शीत लहरा

डा॰कमल किशोर सिंह

घुसुकि आईं नियरा, आरे दूर काहे बानी?
ठिठुराई मत जियरा, गरम चूल्हा बा चुहानी.
चले ला शीत लहरा, जाड़ा करे शैतानी,
घर-घोसला में घुसलें, सब जीव-जंतु प्राणी.
हाथ-गोड भइल लकड़ी, जमकल रक्त नाडी,
जाईं नाही आज बाहरा, तनी बात हमार मानी.
बिना रूई-धूई- दुई . के जाड़ा नाही जाई ,
तनि बोरसी पास बैठीं , करीं कुछ रस-पानी .
मेथी, सोंठ, तिलवा, गुड़,चुड़ा, दही, छाल्ही,
मटर-बूंट-गादा बाटे, कहीं जवन बना दीं ?


रिवरहेड, न्यूयार्क