लघुकथा संग्रह थाती

एह संग्रह में पचपन गो लघुकथा बाड़ी स. सगरी संग्रह एक एक क के प्रकाशित कइल जाई.

भगवती प्रसाद द्विवेदी

महिमा

जब खटिया पर अलस्त होके परल बेमार मेहतारी के फाँका ओकरा से देखल ना गइल त ऊ सिंगार-पटार क के घर से बहरी निकले लागलि. माई कहँरत पूछलसि, ' अरे फुलमतिया,कहवाँ जा तारे?'

' बस अबहिएँ आवत बानी, माई! तनी बसमतिया सखी के घरे जात बानी.' ऊ कुलाँचत बहरी निकल गइलि.

फुलमतिया दुलुकिया चाल से चलत सेठ धनिक लाल के हवेली का ओरि बढ़े लागलि. ओहे दिने कइसे ऊ ओकरा के लालच देखावत रहलन! गिद्ध नियर उन्हुकर आँखि ओकरा देहि पर गड़ले रहि गइल रहे. चलऽ, सेठ के मन के भूख मिटवला का बदला में माई के पेट के भूख आ लमहर दिन से चलत आवत बेमारी त मेटी.

जब फुलमतिया माई के हाथ मे ढेर खानी नोट गिनि के थम्हवलसि त माई के अचरज के ठेकाना ना रहे, ' फुलमतिया, अतना रोपेया कहवाँ से चोरा के ले अइले हा रे?'

' माई, सड़क पर गिरलरहल हा. हम उठा लिहली हा.' फुलमतिया जान बुझि के झूठ बोललसि.

' भगवान! सचहूँ तूँ सरब सकतीमान हउवऽ! गरीब गुरबा के छप्पर फाड़ि के देलऽ तूँ. तहार महिमा अपरम्पार बा. हे दीनानाथ!' आ फुलमतिया के माई ढेर देरी ले नोट के छाती से लगा के भाव विभोर हो के ना जाने का का बुदबुदात रहि गइलि.


भगवती प्रसाद द्विवेदी, टेलीफोन भवन, पो.बाक्स ११५, पटना ८००००१