भोजपुरी आज का परिप्रेक्ष्य में

मारीशस टाइम्स से साभार

परमान्द सूबराह

पिछला १७ अप्रेल का दिने मारीशस के सुब्रमनिया भारती सभा भवन में भइल एकदिना सेमिनार के विषय रहे भोजपुरी आज का परिप्रेक्ष्य में. आ हमनी का ई देख के बहुत खुश भइनी जा कि मारीशस के नयका पीढ़ी के एगो छोट समूह हमनी के आप्रवासी पुरनियन का भाषा का प्रति कतना उत्साह आ छोह से भरल बा. ऊ लोग सूचना प्रौद्योगिकी के आपन जानकारी सहित सारा उद्यम एह दिसाईं लगा रहल बाड़े.

हमनी का ओह लोग के आभारी बानी जा जे भोजपुरी भाषा के खातमा खातिर १९८२ का बाद बनल सरकारन के दबाव अनदेखा करत हतोत्साहित नइखन भइल आ अपना काम में लागल बाड़न. बाकिर ओह खराबो दिनन में कुछ लोग भोजपुरी भाषा आ संस्कृति के पसार आ सम्हार में लागल रहल. बहुते वक्ता एह खातिर श्रीमती सुचिता रामदीन आ श्रीमती सरिता बुद्धू के कइल काम के जिक्र कइलन. सरिता जी त सभाभवन में मौजूदो रहली.

सेमिनार के अलग अलग सत्र के शीर्षक रहे मारीशस में भोजपुरी के विकास, मीडिया में भोजपुरी, भोजपुरी आ संस्कृति, भोजपुरी के पढ़ाई. जवन पहिलका पेपर पेश भइल तवना के शीर्षक रहे बहुभाषी मारीशस का संदर्भ में भोजपुरी के जिआवल समस्या आ संभावना. पेपर पेश कइलन प्रोफेसर विनेश हुकुमसिंह जे क्रेओल भाषा खातिर आन्दोलन चलावे खातिर जानल जालें. ऊ जे भी कहलें तवना से भोजपुरी के भविष्य खातिर आश्वस्त करे वाला ना रहे. उनका पेपर के प्रस्तुतिकरण अतना तेजी से कइलन कि ओह पर ज्यादा कुछ ना कहल जा सके, बाकिर एक बात जे ऊ साफ कहलन ऊ ई रहे कि ई बढ़िया बात बा कि महात्मा गाँधी संस्थान भोजपुरी के शोध कार्य अपना जिम्मे लिहले बा. अन्दाज कुछ अइसन रहे कि ई शोध वइसने बा जइसन कुछ लोग बेंग आ घोंघा जइसन जीवन पर करेला. काश जवना तरह से ऊ क्रेओल के बढ़ावा खातिर आन्दोलन कइलन तवने तरह भोजपुरीओ के बढ़न्ती खातिर करे के बात कहतन. मारीशस विश्विद्यालय जइसन काम क्रेओल खातिर कइलस कुछ वइसने काम एमजीआई के भोजपुरी खातिर करे के चाही.

प्रोफेसर हुकुम सिंह का तुरते बाद भोजपुरी के गरजत पक्ष लिहलन शोभानन्द सीपरसाद शिवप्रसाद. सीपरसाद बहुते गुणन के धनी हउवन बाकिर हमनी खातिर ऊ वइसन आदमी हउवन जिनकर भोजपुरी भाषा पर मजबूत पकड़ बा. अलग बाति बा कि ऊ अंगरेजी आ दोसरो भाषा पे ओतने पकड़ राखेलें आ अग्रेजी साप्ताहिक न्यूज आन संडे के सम्पादको हउवन. सीपरसाद नाटक का कहानीओ लिखे में तेज हउवन. बाकिर साथही साथ ऊ वास्तविकतावादी हउवन आ नयका पीढ़ी में भोजपुरी का तरफ बहुते कम रुझान होखे के बात सकरलन.

कुछ वक्ता लोग कहल कि हमनी का भोजपुरी में क्रेओल भाषा के बहुते शब्द समाहित कर लिहल गइल बा. कुछ लोग का हिसाब से ई बात खतरनाक बा. बाकिर ओह सत्र के अध्यक्षता करत एमजीआई के भाषा विभाग के प्रमुख डा॰पी तिरोमालचेट्टी एह बात के स्वाभाविक विकास प्रक्रिया मनलन आ कहलन कि जवन शब्द सामहित भइल बाड़ी स ओकनी के भोजपुरिया दिहल गइल बा. कुछ लोग उनका एह बात के विरोधी हो सकेले बाकिर हम ओह लोगन के धेयान अंगरेजी पर दिआवल चाहम जे अपना एही खासियत का चलते आजु विश्वभाषा बनल बिया जबकि अपना शुद्धता खातिर परेशान फ्रेंच पिछड़ गइल. हँ क्रेओल शब्दन के बेसी इस्तेमाल से आम भोजपुरी भाषी के दिक्कत होखी आ वेनबसाइटन पर काम करे वाला लोग के एह दिसाईं सावधान रहला के जरुरत बा.

सेमिनार के सितारा साबित भइलन हिन्दी अध्य्यन संभाग के प्रवक्ता कुमारदूथ विनय गूडारी जे कि इंटरनेट पर भोजपुरी के पसार में अपना काम के जिक्र कइलन. कहलन कि हर आदमी के भोजपुरी एक्सप्रेस डॉटकॉम पर जाये के चाहीं जेहसे कि ऊ दुनिया भर में फइलन भोजपुरियन का संपर्क में आ सको. बतलवलन कि ओह साइट पर भोजपुरिया डॉटकॉम आ अंजोरिया डॉटकॉम जइसन भोजपुरी साइटन के लिंको दिहल गइल बा. भोजपुरी एक्सप्रेस पर ढेर सारा भोजपुरी गीत गवनई आ भोजपुरी रेडियो भी मौजूद बा.

सवाल जवाब का सत्र में कुछ खास बात सामने आइल. एगो त रहे हमनी के उद्देश्य से भोजपुरी के विविधता के अध्ययन. शालिग्राम शुक्ला अपना भोजपुरी व्याकरण में चार तरह के भोजपुरी के जिक्र कइले बाड़े, उत्तरी, दक्खिनी, नागपुरिया, आ पश्चिमी. बाकिर ऊ चारो तरह के भोजपुरी अपना में बहुते साम्य राखेला आ एक दोसरा के समुझल बहुत आसान बा. पहिले आवागमन के साधन ना रहे जेहसे कि हर इलाका में आपन आपन बोली चल निकलल बाकिर अब जब दुनिया भर में संचार के साधन बढ़ चलल बा त धीरे धीरे एकरुपतो आइये जाई.

हमनी के पूरा भरोस बा कि भोजपुरी के एगो विश्वव्यापी रुप सामने आ के रही बाकिर एह दिसाईं शोध चलत रहे के चाहीं जवना से सबका ई मालूम हो सको कि भोजपुरी के प्रचलन हिन्दी का पहिले से बा आ ई अपने आप में एगो भाषा हऽ. कुछ लोग के ई गलतफहमी बा कि भोजपुरी ओहि तरे से हिन्दी से जुड़ल बा जइसे क्रेओल फ्रेंच से. साँच से एहले बड़ दूरी ना हो सके. क्रेओल बस गलत फ्रेंच हऽ. जबकि हिन्दी मुगल काल का खड़ी बोली से निकल के ब्रज भाषा, अवधी, भोजपुरी वगैरह का मेल से बनल जवना में संस्कृतनिष्ठ शब्दन के बहुतायत बा. जबकि भोजपुरी के उद्गम प्राकृत से भइल बा. भोजपुरी आ खड़ी बोली अलग अलग प्राकृत से निकलल बा आ एकनी के एक दोसरा के बोली ना कहल जा सके.

दोसर बात जवन सामने आइल ऊ ई कि भोजपुरी कवना लिपि मे लिखल जाव. एह बात के कवनो साफ जवाब ना उभरल. लिपिए का अन्तर से हिन्दी आ उर्दू अलग अलग हो गइली स. डेढ़ सौ साल ले बहस चलल आ साल १९५० में भारत के संविधान सभा में एक वोट का अन्तर से तय भइल कि भारत के राष्ट्रभाषा देवनागरी लिपि में लिखल हिन्दी होखी. जबकि बहुत लोग के कहनाम रहे कि अरबीफारसीओ में हिन्दी लिखल जा सकेला. हो सकेला कि अगर ऊ लोग रोमन लिपि में लिखल हिन्दुस्तानी के मांग कइले रहित त फैसला कुछ दोसर आइल रहित. एह मामिला में कवनो आम सहमति सेमिनार में सामने ना आइल बाकिर एहिजा हम बतावल चाहम कि बृन्दावन लिंगुइस्टिक एण्ड कल्चरल जेनोसाइड वाचग्रुप एगो अइसन रोमन लिपि का विकास में लागल बा जवना में मारीशस में बोले जाये वाली आ सरकारी स्कूलन में पढ़ावल जाये वाली हर भाषा के ध्वनि शामिल कइल जा सको. जब तइयार हो जाई तब ओकरा के सभका टिप्पणी आ सुझाव खातिर पेश कइल जाई.

अपना दोसरा व्यस्तता का चलते मारीशस टाइम्स के टीम पूरा सेमिनार अवधि में मौजूद ना रह सकल बाकिर हमनी का संतुष्ट बानी जा कि एमजीआई भोजपुरी अध्ययन खातिर गंभीर बा आ भगवान करस कि ओकरा एह दिसाईं सफलता मिलो.


परमाननद सूबराह जी के लिखल एह लेख के भोजपुरी अनुवाद मारीशस टाइम्स का पूर्वानुमति से प्राकशित कइल जा रहल बा. एह लेख के सर्वाधिकार मारीशस टाइम्स का लगे सुरक्षित बा. अनुवाद का क्रम में कुछ गलती हो सकेला. लेख के मूल पाठ अंगरेजी में मारीशस टाइम्स पर मौजूद बा.