लघुकथा संग्रह थाती

एह संग्रह में पचपन गो लघुकथा बाड़ी स. सगरी संग्रह एक एक क के प्रकाशित कइल जाई.

भगवती प्रसाद द्विवेदी

अबला

बेरोजगार सुशील अँगना में बँसखट पर बइठि के 'रोजगार समाचार' में रोजगार ढूँढ़े में लवसान रहले. माई पलँगरी पर बईठि के 'पराती' के कवनो कड़ी मने-मन बुदबुदात रहली.

धनमनिया तवा पर रोटी सेंकति रहे. ओकर देहिओ गरम तवा लेखा जरति रहे. बाथा का मारे माथा फाटत रहे. ओकर मन रोवाइन-पराइन भइल रहे.

तलहीं नीके तरी खियाइल तवा पर रोटी सेंकत खा धनमनिया के हाथ जरि गइल. भरि तरहत्थी फोड़ा परि गइल. दरद का मारे तड़फड़ात एगो बेपाँख के चिरई-अस घवाहिल होके ऊ आँचर से लोरपोंछत बड़बड़ाए लागलि, 'हमार करमे फूटि गइल रहे. ... एह से नीमन रहित जे बाप-महतारी हमरा के कुईयाँ में भठा देले रहितन... हमरा के जहर-माहुर दे के....'

'ऊँह! ई नइखे सोचत जे तोरा अइसन चुरइल के अइसन भलामानुस घर कइसे मिलि गइल!' पलँगरी पर करवट बदलत सुशील के माई जवाब दिहली.

उन्हुकर बोली धनमनिया के जरला पर नून नियर लागल. ओकरा देहि के पोर-पोर परपरा उठल. ऊ मुँह बिजुका के चबोलि कइलस, 'काहे ना! हमार सुभागे नूं रहे जे अइसन कमासुत मरद, नोकर-चाकर...!'

सुशील तिलमिला के आँखि तरेरले. उन्हुकरा बुझाइल जइसे उन्हुकर खिल्ली उड़अवल जात होखे.

'बात गढ़े त खूब आवेला कुलच्छिनी के!' धनमनिया के सासु अब बिछौना पर से उठिके बइठि गइल रहली, ' सुशीलवे हिजड़ा अइसन बा जे तोरा-अस कुकुरिया के घर मे रानी बना के बइठवले बा. दीगर मरद त कबहिएँ कुईयाँ में भसा आइल रहित. ना रहित बाँस ना बाजित बाँसुरी!'

सुशीलो के ताव आ गइल. मरदानगी के चुनौती! ऊ 'रोजगार समाचार' के भुईयाँ बीगि के देहि झाड़त ठाढ़ हो गइले आ पत्नी के देहि पर लात-झापड़ आ मुक्का बरिसावे लगले, 'हरामजादी! तोर अतना मजाल! हमरा देवी-अस महतारी से लड़त बाड़े? हम तोर चमड़ी नोचि घालबि.'

धनमनिया एने चुपचाप रोवति-बिलखति रहे आ सुशील आपन मरदानगी देखावत ओकरा के अन्हाधुन्हि लतवसत रहले. थोरकी देरी का बाद, जब ऊ हफर-हफर हाँफत हारि-थाकि गइले त ओकरा के ढाहि के बहरी बरंडा में चलि गइले.

धनमनिया के अइसन लागल जइसे केहू ओकरा देहि में आगि लगा देले होखे आ ओकर सउँसे देहि धू-धू क के जरति होखे. ऊ कहँरत उठलि आ फेरु रसोई बनावे लागलि.

चूल्हा बुता के आँचर से आँखि पोंछत धनमनिया सुशील का लगे जा के ठाढ़ हो गइलि, 'अजी, सुनऽ तानीं? चलीं, खा लीं!'

'हम ना खाइब!' सुशील झबरहवा कुकुर-अस झपिलावे लगले, ' तें भागऽ तारे कि ना ईहाँ से?'

'चलीं ना, हमार किरिया...' धनमनिया सुशील के बाँहि ध के खींचे लागलि.

सुशील झटकरले,'हम ना खाइब... ना खाइब...ना खाइब!'

'हमरा से गलतिहो गइल. माफ क दीं.' धनमनिया सुशील के गोड़ ध के माफी माँगे लागलि. बाकिर सुशील दाँत से ओठ काटि के एगो भरपूर लात ओकरा देहि पर जमा दिहले, 'हरामजादी! नखड़ा देखावत बाड़े? हमरा से बोलिहे मत!'

धनमनिया आह क के गिरलि, फेरु उठल आ घर में ढूकि गइलि. थोरकी देरी का बाद खिड़की राहता से ऊ बहरी निकलि गइल. बाकिर कबले ऊ अबला बनल रही? सवाल झनझनाए लागल आ ऊ सबक सिखावे खातिर कड़ेर हो के अततः वापिस लवटे लागलि.


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