परदेश में

डा॰कमल किशोर सिंह

कभी-कभी ई मन बेचारा
लागेला छटपटाये
जइसे कवनो चारा छटपटाये
अपना माटी से बाहर आके.

आ फेर से नरम गरम
सरस माटी खोजत,
थाकल-खेदाइल, घुड़मुडिया जाला,
लपटा जाला केकरो से,
हडबड़ा के.

कभी-कभी ई मन
लागेला हावा में उड़े,
सूखल पतई अस एने-ओने,
आ अटकि जाला
कहीं एगो कोना में जाके.

कभी -कभी ई मन
लागेला बिशाल बिरिछ
छायादार, फूलाइल,
फरल, लदल कहीं -
आपन जड़ जमा के.


रिवरहेड, न्यूयार्क