प्रोफेसर रामेश्वर सिंह कश्यप

31 Oct 2008

अँजोरिया निबन्ध

प्रोफेसर रामेश्वर सिंह कश्यप आ ऊहाँ के लिखल नाटक लोहा सिहं आजु ले जनमानस पर अइसना से अंकित बा कि भुलईले ना भुलाव. भोजपुरी के दुर्भाग्य कि पता ना अइसनका कतना नाम इतिहास का गर्त में दबा गईली सन आ ओह लोग के परिचय एगो सीमित दायरा से बाहर ना निकल सकल. रामेश्वर सिंह कश्यप जवना जमाना में भोजपुरी के लोकप्रिय बनवनी तब ना त भोजपुरी सिनेमा अतना जमल जमावल रहे ना भोजपुरी के प्रचार प्रसार पर केहू के धेयान रहे. कुछ लोग स्वान्तः सुखाय लिखत रहे, अपना खर्चा से किताब छपवावत रहे, आ बाद में ओह किताबन के अपना संगी साथी हित कुटुम्ब के भेंट कर देत रहे. एहीसे बहुतेरे भोजपुरी लेखकन का बारे में जानकारी आसानी से ना मिले. अँजोरिया के कुछ पाठक जब कईबेर हमरा के खोदलें कि रामेश्वर सिंह कश्यप का बारे में जानकारी दीं त हम प्रयास शुरु कइनी बहुत मुश्किल से थोड़ बहुत जानकारी मिल सकल बा. उहे दे रहल बानी.

प्रो॰रामेश्वर सिंह कश्यप के जनम सन १९२७ में १६ अगस्त के रोहतास जिला के सेमरा गांव में भईल रहे. सन १९५० में पटना के बीषन कालेज से ऊहाँ का हिन्दी में एम॰ए॰ कइनी आ ओहि साल पटने विश्वविद्यालय में हिन्दी के व्याख्याता बन गइनी. बाद में एस पी जैन कालेज, सासाराम के प्राचार्य हो गइनी आ शायद ओहिजे से रिटायर कइनी. कश्यपजी के निधन के सही तिथि मालूम नइखे चल सकल बस अतने पता चलल कि कुछ समय पहिले डायबिटीज का बेमारी का चलते ऊहाँ के निधन हो गईल.

रामेश्वर सिंह कश्यपजी के असल प्रसिद्धि मिलल ऊहाँ के लिखल रेडियो प्रहसन नाटक लोहा सिंह से. ब्रिटिश काल के सेना के एगो रिटायर्ड सैनिक के किरदार लोहा सिंह का नाम से ओह नाटक के मुख्य पात्र रहे, साथ मे रहली खदेरन के मदर, फाटक बाबा, आ लोहा सिंह के सार बुलाकी जेकरा चेहरा के चौखटा मेहरारूवन जइसन सफाचट रहत रहे. लोहा सिंह का मुँह से जब काबुल का मोर्चा पर सार्जेण्ट का मेमिन के जिकिर आवे त लोग हँसत हसत लोटपोट हो जाव. रेडियो पर पटना आकाशवाणी से जब लोहा सिंह के नाटक प्रसारित होत रहे तब पूरा बिहार थमक जाव. टीवी के रामायण त बाद में लोकप्रिय भईल ओकरा पहिले लोहा सिंह वइसने लोकप्रिय रहे. लोग बाग आपन आपन काम समय पर निबटा के रेडियो का सोझा बईठ जाव आ बाद में भर हफ्ता लोहा सिंह के डायलाग पूरा बिहार में गूंजे. लोहा सिंह का अकसर शिकायत रहत रहे कि खदेरन के मदर आप बुझती काहे नहीं है आ फाटक बाबा आपहूं काहे नहीं समुझावत हैं. खदेरन के मदर के शिकायत रहत रहे कि मार बर्हनी रे फेर शुरु हो गइले. आ बुलाकी बस अतने कहि के रह जास कि तू ना नू बूझबऽ, तूं अपना बाबूजी पर गईल बाड़ऽ हम अपना माई पर. एही से हमरा चेहरा के चौखता काबुल का मोर्चा लेखा सफाचट रहेला.

प्रो॰ रामेश्वर सिंह कश्यप लोहा सिंह नाम के एगो फिलिमो बनवनी जेकर कहानी, पटकथा, संवाद, गीत सभे उहें के लिखल रहे आ फिलिम में लोहो सिंह के किरदार में उहें का रहनी. अफसोस फिलिम चलल ना.

रामेश्वर बाबू के लिखल बहुते कहानी, नाटक, निबंध आ कविता भोजपुरी के समृद्ध बनवलस. ऊहाँ का भोजपुरी से बेसी हिन्दीओ में लिखनीं. कुछ किताब मगध विश्वविद्यालय का कोर्सो में शामिल भईल रहे. बिहार में जब भोजपुरी अकादमी बनल त ओकर सदस्य रहनी. भोजपुरी के सम्मेलन में कई हालि कविसम्मेलन के अध्यक्ष रहनी.

रामेश्वर सिंह कश्यप के लिखल बाबू कुँवर सिंह के जीवन पर कविता के एगो अंश दिहल जा रहल बा, सवाद लीं....

गदर सत्तावन के,
महीना रहे सावन के,
सुराज के लड़ाई में भारत के पहिला सिंह गरजन,
बनल रहे आसमान धरती के दरपन.
नीचे धरती पर रहे गोली सनसनात.
घोड़ा भागत हिनहिनात,
छूटत चिनगारि रहे टाप के रगड़ से,
खा के महावत के गजबाँक, हाथी चिंघारत रहे.
तोप के दहाना से दनादन आग बरसे,
मईया से असीस ले के,
तिरिया के पीठ ना देखावे के वचन दे के,
जबकि भोजपुरिया जवान,
रख तरहत्थी पर जान, निकल पड़ले घर घर से
गदर सत्तावन के,
महीना रहे सावन के.