पुण्य अउरी मंगलदायक परब रामनवमी

प्रभाकर गोपालपुरिया

चइत की अँजोरिया की नवमी श्रीरामनवमी का रूप में बिधि-बिधान का साथे धूम-धाम से मनावल जाला. हिंदू ब्रत-तिउहारन में श्रीरामनवमी के एगो विशेष अउरी महत्वपूर्ण स्थान बा. एह ब्रत के महत्ता अपरम्पार बा. बहुत सारा ग्रंथन में एह तिउहार के बरनन मिलेला. आजुओ हिंदू धरमपरायन लोग एह दिन के एगो धार्मिक दिवस का रूप में मनावेला अउरी बिधि-बिधान से भगवान राम के पूजा-अर्चना करेला.

एह तिथि के एतना महत्ता एह से बा की अपनी भक्तन के दुख दूर करे खातिर एही दिने भगवान पुरुषोत्तम राम धरती पर अवतरित भइल रहने. जब भगवान राम एहि दिन के अजोध्या में राजा दसरथ का महल में माई कौशिल्या का कोंखि से जनम लिहने ओ समय पुनर्वसु नछत्तर अउरी कर्क लगन रहे. भगवान राम की मनुजावतार लेत ही देवता लोग बहुते खुस होके दुंदुभी बजावे लागल लोग अउरी साथे-साथे फूल के बरखो करे लागल लोग. अउरी ओहि दिन पूरा अजोध्या भी खुशी में समा गइल रहे.

एतने नाहीं गोस्वामी तुलसीदासजी महराज भी रामायन के रचना करे खातिर एही शुभ दिन के चुनने. एह दिन के महत्ता के बरनन करत-करत रिसी-मुनि, देव-किन्नर भी अघाला नाहीं. एह पबित्तर दिन के महत्ता त एहु से बा की इ चइत नवराति की नउआँ दिने पड़ेला अउरी नवराति में एहिंगा चारु ओर मंगलमय अउरी शक्तिमय बाताबरन रहेला. हर तरफ मंगल गूँजेला अउरी धूप-दीप-अगरबत्ती के खुशबू से एगो स्वर्गिक आनन्द के अनुभूति होला.

जे केहु भी भक्ति-भाव से निष्काम हो के एह ब्रत के करेला ओकर जीवन सदा-सदा सुख-शांति अउरी मंगल से भरल रहेला अउरी उ भगवान का परमधाम के अधिकारी बनेला. अगर कवनो कामना से ई ब्रत करे के होखे त नवमी का दिने भिनसहरे उठि के भक्ति-भाव से रहि के स्नान आदि क के भगवान राम के पूजा-आराधना करे के चाहीं. पूजाघर में, चाहे राम-मंदिर में, चाहे एकांत में, बइठि के अपनी कामनापूर्ति खातिर श्रद्धा अउरी बिश्वास का साथे नीचे दिहल मंत्र के जाप करे के चाहीं -

"मम भगव्तप्रीति कामनया (आपन कामना कहीं जइसे पुत्र-प्राप्ति) रामनवमीम् व्रतमहं करिष्ये."

एह मंत्र के उच्चारण करत समय मन में कवनो प्रकार के बिकार ना होखे के चाहीं. पर हमरी देखले में त निष्काम भाव से ही इहे नाहीं, कवनो बरत-तिउहार करे के चाहीं. काँहे की भगवान त अंतरजामी हउअन, घट-घट के बासी हउअन. उनकरा त सब पता बा, अउरी बिना मंगले ऊ अपना भक्तन के सबकुछ दे देने. पर हाँ ऊ भगती श्रद्धा अउरी विश्वास का साथे-साथ नेको होखे के चाहीं.

नवराति के ब्रत करेवाला गिरहस्त लोग अष्टमी ले ब्रत रहेला अउरी नवमी के पारन करेला. (साधुलोग नवमी ले व्रत रहेला अउरी दशमी के पारन करेला). भोजपुरिया समाज के लोग त श्रीरामनवमी का दिने बहुते खुश नजर आवेला अउरी कहत फिरेला -

खिचड़ी के खिंचखाँच, फगुआ के बर्री,
नवमी के नौ रोटी, तब्बे पेट भरी.

कहले के मतलब ई बा की भोजपुरिया समाज ई मानि के चले ला की कबो ना भरेवाला पेट भी श्रीरामनवमी के भरि जाला, मतलब सुख-समरिधी आ जाला. खिचड़ी का दिने लोग धोंधा-लाई, खिचड़ी आदि खूब खाला अउरी फगुआ के भी बर्री बड़ी माने खूब कई परकार के पकवान के आनंद उठावेला. अउरी एकरी बाद नवमी का दिने त खूब पूरी-सोहारी खा ला. एतना खइले की बाद कवन परानी के खइले के इच्छा रही.

श्रीरामनवमी का दिने राम की चरन-चिन्हन पर चले खातिर संकलप भी लेबे के चाहीं. जइसे बड़हन के इज्जत की संगे-संगे आज्ञापालन अउरी छोटन के प्यार, जाति-पाति के बिचार तेयागि के सबसे परेम, सब परानिन से परेम, भाई-परेम, सदा सत्य के अपनावल की संगे-संगे अपना के हर तरह का बिकारन से मुक्त क के सुसंस्कारित अउरी एगो सच्चा मानव की रूप में स्थापित कइल. अगर रउआँ सच्चा दिल से एतना करतानि त आपे भगवान राम के सच्चा भगत बानी अउरी उनकरी धाम के अधिकारी भी.

आईं सभे श्रीरामनवमी की दिने एक साथ उदघोष का संगे भगवान राम के स्तुति कइल जाव -

जय राम सदा सुख धाम हरे। रघुनायक सायक चाप धरे।।
भव बारन दारन सिंह प्रभो। गुन सागर नागर नाथ बिभो॥1॥

तन काम अनेक अनूप छबी। गुन गावत सिद्ध मुनींद्र कबी।।
जसु पावन रावन नाग महा। खगनाथ जथा करि कोप गहा॥2॥

जन रंजन भंजन सोक भयं। गत क्रोध सदा प्रभु बोधमयं।।
अवतार उदार अपार गुनं। महि भार बिभंजन ग्यानघनं।।3।।

अज ब्यापकमेकमनादि सदा। करुनाकर राम नमामि मुदा।।
रघुबंस बिभूषन दूषन हा। कृत भूप बिभीषन दीन रहा।।4।।

गुन ध्यान निधान अमान अजं। नित राम नमामि बिभुं बिरजं।।
भुजदंड प्रचंड प्रताप बलं। खल बृंद निकंद महा कुसलं।।5।।

बिनु कारन दीन दयाल हितं। छबि धाम नमामि रमा सहितं।।
भव तारन कारन काज परं। मन संभव दारुन दोष हरं।।6।।

सर चाप मनोहर त्रोन धरं। जलजारुन लोचन भूपबरं।।
सुख मंदिर सुंदर श्रीरमनं। मद मार मुधा ममता समनं।।7।।

अनवद्य अखंड न गोचर गो। सब रूप सदा सब होइ न गो।।
इति बेद बदंति न दंतकथा। रबि आतप भिन्नमभिन्न जथा।।8।।

कृतकृत्य बिभो सब बानर ए। निरखंति तनानन सादर ए।।
धिग जीवन देव सरीर हरे। तव भक्ति बिना भव भूलि परे।।9।।

अब दीनदयाल दया करिऐ। मति मोरि बिभेदकरी हरिऐ।।
जेहि ते बिपरीत क्रिया करिऐ। दुख सो सुख मानि सुखी चरिऐ।।10।।

खल खंडन मंडन रम्य छमा। पद पंकज सेवित संभु उमा।।
नृप नायक दे बरदानमिदं। चरनांबुज प्रेमु सदा सुभदं।।11।।


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