जब जगनी बिहान भइल
 

-मंतोष कुमार सिंह
 

जब जगनी बिहान भइल
सूरज संग जवान भइल
इ माटी के सवाल बा
व्यवस्था से जनता बेहाल बा
अब रउरो जाग जाईं
वतन पर वार जाईं
परिवर्तन पुकारत बा
भ्रष्टाचार ललकारत बा
आतंकवाद उसकावत बा
जाति-पात हुंहकारत बा
क्षेत्रियता जलावत बा
गरीबी रोज मुआवत बा
करजा से किसान कुम्हलात बा
अब मनई के मान बढ़ी
चुनावी पर्व में दाल गली
नेतागिरी बिलबिलात रही
हाथ-पैर जोड़ात रही
अब देखावे के बारी बा
भंवर में फंसल महतारी बा
अपनी हाथ से उद्धार करीं
जे देशहित के बात करे
ओही के सम्मान करीं.


लेखक पत्रकार अउरी गीतकार हईं
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