हमहूँ कुछ कहल चाहतानी

प्रभाकर पाण्डेय

माननीय संपादकजी,
अँजोरिया
सादर नमस्कार.

हम अँजोरिया के नियमित पाठक हईं. अँजोरिया पर आइल लेखन के पढ़ल हमरा बहुते नीक लागेला काँहे की इहवाँ सार्थक अउरी यथार्थ रचनन के परकाशित कइल जाला. कुछ दिन पहिले हम अँजोरिया पर छपल एगो रचना पढ़नी, 'भोजपुरियन के सबले बड़ कमज़ोरी : अंग्रेजी' . ई लेख पढ़ले क बाद हमरा बुझाइल कि वास्तव में आधुनिक जुग में अंग्रेजी के का महत्व बा. गाँव-देहात में पढ़ला क बाद हम मुम्बई आ गइनी बाकिर अंग्रेजी के कम जानकारी होखला क वजह से काम त मिले बाकिर पइसावाला ना. वइसे हम अंग्रेजी में कमजोर ना हईं पर बोलले में जीभिया लड़खड़ा जा. हम आई.आई.टी. ज्वाइन कइनी अउरी इहाँ हमरा बुझाइल की अब बिना अंगरेजी के काम ना चली. काँहे की कवनो अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में शोध-पत्र अंग्रेजिये में प्रस्तुत करे के पड़ेला, बतावे के पड़ेला. कवनो बिदेशी विजिटर आ जाले त उनके आपन काम अंगरेजिये में बतावे के पड़ेला.

खैर छोड़ी. 'भोजपुरियन के सबसे बढ़ कमजोरी- अंग्रेजी' हम पढ़नी अउरी हमरा जवन बुझाइल ऊ ए लेख के सार हम एक लाइन में कहतानी- 'भोजपुरियन के अपन माटी, आ भोजपुरी से त एकदम जुड़ल रहे के चाहीं बाकि अगर ऊ अंग्रेजीओ पर धेयान देहल शुरु क देव लोग त अउरो अच्छा रही. काँहे की आधुनिक समय में अंगेरेजी विश्व-भाषा क रूप में स्थापित हो गइल बिया.'

हम आपके बता दीं की हमरि लगे हमरी पहिचान वालन बचवन (भोजपुरियन) के बहुत सारा रिज्यूम (बायोडाटा) आवेला बाकिर अंग्रेजी के ज्ञान ना होखला से बहुत सारा बचवन के निराश हो जाए के पड़ेला. हम लाख कोशिश करेनीं बाकिर ओतने डिग्री रखेवाला फटाफट अंग्रेजी बोलि के आपन जगहा पक्का क लेने कुलि.

त का भोजपुरिया समुदाय अंगरेजी ना पढ़ि के मजदूरीये करे, रेक्से चलावे?. आगे आवेवाला भोजपुरी पीढ़ीओ एही सब में लपटाइल रहे? अरे भईया भोजपुरी चाहें कवनो भाषा छोड़ले के बाति नइखे होत, इहवाँ बात हो रहल बा कि अगर अंगरेजीओ से जुड़ि जाइल जाव त अउर तरक्की हो जाई. (सकारात्मक सोंची महराज...)

अब कुछ जरूरी बात -

  • 1. 'भोजपुरियन के सबसे बढ़ कमजोरी- अंग्रेजी' के पढ़ले क बाद माननीय अभयजी एकर सही अर्थ नइखन समझि पवले काहें की एह में भोजपुरियन के बात नइखे होत बलुक ओहन के कमजोरी के बात हो रहल बा. माननीय अभयजी, भोजपुरियन क साक्षरता-निरक्षरता के बात नइखे हो रहल!
  • 2. अभयजी आप आलोचना करत समय सकारात्मक सोंच राखी. ई रउरा का कह रहल बानि - 'प्रतिक्रया उचित ना लागल काहे से कि जेकर लेख ओही के साइट' आपके लेख क आलोचना करे क बा कि रचनाकार क? काहें की एह लाइन में आप रचना के ना रचनाकार के आलोचना क रहल बानी, आ उहो असभ्य अंदाज में!
  • 3. 'लेख के रचनाकार लेख में कवना भोजपुरिया लोग खातिर परेशान बाड़े'- अरे महराज अभयजी, का कहल चाह रहल बानी रउआँ? आप जइसन आदमी के इ भाषा?
  • 4. 'एगो भोजपुरिया साहित्य अउर समाज के दर्पण के दावा करे वाला साईट के मालिक अउर भोजपुरिया समाज अउर संस्कृति के आगा बढ़ावे के दावा करे वाला लेखक'- (दावा करे वाला- संपादकजी तनि आपो विचार करीं एह भाषा पर.) अरे भाई रचना के आलोचना ह कि रचनाकार पर कीचड़ उछालल जाता?

अंत में हम इहे कहब कि, अँजोरिया के संपादकजी, आप नीचे लिखले बानीं की त्रिपाठी जी के लेख हम बिना काट छाँट के प्रकाशित कर रहल बानी. (व्यक्तिगत छीँटाकशी केहू के शोभा ना देव, से हर केहू के चाहीं कि दोसरा के विचार के सम्मान देव आ आपन विरोध प्रकट करे. सम्मान दिहला आ स्वीकृति दिहला में अन्तर होखेला)-- ई व्यक्तिगत छीटा-कसी ना ह त का ह महाराज????????

खैर, एगो संपादक भइले क नाते इहो आपके जिम्मेदारी बनेला की सकारात्मक सोंचन के ही प्राथमिकता दीं. अगर केहू कुछ उलजलूल लिख दे त ओके परकाशित नाहिए कइल ठीक रही, भलही उ आपन परिचिते होखे!

एह लेख से ई एकदम स्पष्ट बा की अभयजी के ए लेख से ना बलुक एह लेख क रचनाकार से कुछ व्यक्तिगत परेशानी बा. काँहे की उहाँ का रचनाकारे की ऊपर जेयादे मेहरबान नजर आवतानी. आज क समय में अँजोरिया एगो प्रतिष्ठित साइट बा अउरी ए साइट पर अइसन बातन के जिक्रे ना होखे के चाहीं. वइसे आपके मरजी तो सर्वोपरि बा बाकि एगो पाठक क रूप में हम आपन प्रतिक्रिया दर्ज करावतानी. अगर एह लेख के बिषय इहे रहित पर भासा सभ्य रहित त हमरा खुशी होइत.

सादर धन्यवाद.
प्रभाकर पाण्डेय
एगो पाठक- अँजोरिया


प्रभाकरो जी के लेख बिना काट छाँट के पेश बा. प्रभाकर जी अपना टिप्पणी में हमरो पर निशाना लगवले बानी. बाकिर जीवन्त समाज में विवाद आ बहस तबले स्वागत योग्य बा जबले ऊ सभ्यता का सीमा में रहे. हम आजु ले प्रकाशनार्थ आइल हर सामग्री के एही मापदण्ड पर परखेनी. अगर अपना पाठकन के हम आपन बात राखे के मौका ना देम त ऊ गलत होखी. सही गलत के फैसला पूरा पाठक समुदाय करी. प्रभाकरो जी के बात एही से जस के तस राख दिहले बानी.
रहल ई बात कि कवनो सामग्री तबे प्रकाशित कइल जाव जब ऊ ओह लायक रहे त फेर हमरा प्रकाशन लायक सामग्रीये ना मिली. जे भोजपुरी लिखे वाला बा से नेट पर ना आवे आ जे लोग नेट पर आवे ला ओहमें से अधिकांश लोग लिखे ना, एहसे जवने मिल जाला प्रकाशित कर दिहिले. रोज रोज प्रतिष्ठित साहित्यकारन के रचना त नाहिये मिल पाई.
हमार मानना बा कि जब खूब लिखाये लागी त पढ़हूं लायक भेंटाये लागी. तबले मिले ... के माँड़ ना बिरयानी के फरमाइश! वाला उलझन में नइखीं पड़ल चाहत.
रउरा सभे के नेह मिलत रहो इहे कामना बा. ना त हमरा के के पुछेला? जे भा सबे बड़ बा योग्य बा. हम त बस स्वान्तः सुखाय अँजोरिया चलावत जा रहल बानी.
रउरा सभे के
संपादक, अँजोरिया.


‍अभयकृष्ण त्रिपाठी

हमहूँ कुछ कहल चाहत बानी के जवाब

संपादकजी नमस्कार,

का कहल जाव कुछ समझ में नईखे आवत काहे से कि ना त ई जवाब लेखक के बा, अउरी ना ही जवाब देबे वाला ओह बिन्दुअन पर प्रकाश डलले बाड़े जवन कि हम उठवले रहीं. जवाब देबे वाला त बस एकसूत्री कार्यक्रम लेके हमरा भाषा अउरी हमरा के असभ्य बतावे में जुट गईल बाड़े आ कुछ हद तक अंजोरिया के सोच अउर समझ पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिहले. हम ई त ना कहेब कि उनकर जवाब पोस्ट करके रउआ नीक कईलीं कि ना बाकि हम प्रभाकर जी के आपत्ति पर जवाब देबे के अनिच्छो पर जदि जवाब देत बानी त सिर्फ अंजोरिया खातिर.

हम प्रभाकरजी के आपत्ति के जवाब एक अउरी कारण से ना देबे चाहत रहीं, ऊ ई कि हम भला या बुरा ओही क बारे में सोचीले जेकरा से हम जुड़ल रहीले. अब जब कि लेख के मूल लेखक से हम कवनो रुप से जुड़ल नईखीं त ओकरा अच्छा बुरा क बारे में सोच के हम काहे परेशान होखीं? रहल सवाल प्रभाकरजी के आपत्ति के त हम एगो किस्सा सुनायेब..

नेताजी गाँव में जाके नरिया-नरिया के भाषण देबे शुरु कईले कि हम गाँव के हर घर में ए.सी लगा देब. सब लोग ताली बजा दिहलस बाकि कोई रहे जे (जेकरा के ए.सी के मतलब मालूम रहे से) उल्टे सवाल कईलस कि बिजली नईखे त ए.सी. लगा के का करेब? नेताजी पहिले त सोच में पड़ गईले फेर तुरते कहले कि हम ऐ लोग के आगे ले जाये के बात कर रहल बानी अउर तू लोग के पिछले में अझुराये रहे देबे चाहत बाड़!

भीड़ नेताजी के साथे रहे आ ज्यादातर लोग के ए.सी आ बिजली के सम्बंध क बारे में ना मालूम रहे. नतीजा ई भईल कि सवाल पूछे वाला भीड़ से पीटा गईल आ नेताजी उँहवा से सरक गईनी. बाकि जब सबके हकीकत मालूम भईल त ना ही नेता के पता रहे ना ही मार खाये वाला के.

ई किस्सा के बाद एतने कहेब कि या त अईसन बन जा कि केहू भी कवनो तरह के सवाल ना खड़ा कर सके. जईसन कि फिल्म शोले मे भईल रहे. जवना में बीहड़ गाँव में खूब ऊँच पानी के टंकी के हाईलाइट करत कई गो सीन रहे, बाकिर ओ समय केहू के ध्यान ना आईल कि जहाँ बिजली नईखे ऊहाँ एतना ऊँच पानी के टंकी काहे? ई सवाल आज के लोग हास्य प्रधान सीरियल चाहे मंच पर उठा के आपन कमाई करेला. या फेर सही सवाल सुने खातिर तैयार रहीं जा काहे से कि भीड़ के का बा? आज आपके साथ बा काल्हु मार खाये वाला के साथो हो सकेला!

अब हमरा तरफ से एह विषय पर कउनो जवाब तबहीं आई जब शैलेशजी के लेख पर कवनो दोसर जवाब आई भा फेर से केहू अँजोरिया के मेहनत अउर ईमानदारी पर सवाल उठाई.


चलीं, अच्छा कह दिहनी अभय जी. हमहूँ एह विवाद के ढेर लमरावल नइखी चाहत. संपादक.