आवऽ लवटि चलीं जा! -7

डा॰ अशोक द्विवेदी के लिखल उपन्यास अँजोरिया में धारावाहिक रुप से प्रकाशित हो रहल बा.

सतवाँ कड़ी

गाड़ी में मोटरी-गठरी लेले पनवा,बीरा का बगल में बइठल रहे. ओकरा भीटर एगो नया सँसार के सपना कुनमुनात रहे. बीरा ओ सपना से अलग कुछ दूसरे सोचत रहलन. उनका दिमाग में गाँव-जवार के उपहास आ अपमान घुमरियात रहे. ऊ सोचत रहलन........ चउधुर के ए बेरा ना त सबेरे जरूर मालूम हो जाई. अब त गाँव में उनकर मुँह देखावल दुसवार हो जाई. गवना करावे आइल पनवा के ससुर एको पद ना छोड़िहें चउधुर के. लोग कवन-कवन बोल ना बोली.

"का सोच तारऽ?" पनवा उनका के टोकलस. बीरा चिहुँकलन, बाकिर उनका मन के व्याकुलता कम ना भइल. "किछउ ना..." बीरा आपन आँख बन क के कपार सीट से टेकलिहलन. पनवा उनका देहि पर ओलरि गइल. मादक-स्पर्श के गुदगुदी में बीरा के कूल्हि चिन्ता-फिकिर गायब होखे लागल.

गुदगुदी जब रुकल त भविष्य के उदवेग लेसि दिहलस. बीरा फेर आँख खोलि के छत के घुइरे लगलन. उनका अपना ओह संघतिया पर पूरा भरोस रहे जवन आसाम रहे. ओही का अलम पर ऊ ओइजा पयान बन्हले रहलन. ओकर पता उनका पाकिट में चिंगुराइल परल रहे. पनवा साइत उंघाइ गइल. बीरा एखाली ओकरा अचरजकारी मोक आ निश्छल सुघराई के निहरलन. ओकर मुँह लरुवा गइल रहे. बीरा का मन में प्यार उमड़ल आ लमर सांस बनि के निकल गइल..... "बेचारी थाकि गइल बिया". ऊ सोचलन, आ ओकरा ओलरल देहि के अपना कान्ही प सम्हार लिहलन.

आसाम कवनो नियरा थोरे रहे. रात से बेर भइल आ सबेर से रात. एह बीचे भविष्य का ओह अनिश्चित अन्हार में बीरा के एक मात्र अलम उनका संघतिया के "पता" उनका साथे रहे. पनवा खातिर जेवनकुछ रहे, पहिलहीं से बीरा पर निछावर रहे. एह परदेश यात्रा में छुइ मुई बनल, मोटरी लेले उनका पाछा-पाछा चले त ढेर लोगन के नजरि बिछिल जाव. गँवई सुघराई आ सादगी में सँवरल देहिं पर आँखि गड़कि जा स. बाकिर बीरा के सुगठित सरीरि देखि के केहू के हिम्मत ना परे. एगो स्टेशन पर दुइ गो सिपाही बीरा के धइलन सऽ, बाकिर पनवा के निधड़क जवाब उन्हनी के चिरुकी हिला दिहलस. "तहन लोग के सरम-हया नइखे का। मरद-मेहरारू नइखे चिन्हात?" पनवा के तिक्खर बोली सुनते उन्हनी के रोब खतम हो गइल. बीरा पनवा का एह तेज रुप से खुदे अकबका गइल रहलन.

एक तोर त गाड़ी बदले के हड़बड़ी में गार्ड के डिब्बा भेंटा गइल. चढ़े के त बीरा चढ़ि गइलन बाकिर अधेड़ गार्ड खोदिया-खोदिया के बीरा का बारे में पूछे लागल. रहि-रहि के ओकर नजर पनवा पर गड़कि जाव. पनवा गुरमुसि के रहि जाव. ओकरा बड़ा बाउर लागे. गार्ड के तरक से जब बीरा गड़बड़ाए लगलन र पनवा का बोलहिं के परि गइल, "घर के इस्थिति ठिक ना रहल हा गाट साहेब! ओही से घर छोड़ै के परल हा. भागि के भरोस पर हमनी का मरद-मेहरारु देस छोड़ि दिहनी जा, अब आगे भगवान जानसु." गार्ड खरखाहि देखा के चुपा गइल बाकिर ओकरा मन में खुदुर-बुदुर हिखत रहे. ऊ हंसि के कहलस - "ई मरद हउवन! बड़ा सिधवा बाड़न बेचारू! परदेश में एंतरे गड़बड़इहन त काम ना चली." पनवा ओकर व्यँग के समझलस, बाकिर बीरा का ओरि आँखि तरेरि के जइसे उनका मुरखाई पर आँखिये-आँखी धिरवलसि आ फेरू मुस्कियाइ के हूँ कहि के चुपा गईल.

आसाम पहुँचला पर कवनो परेशानी ना भइल. उहवां बीरा के हिरऊ सँघतिया रहलन रमेसर काका के लड़िका, कौलेसर. खूब आव-भगत कइलन उनकर. बीरा के मुंहे, उनुकर कहानी सुनि के चिन्ता त भइल उनका, बाकिर ढाढस देत कहलन, "अब तूँ हमरा किहां चलिये अइलऽ त निश्चितन्त होके रहऽ. इहवां केहू कुछ ना बिगारी तहार. हम बड़ले नु बानी."

बीरा पनवा के संगे कौलेसरे किहां रहे लगलन. दू चार दिन क त सवाल रहे ना, कि पनवा कौलेसर का कोठारी में गुजर कर लीत. कौलेसर का चलि गइला पर ऊ एक दिन बीरा के टोकलस, "तहरा नीक-जबून कुछ ना बुझाला. एकहीं कोठारी में आखिर अतना अदिमिन के गुजर कइसे होई? दीन सुखरग बा त तू कौलेसर का संगे बहरा सूति जा तारऽ! बरखा-बूनी अइला पर का होई? ात त एही में भेड़ियाधसान होई न! एहूं तरे इहां ढेर दिन रहल नीक नइखेऽ! "बीरा मोट बुद्धि त रहले ना. फट से बूझि गइलन. पनवा सांच कहतिया.

रात खान, खाइ-पी के जब कौलेसर सूते चललन त बीरा कहलन, "ओंतरे त हमनी का एके बानी जा ए कौलेसर, बाकिर एगो कोठारी में क दिन गूजर कइल जाई? तहरो त फजिहते न होता. बरखा-बूनी अइला पर अवरु परेशानी हो जाई. कहीं एगो कोठारी देखि के दिउवा देतऽ त बड़ा नीक होइत." कौलेसर त पहिलहीं से फिकिरमन्द रहलन बाकिर संघतिया पर जाहिर ना कइल चाहत रहलन. पनवा के रहला से, उनका खाए पिये के त आराम रहे बाकिर सांच ई रहे कि ओह हालत में ढेर दिन चललो मुसकिल रहे. तब्बो उ अहथिरे कहे सुरु कइलन, "ए संगी! परदेश में केहूँ तरे गुजर बसर करे के चाहीं, फेरु अभी त तूँ कहीं नोकरी नइखऽ करत. कोठारी के किराया लागी. पहिले नोकरी त मिले द. कोठरियो के इन्तजाम हो जाई. हम तहरा खातिर एक दू जगह बतियवले बानी. कहीं नोकरी धरा जाए द."

अभी कुछ दिन बीतल होई. कौलेसर का सिफारिस से बीरा के एगो सेठ किहां दरबानी मिल गइल. साथे साथ कोठरिया के इंतजाम हो गइल. बीरा पनवा के लेके अपना सेठ किहां चलि अइलन. सेठ उनका के अपना हाता के एगो कोठरी देइ दिहलस. तनखाह तय भइल पाँच सौ पचास रुपया. मोका पर उहे ढेर रहे. बीरा का संगें-संगे पनवा खुश रहे.

बाकिर ज्यों-ज्यों दिन बीते लागल, ओह रुपया के पोल खुले लागल. सुबिधान भोजनो महाल रहे दूनो परानी के. कबो चाउर रहे त दाल ना, कबो रोटी रहे त तरकारी ना. जाड़ के दिन रहे. बीरा सेठ के पुरान कम्मर पर दिन काटत रहलन. पनवा से बरदास ना भइल त बीरा से कहलस, "एगो नाया कम्मर काहें नइखऽ कीनि लेत। ए फटहा कम्मर से क दिन काम चली? जाड़ो बढ़े लागल." बीरा ओकर पीर समझलन बाकिर पइसा के महमार देख के महंटिया गइलन.

दू चार दिन बाद पनवा फेरु पाछ धइलस. कुछ समझे बूझे लऽ ना का। आखिर कमरवा कहिया किनबऽ? हमहूं त हइ फटही लुग्गा साटि के रात काटऽतानी." बीरा फिकिर में परि गइलन. पनवा जानत रहे किकम्मर काहें नइखे आवत। ऊ मोटरी खोलि के ओमे से अपना पछुवा निकललस आ बीरा के हाथे ध दिहलस. बीरा भौँचक! भकुवा के ओकर मुंह ताके लगलन. पनवा झिरिकलस, "भकुवा मत. जिनगी रही त अइसन अइसन कतने पछुवा आई जाई. देहिंया ले कीमती इहे बा? एकरा के बेंचि के एगो कम्मर कीनि लऽ!" ना नुकुर करत आखिर बीरा के मानहीं के परल.

बीरा कौलेसर किहाँ गइलन त ऊ ना भेंटइलन. लचार होके अकेलहीं बजारे चलि दिहलन. पूछत-पाछत एगो सोनार का दोकानी बइठलन. सोनार चलता-पूर्जा रहबे करेलन स. बीरा के निछट गँवार आ सीधा साधा चेहरा से, अनुभवी सोनार का बूझत देरी ना लागल कि आसामी बुद्धू बा. पांच सौ बीस रुपया के पछुवा पर कतरनी चलावत-चलावतऊ दाम दूइ सौ कइलस त बीरा के झूझूंवावन बरल. उ कहलन, "हमार पछुवा द ए भाई, हम दुसरा जगह बेचब". आसामी फूटल देखि के सोनार लासा फूसी लगावे शुरु कइलस, "रउवा सोझिया आदिमी बानी. दोसर केहू हमरा ले ढेर दाम थोरे दे दी. हमरा बात पर बिसवास करी. विश्वास पर दुनिया टिकलि बा. ओंतरे राउर मरजी". बीरा के मन आग-पाछ होत रहे. सोनार बुझि गइलकि ओकर बात सटीक बइठलि बीया. ऊ कुछ रुपिया अवरु अधिका बढ़ाई के रुपिया गीन दिहलस. बीरा तीन सौ सत्तर रुपिया लेके उयि गइलन.

कम्मर किनला का बाद बीरा के लगे एक सौ तीस रुपिया बांचल. उ पचास रुपिया में पनवा खातिर एगो लुग्गा किनलन आ घर के राह धइलन. लवटत खा उनुका मन परल कि कई दिन से बे तियने-तरकारी के कटऽता. ऊ खाली आलू आ पियाज लिहलन. किरिन बूड़त-बूड़त जब घरे अइलन त पनवा लुग्गा किनला खातिर उनका के खूभ झंपिलवलस. ओंतरे ओकरा भीतर बीरा खातिर सनेह लहरियात रहे. सोचत रहे कि बीरा ओकर केतना खेयाल राखऽ ताड़न. बीरा बाँचल रुपिया पनवा के देत कहलन, "ल! अब सब्बुर हो गइल नऽ!"

ओघरी सेठ कहीं बाहर गइल रहे. बीरा संझिये से गेट पर बइठल रहलन. भाला देवाल पर ओठँघावल रहे. एगो त माघ के टुसार, ऊपर से सन् सन् हवा चले त बुझाव कि देंहि अंगरि जाई. पनवा उनका के कहत थाकि गउवे बाकि ऊ कम्मर नंहिए ले अउवन. उनका अब जाड़ लागत रहुवे. गांव रहित त पतई पुअरा फूंकि के आग ताप लेतन. ईहां कउड़ के सुनगावो। कउड़ का मन परते उनका दिमाग में हाता का आरी-आरी फेंकाइल लकड़ी इयाद परुवी सन. उ उठि के अन्हारे टोइ-टोइ लकड़ी बटोरे लगुवन.लकड़ी बटोरउवे त आगि के फिकिर भउवे. टाइम बारह से कुछ उपर होत रहुवे. सोचुवन आगी सुनगा लेब त तापत-तूपत सबेर हो जाई बाकि आगि आवो त कहाँ से? उ कोठारी का ओर चलि देहुवन.

कोठारी के कंवाड़ी बन रहुवे. बीरा धीड़े धीरे जंजीर खड़कउवन त भितरी से पनवा के बोली सुनउवे, "के हऽ?" बीरा ओकरा आवाज के कंपकंपी महसूस करत धिरही से सन्तोष दिहुवन, "हम हईं हो, बीरा!" बोली सुनतहीं कहीं कि कवाड़ी फटाक से खुलि गउवे. पनवा चिहाइले कुछ पुछहीं के रहुवे, तले बीरा पूछि दिहुवन, "अभिन जागले रहलू हा?" पनवा उदास मुसकान में बोलुवे, "नीन त रोजे तूँ लेके चलिजालऽ. अकेल जीउ घबड़ाइल करेला. कइसे कइसे रात कटेले, एकर मरम हमार हिरदया जानऽता!"

बीरा ओकर तड़प महसूस करुवन. पनवाका सटलासे उनका भितरी कुछ सुनुगे लगुवे. देहीं के जामल खून पनवा के कंपकंपी देखि के दउरे लगुवे. ऊ पनवा के अँकवारी में भरत कहुवन, "नोकरिए अइसन बा ए पान. हम का करीं? हमरा कवनो सवख थोरहीँ बा कि तहरा से अलगा रहि के रात काटी." बीरा के बोली मोटरका पी-पी में दबा गउवे. उ पनवा के छोड़ि देहुवन आ भाला उठावत गेट का ओरि दउरुवन.पनवा सन्न. ओकर गरमात खून धीरे-धीरे फेरू जामे लगुवे. मुँह से खाली अतने निकलुवे, "धिरिक जिनिगी बा हमार! संगे सुतलो-बईठल आ बोललो-बतियावल मोहाल हो गइल बा."

सेठ के रोबिआइल बोली सुनि के ज बीरा गेट खोलुवन त सेठ गड़िये में से दाँटि के पुछुवे, "घर में सोया था क्या रे? इतनी देर से हार्न दे रहे हैं और तुझे सुनाई नहीँ रहा है?" बीरा सकपका गउवन, फेरु सँभारि के कहुवन, "हुजूर जाड़ लागत रहल हा. कउड़ सुनगावे खातिर आगी लियावे चलि गइनी हाँ." "ऐसे ही गायब हो जायेगा तो दरबानी क्या करेगा? अच्छा सबेरे तुमसे पुछेंगे!" आ सेठ के गाड़ी हुर्र से आगा निकली गउवे. बीरा गेट बन करत खान सोचुवन, "अधम जिनिगी बा हमरो. छन भर हटि का गइनी, साला पहाड़ टूटि परल. अब सबेरे का जाने का होई?"

पनवा देरी होत देखि के बहराँ निकलि आइल रहुवे. सेठ के डपटल सुनि के ओकरा बूझत देर ना लगुवे कि सेठ काहें अतना नराज बा?ऊ धीरे-धीरे गेट का ओर बढ़ि गउवे, बीरा स्टूल पर बइठि के मूड़ी गोतले रहुवन. फिकिरे उनुकर माथा फाटत रहुवे. पनवा उनका कान्ही हाथ धरुवे त ऊ चिहा के ऊठि गउवन. पनवा धिरहीं से पूछुवे, "का ह हो? सेठ काहें गरमात रहलन हा?" बीरा चिहुँकि के ओकर मुँह ताके लगुवन. उनका कुछ ना सुझुवे कि त अतने कहुवन, "तूँ का चलि अइलू हा? जेवन होई तेवन आगहीं आई. अन्हेरिहे सोचि-सोचि के मुवला से का फायदा? तू जा! सूतऽ!" पनवा चुपचाप खड़ा रहे. बीरा फेरु स्टूल पर बइठि गउवन.

पनवा गोड़ का अगूँठा से माटी निखोरत पुछुवे,"तनी हमहूँ त जानि कि का भइल हा?"

"तोहरा ए पचरा में परला से का फायदा? आरे आगि लिआवे खातिर उहाँ से हटि गउवीं आ एने सेठवा आ गइल हा. ऊ बूझलस हा कि हम सूतल रहनी हां. बस गरमा गइल ह." बीरा चुपा गउवन.

पनवा उनका कपार पर हाथ फेरे लगुवे. सहानुबूति का स्पर्श से बीरा के ढाढस मिलुवे बाकिर ऊ पनवा के काँपत देखुवन त प्यार से झिरुकुवन, - "जा ना जाड़ लागी. ढेर फिकिर कइला के काम नइखे. अइसन गलती नइखीं कइले कि सेठ डामिल-फाँसी चढ़ा दीहें." पनवो तब्बो उहाँ से ना हटल, त बीरा उठि के ओके दहिना अंखवारी में भरले कोठरी का ऊर चल दिहलन..