कविता

गउवा हमार

नूरैन अंसारी,

लागे ना निक तनको शहर में आके.
हार गईनी मनवा के लाख समझा के.
पर बही जाला अंखिया से लोरवा के धार.
मन पड़े जब कबो गउवा हमार.
भूललो से भूले नहीं बचपन के दिनवा.
नाचेला अंखिया के आगे हर सीनवा.
तब चाहे पड़े लूः चाहे पड़े खूब ठंडा.
बंद नहीं होखे कभी आपन गुली-डंडा.
आवते ही फागुन खूब होखे ठिठोली.
दादी, चाची, भौजी सबे से खेली सन होली.
दूपहरिया में जाई सन गउवा के ओरा.
बाबू साहब के बगीचा में तुडे टिकोड़ा.
शाएद अहिसन दिन कवनो जाव न खाली.
चिडअवला पर धोबिनिया देव न गाली.
दशहरा में भाई हो डाईन के डर से.
माई भेजो काजर लगा कर के घर से.
केकरा घरे कहिया आई-जाई बारात.
भले याद ना रहे सबक मगर ई रहे याद.
वो दिन स्कूल से १२ बजे आ जाईसन भाग के.
फिर देखिसन नाच खूब, रात भर जाग के.
भले एकरा खातिर खाइसन आगिला दिने मार.
मन पड़े जब कबो गउवा हमार.
फ़ोन नाही रहे तब लिखल जाव पतिया
. गउवा के सीधा-सादा लोगवा के बतिया.
हो जाव कबो कहा सुनी खेतवा के मेढ़ पर.
वोकर होखे पंचायत बड़का पीपल के पेड़ तर.
तबो लोग में होखे झमेला पर मिटे ना भाईचारा.
तनी आसा बात पर जूट जाव गाँव सारा.
वो बेरा जवार में हमार गावँ रहे अईसन अकेला
. जहा लागे रामनवमी,मुहर्रम आ तेरस के मेला.
सुस्ताव लोग गर्मी में फुलवारी में जाके.
ओही जग लेटे लो पेड़ तर गमछा बिछा के.
आवे जब परब छठ, पिड़ीया, जिवितिया.
मेहरारू सब गाँव के गावसन गीतिया.
जवन आनंद मिले गवुआ के खेत-खलिहान में.
उ बात कहा बाटे शहर के पार्क-उधान में.
अब त चमक धमक ये शहर के लागेला खाली-खाली.
खिचेला हमरा मन के डोर फिर गाँव के हरियाली.
कहे, का हो तू भूला गईल अ जनम-धरती के प्यार.
मन पड़े जब कबो गउवा हमार.

नूरैन अंसारी
ग्राम - नवका सेमरा, पोस्ट - सेमरा बाज़ार,
जिला - गोपालगंज (बिहार)

Noorain Ansari
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