंदे मातरम गीत सान अउर सनमान क साथे गावल जाव अउर जिन्ना आदि नेता एकरी सनमान में नतमस्तक होखे लोग.

एकरी बाद मास्टर काका आगे कहल सुरु कइने की भइया हम तोहके 1944 में छपल एगो प्रकासित लेख जवन मौलाना अहमद रजा लिखले रहन सुनावतानी. ए लेख में रजाजी लिखले रहने की "हमारे कुछ मुस्लिम भाई जिन्दगी के कुछ साधारण तथ्य (जन्मभूमि का मातृभूमि रुप) को इबादत या बुतपरस्ती का नाम देकर नकारने का प्रयास कर रहें हैं. माता पिता के चरण स्पर्श, नेताओं के दीवार पर चित्र टांगना आदरसूचक है, इसे बुतपरस्ती की संज्ञा देना गलत है. मेरा निवेदन है कि इस गीत को एक पावन गीत के रुप में ग्रहण करें न कि बुतपरस्ती के रुप में." मास्टर काका आपन कहल जारी रखने की एतने नाहीं जब कवनों भी भारतवासी चाहें उ कवनो धरम के होखे जब अंगरेज सिपाहियन के लाठी खा त ओकरी मुँहे में से इहे निकले 'बंदे मातरम्, भारत माता की जय'. ओ समय माँ भारती के सपूत इहे गीत गुनगुना लोग.

मास्टर काका क एतना कहले क बाद रमेसर काका कहने कि का इहो सही ह कि 1937 में जब ग्यारह राज्यन में कांगरेस के सरकार के गठन भइल रहे त ओहू समय मुस्लिम लीग, ए गीत के विरोध कइले रहे? रमेसर काका के बाति सुनि के मास्टर काका कहने की हाँ ई बिलकुल सही ह. अउर ए विरोध के देखते एगो समिति बनावल गइल जवने में जिन्ना अउर नेहरू रहे लोग. अउर ई समिति एह गीत क खाली पहिलका दु पदन के सकारल. एकरी बाद 1938 की कांगरेसी अधिवेसन में ए गीत के इहे पहिलका दुगो पद गावल गइल. ई गीत पूरा तरह से भारत की सनमान से परेरित बा, ए में कवनो एइसन बाति नइखे जवने से कवनो धरम भा वेयक्ति विसेस के चोट पहुँचो. ई गीत त पूरा तरे भारतवाद से परेरित बा जवने की बारे में महर्षि अरबिंदो अउर गाँधीओजी आपन राय देले रहे लोग. ए गीत में भारतीय स्वतंत्रता संनग्राम के इतिहास छिपल बा अउर भारतीय सपूतन के सनमान. हर एक भारतवासी के ए के सनमान करे के चाहीं.

मास्टर काका के ई बाति सुनि के रमेसर काका कहने कि मास्टर तूँ एकदम ठीक कहतारऽ अउरी हमरी राय से केहू भी अगर एकर खिलाफत कर ता त ओकरी ऊपर सीधे राष्ट्रद्रोह के मुकदमा दायर करे के चाहीं. अउर अगर समय रहते सरकार इन चीजन पर धेयान नइखे देत त उ समय दूर नइखे जब सरकार की नजर में इन छोटन-छोटन बातन की चलते फेर से भारतवासियन के एगो बहुत बड़हन कीमत चुकावे के परी. अलगाववादी राजनीति पर अगर लगाम ना लागी त भगवाने मालिक बाने सबके.

बंदे मातरम्! जय माँ भारती!

प्रभाकर पाण्डेय,
आई.आई.टी. बांबे