लघुकथा संग्रह थाती

एह संग्रह में पचपन गो लघुकथा बाड़ी स. सगरी संग्रह एक एक क के प्रकाशित कइल जाई.

भगवती प्रसाद द्विवेदी

अछरंग

सामू पण्डित के पतरा देखे, जनेव बिआह सकलप करावे आ जनमकुण्डली बनावे वाला पंडिताइ विरासत में मिलल रहे. उन्हुका बाबूजी ले त ई जजमनिका वाला पेशा चलल, बाकिर उनका बाद सामू सुकुल एह धन्धा के आगा बढ़ावे से नकारि दिहलन. ओइसहूं अब जजमना लोग पंडिजी के ओछ नजर से देखे लागल रहे. एह जजमनिका से परिवार के नून रोटी के जोगाड़ौ बइठावल अब आसान ना रहे. सामू सुकुल के पढ़ल लिखल मन एह भिखमंगी खातरि कतई तेयार ना रहे.

सामू सुकुल टोला के पढ़ुवा लरिकन के ट्यूशन पढ़ावे के चहलन. बाकिर बड़ लोग एह बात पर बिदकि गइल. जजमनिका के धन्हा करेवाला परिवार के सामू भला लरिकन के नीके तरी अंगरेजी साइन्स का पढ़ा सकेले!

हारल पाछल सामू पंडित दलितन के टोला में जाके उन्हनी से बतिअवलनि. ऊ लोग पंडी जी के हाथो हाथ लिहल आ खूब खातिर भाव कइल. अब सामू सुकुल रोज उन्हनी के लरिकन के पढ़ावे लिखावे लगलन

बाकिर कुछ दिन बाद जब गुधबेरि भइला सांझी का पंडी जी घरे लवटत रहलन त बाभन टोला के नवही उन्हुका के घेरि लिहलन स, देख समुवा, तें बाभन के औलाद होके जाति बिरादरी के माथ पर अछरंग के टीका लगावत बाड़े. नानंह जाति के ओह जाहिलन के तें पढ़ुवा बनावल चाहत बाड़े? काल्हु से कबो उन्हनीं के टोला का ओरि जात लउकले, त हाथ गोड़ तूरि के भुरकुस क देबि जा, बुझले? एह तरे जिए दिहला से त तोरा के मुवाइए दिह नीमन होई.

सामू सुकुल तय ना कऽ पावत रहलन कि उन्हुका जीए के बा कि सांचहू मरि जाएके बा?


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