बलिया के चारबज्जी रेल
 

-उमेश चतुर्वेदी
 

१९८४ के जुलाई महीना के उमस भरल गरमी में राहत के उमेद ले के हम अपना एगो सहपाठी का दूकान पर जा चहुँपली. बलिया टीसन पर सर्वोदय बुक स्टाल नाम के ई दूकान आजुवो वइसहीं खड़ा बा, हँ जगहा जरुर तनि बदल गईल बा, जईसनका अस्सी का दशक में रहुवे. तब हम एगारहवीं के विद्यार्थी रहनी आ जिला मुख्यालय से रोज बरोज के साबका हमरा किशोर आँखिन में साहित्य आ पत्रकारिता खातिर अनजान जइसन सपना रोपल शूरु कर दिहले रहुवे. अइसनका में हमरा सहपाठी के ऊ दूकान बड़ा मुफिद रहे. रोजाना छोटकी लाइन के छुकछुक करत भाप इंजन से चले वाली गाड़ियन से हमरा अपना इंटर कालेज आवल होत रहुवे आ वापिसो ट्रेने से करे के पड़त रहे. अइसनका में टीसन के भौड़ भरल गरमी में ई दूकान हमरा के दू तरह के राहत देत रहुवे पंखा का नीचे सुकून से बईठे के आ फोकट में मनचाहल किताब पढ़े के. एहिजा हम पताना कतना किताब पढ़नी, साहित्य, ज्ञानविज्ञान, पत्रकारिता आ सेक्स.. सब कुछ खैर... एकर चरचा फेर कभी.

एही दौरान किताबन के नया नया अईल एगो सेट पर नजर पड़ल ... कोहबर के शर्त.. किताब का लेखल का बारे में पढ़नीं, बलिया जिला के बलिहार गांव के निवासी रहलन केशव प्रसाद मिश्र. ई किताब हमार धेयान एहूसे खींचलसि कि एकर पहिलके लाइन ओही चारबज्जी ट्रेन के चर्चा से शुरु होत बा, जवना से हम रोज सँझिया के अपना घरे लवटत रहीं. कोहबर के शर्त में रउरा ई लाइन कुछ अइसे मिली, चार बज्जी ट्रेन हांफती हुयी सी खड़ी थी. कोहबर के शर्त के जब जब चरचा उठेला हमार ईयाद पड़ जाला भाप ईंजन वाला उहे चारबज्जी ट्रेन. त एइसनके नास्टेलजिक अंदाज में हमार परिचय कोहबर के शर्त से भईल रहुवे.

ई त बहुते बाद में जान पवलि कि १९८२ में जवन गाना, कवन दिसा में ले के चला रे बटोहिया के सुन के हम अपना माई से ओह फिलिम के देखे के जिद्द करत रहीं, ऊ फिलिम नदिया के पार एही उपन्यास पर बनल रहे. देखीं हमार दुर्भाग्य कि अपने माटी का कहानी पर बनल एह फिलिम के हम बहुते बाद में देख पवलि. ओह जमाना में हमरा परिवार का नजर मे फिलिम देखल आ शराब पियल एके जईसन अवगुण गिनात रहुवे. १९८२ मे बनल एह फिलिम का बारे में सुनेनी कि लोग किरासन तेल वाला स्टोव, खाना के सामना, बरतन वगैरह लेके सिनेमा हाल ले जात रहुवे कि अगर ओह शो के टिकट ना मिलल त बाद वाला शो में देख लिहल जाई. बाकिर बलिया के पढ़लो लोखल देखनिहार के ई पता ना चलल कि जवन चौबे छपरा, बलिहार आ छेड़ी से ऊ लोग रोजे गुजरेला ओहि गाँवन के ई कहानी हऽ. फिलिम के अधिकतर शूटिंग जौनपुर में भईल रहे लिहाजन लोग एकरा के जौनेपुर के कहानी मानत रहुवे. आ ऊह पर से कमाल ई कि जवना लेखक का कहानी पर ई फिलिम बनल ओह लेखक के लोग जानियो ना पावल.

केशव प्रसाद मिश्र बलिया जिलाके बलिहार गांव के निवासी रहलन. पढ़ाई लिखाई पूरा भईला पर ऊ इलाहाबाद के मशहूर एजी आफिस में नौकरी पा लिहलन आ इलऽहेबाद के हो के रह गईलन. कोहबर के शर्त जईसन भावुक उपन्यास के एह लिखनिहार के ऊ चरचा कहियो ना भईल जवना के ऊ हकदार रहलन. फिलिम देख के त लोग रोवते रहे, उपन्यासो पढ़ला का बाद रउरा आँख से लोर ना बहे ई होइये ना सकेला. आकिर का बात रहे कि ऊ अचरचित रह गईलन ? एकरा के बुझे खातिर वरिष्ठ पत्रकार अरविंद कुमार सिंह के एके गो अनुभव काफी रही. नदिया के पार के सुपर डुपर हिट भईला का बाद ऊ केशव मिश्र के इन्टरव्यू लेबे गइलन त उनुकर आव भगत त भईल बाकिर कहल गईल कि पहिले नदिया के पार देख आईं. बातचीत करे खातिर ऊ तईयारे ना भईलन. आजुका जमाना में त किताब छपे का पहिलहीं से चरचा आ गोष्ठियन के बाजार तेज हो जाला आ अपना के चमकावे का काम में लेखक लोग लाग जाला. बाकिर ऊह जमाना में केशव प्रसाद मिश्र एह सब से अलगे रहलन. हिन्दी के बड़ बड़ लिखनिहार से उनकर साबका पड़त रहे. बलिये के दूधनाथ सिंह आ अमरकांत से ले के शेखर जोशी, उपेन्द्र नाथ अश्क, भैरव प्रसाद गुप्त वगैरह सब से. बाकिर केशवजी चरचा से दूरे भागत रहलन. पूर्वांचले के विवेकी रायजी उनुका के एगो निमन इंसान का रूप में बड़ा शिद्दत से ईयाद करेलन. उहाँ के कहनाम बा कि केशव प्रसाद मिश्र में आधुनिक जमाना के बड़बोलापन ना आ पावल रहुवे, एहिसे ऊ अपना चरचा से फरके रहत रहलन. साहित्यिक गोष्ठियन में जासु त बाकिर अपने बोलसु ना. कुछ वइसहीं जइसे कोहबर के शर्त के नायिका गूंजा के बड़ बहिन चुपचाप सब कुछ अपने पर झेल जात रहे. ऊह वैद्य जी का तरह जे आपन जिम्मेदारी चुपचाप निभवले जात रहलन.

१९३६ में देहाति दुनिया के जरिये आंचलिक उपन्यास का दुनिया में जवन बिरवा आचार्य शिवपूजन जी सहाय रोपलन, नागार्जुन ओकरा के बलचनमा, रतिनाथ के चाची, आ, वरूण के बेटा का जरिये ओकरा के आगा बढ़वलन.बाकिर आंचलिक लेखन में क्रांति आईल फणीश्वरनाथ रेणू के मैला आंचल आ परती परिकथा से. विवेकियो राय नमामि ग्रामं, सोनामाटी, आ समर शेष है जइसन उपन्यास लिख के आंचलिक उपन्यासन का दुनिया में आपन सार्थक दखल देखवले बाड़न. केशव प्रसाद मिश्र एही कड़ी के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर रहलन. हैरत के बाति त ई बा कि शिवपूजन सहाय के देहाती दुनिया, रेणु के मैला आँचल आ केशव मिश्र के कोहबर के शर्त तीनो में एगो समानता बा. देहाती दुनिया आ कोहबे के शर्त में भोजपुरी इलाका का मेहरारुवन के जिनिगी के दरद उड़ेरल गईल बा त मैला आँचल में पूर्णिया आ कटिहार इलाका के. मैला आँचल के कमली आ कोहबर के शर्त के गूंजा में आजुवो कवनो खास बदलाव नईखे आईल. लेकिन बड़हन बाति ई बा कि उपन्यास के नायिका त आपन मनचाहा साथी पा लेत बाड़ी स, जबकि वास्तिविक हालात में ई आजुवो दूर के कौड़ी बा. आजुवो एह इलाकन के लड़कियन के ऊ आजादी मयस्सर नईखे. हँ, ई लेखक लोग अपना रचना का जरिया एगो सामाजिक बदलाव ले आवे के कोशिश जरुरे कइले बा. फिलिम आ टेलीविजन का माध्यम पर आ के एह नायिकवन के दर्द घर घर के मेहरारुवन के दर्द जरुरे बन गईल फिलिम माध्यम में अईला का बाद रेणु के ले के चरचा के विस्तारे भईल, उनुकर कहानी लालपान की बेगम पर बनल फिलिम तीसरी कसम से लोग रेणु के अधिका जानलॆ मैला आंचल के जब टीवी पर पेश कईल गईल तबहियों रेणु के ढंग से ईया कईल गईल. बाकिर केशव प्रसाद मिश्र एह मामिला में पिछड़ गईलन. १९८२ में आईल नदिया के पार का लेखक का तौर पर उनुका के बलियो के लोग कायदा से ना जान पावल, जबकि केशव ओहिलोग का बीच के रहलन. राजश्री वाला लोग नदिया के पार में त केशव जी के सम्मान दिहल बाकिर १९९४ में जब सूरज बड़जात्या एही पर हम आपके हैं कौन फिलिम बनवलन त एह लेखक के ठीक से ईयाद ना कईलन. अलग बात बा कि एह फिलिम से बड़जात्या परिवार के तिजोरी कतना भरल, ई सभे केहू जानऽता.

केशव प्रसाद मिश्र के एगो आउरी उपन्यास देहरी के आरपारो बा. कोहबरके शर्त के नायिका गूंजा के ओकर चाहत त मिल गईल बाकिर ममता के देहरी पार करे के ओकर ईच्छा पूरा ना हो सकल. कबो ओकर बाबूजी रामाधार कौशिक के कृपणता त कबो उनुकर भोगवादी दृष्टि ममता का राह में रोड़ा बन जात बा. बिन मां के ई बच्ची अपना चाहत अपना सपना के रोजे टूटत देखत बिया. पूरबिया बापर इलाहाबाद के पढ़ल लिखल माहौल में अपना के आधुनिक देखावे में लागल रहऽता बाकिर आपन दकियानूसी विचार छोड़ नईखे पावत. एही बीच ओकर भेंट हेमंत से होत बा. संजोग बनऽता आ रामाधार कौशिक हेमंत से ओकर शादी करावे खातिर तईयार हो जात बाड़न. ममता हेमंत से बँध जात बिया बाकिर कसक रहि जात बा. ममता ममता बन के रहे के चाहत रहे बाकिर नईखे बन पावत. ओकर नया पहिचान हेमंत बन जात बाड़न. ममता के दर्द कुछ त कम होखत बा बाकिर नया टीस का साथ. ओकरा कसक के केशव जी जवन शब्द दिहले बाड़े ऊ रोवावे खातिर काफी बा. रउरो धेयान दिहीं.

आज रात के साढ़े दस बजे तक , परिचय के लिए डॉ. रामाधार कौशिक एमबीबीएस की बेटी ममता हूं , उसके बाद हेमंत से जुड़ जाउंगी। उस हेमंत से, जिन्होंने मुझे नई जिंदगी दी है। जिंदगी का अर्थ दिया है, जीने की रूचि जगाई है- इस थके -हारे, निराश मन में, आस और विश्वास भरा है।

एह ममता में हमरा आजुवो बलिया, गाजीपुर, छपरा, बनारस जईसन ईलाकन के ढेरे ममता लउकत बाड़ी सन. एह उपन्यास का छपला तीस बरीस से उपर हो गईल बाकिर ममता के हालात में कवनो सुधार नइखे भईल.

आजु के दौर के एगो महत्वपूर्ण कवि हईं केदारनाथ सिंह. केदार जी के गांव चकिया केशव जी के गांव बलिहार से चारे पांच किलोमीटर का दूरी पर बा. दुनू जने रचनात्मकता के नया प्रतिमान बनवलन. केदार जी के सभे जानऽता, केशव जी के ओतना पूछ भा पहुँच ना बन पावल. बाकिर हमरा स्मृतियन में दूनू के रचनन के एकएक विंब टंगल बा. केदारजी के एगो कविता हऽ माँझी के पुल. बलिया छपरा रेल मार्ग पर यूपी बिहार का सीमा पर घाघरा पर बनल एह रेलवे पुल के धमक रात का गहिर सन्नाटा में दूर दूर ले सुना ला. केदार जी अपना कविता में कहत बाड़े, दूर कहीं स्मृतियों में टंगा है मांझी का पुल.

बलिया के रचनात्मकता के जबहयो चरचा होखेला हमरो भीतर कहीं ना कहीं ई मांझी के पुल फांस का तरह लटकत लउकेला आ एकरा साथही ईयाद आवेला हांफत खाड़ चार बज्जी ट्रेन जवना के रोज एह पुल से गुजरे के पड़ेला.

केशव जी आजु हमनी का बीचे नईखीं, बाकिर उहाँ के रचनाधर्मिता के कीर्ति हमनी का कहियो मांझी का पुल का ओहू पार ले जा सकब जा ? जवाब हमनी सभके ढूंढ़े के बा.


लेखक टेलीविजन पत्रकार हईं.


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