आखिरकार मिलिये गइल भोजपुरी के सरकारी मान्यता

मारीशस टाइम्स से साभार

परमान्द सूबराह

कवनो बन्द कोठरी के उमसल दमघोंटू माहौल में केहू अचके कवनो खिड़की खोल देव त ताजा हवा के झोंका से जवन आनन्द मिलेला कुछ वइसने भइल जब मारीशस सरकार भोजपुरी के सरकारी मान्यता देबे के एलान कर दिहलसि. हर भोजपुरिया का तरफ से, आ ओह लोगन का तरफ से जेकर बाप दादा भोजपुरिया रहलन, आ ओह लोग का तरफ से जिनका मन में भोजपुरी के जियतार बनावे राखे के छोह बा, आ वृन्दावन लिंग्विस्टिक आ कल्चरल जेनोसाइड वाच ग्रुप का तरफ से हमनी का सरकार के आभारी बानी जा कि आखिरकार ऊ भोजपुरी भाषा के अस्तित्व त सकार लिहलसि. खास कर के हमनी का माननीय शिक्षामंत्री वसंत बनवारी के आभारी बानी जा जे एह प्रस्ताव के कैबिनेट से पास करववलन.

हमनी का इयाद बा कि एह देश, मारीशस, में आप्रवासियन के सबसे बड़ समूह के मातृभाषा भोजपुरी रहे, ऊ लोग चाहे यूपी से अइलन भा बिहार से, उनकर मजहब जवने होखो, एह एतिहासिक सच्चाई के झूठिलावे के भरपूर कोशिश कइल गइल. पिछला हफ्ता सरकार जवन चार भाषा के इज्जत दिहलसि ओह में से दूइये गो, फ्रेंच आ भोजपुरी, मारीशस में आवे वाला आप्रवासियन के मातृभाषा रहुवे. फ्रेंच बहुल क्रेओल भाषा के जनम अफ्रीका से आवे वाला अलग अलग भाषा बोलेवाला समूह अपना में बतियावे खातिर आ अपना मालिकन से बतियावे खातिर दिहलसि. आ जब हमनी के पुरनिया भारत से अइलें त बहुते क्रेओल भाषी समुदाय ओह लोग का साथ जीये रहे के तइयार रहलन. बाकिर चन्द लोग के, जे पढ़ल लिखल कहात रहे आ प्रभावशाली रहुवे उँख उपजावे वाला इस्टेटन में सुपरवाइजर रहे आ हमनी के पुरखन के भाषा के मजाक उड़ावल ज्यादा नीक लागे. एह सिलसिला में भाषा के एगो ऊंच नीच पैमाना बन गइल जवना में हमनी के भाषा सबले नीचे राख दिहल गइल. हमनी के बहुते पुरनिया एही चलते अपना भाषा के आ कुछ मामिला में अपना धरमो के छोड़े खातिर मजबूर हो गइलन. जवना तरह से हमनी के जिये के, रहे सहे के, बोले बतियावे के तौर तरीका के मजाक बना दिहल गइल आ औकर जवन दुष्प्रभाव भइल ओकरे के संयुक्त राष्ट्र समूह में भाषायी आ सांसंकृतिक जनसंहार कहल जाला. मानवाधिकार आयोग मारीशस में क्रेओल भाषा के हालत पर त लोर बहावेले बाकिर एह बात से एकदमे बेजानकार बनके कि उहे भाषा का चलते हमनी के मातृभाषा भोजपुरी आ संस्कृति के विनाश के जिम्मेदार बा.

भोजपुरी भाषा के बारे में कइल गइल घोषणा का साथे फ्रेंच, क्रेओल आ अरबिओ भाषा खातिर स्पीकिंग यूनियन बनावे के घोषणा कइल गइल बा. एहमें से अरबी भाषा कवनो समूह के मातृभाषा ना हऽ बलुक मुसलमानन के मजहबी भाषा हऽ. हम मुस्लिम समुदाय के एह बात खातिर बधाई देत बानी कि ऊ लोग अपना मजहबी भाषा के सरकारि मान्यता दिलवा देबे में सफल रहल जबकि हिन्दू लोग अपना धार्मिक भाषा संस्कृत खातिर कुछ ना कइल. प्रशासन के हमेशा ई कोशिश रहल बा कि हिन्दू लोगन के जतना हो सके ओतना टुकड़ा टुकड़ा कर दिहल जाव एह समुदाय के आ हमनी का एह चाल में फँसत गइनी सन.

के बचाई भोजपुरी के?

क्रेओल लोग अपना भाषा खातिर पुरजोर तरीका से काम कर रहल बाड़े. ऊ चाहत बाड़े कि क्रेओल के स्कूल में भाषा का तरह त पढ़ावले जाव, पढ़ाई के माध्यमो उहे रहे आ नेशनलो असेम्बली में ओकर इस्तेमाल होखो. ई बात प्रशंसाजोग बा आ हमनी के बधाई देत बानी ओह लोग के. आखिरकार जे अपना भाषा के इज्जत ना कर सकी ऊ अपना संस्कृति के का इज्जत दे पाई. आ अपना जड़ से कहियो ना जुड़ पाई.

ई देख के खुशी हो रहल बा कि दिन पर दिन अधिका से अधिका क्रेओल लोग अपना भाषा आ संस्कृति खातिर आगा आ रहल बा. जरुरत बा कि ठीक ओहि तरह भोजपुरिया समुदाय सरकार का लगे पिटीशन देव कि भोजपुरिओ के पढ़ाई के माध्यम बनावल जाव आ लड़िकन के स्कूल में शुरुआती कुछ साल एकरा के पढ़ावल जाव. साथ ही भोजपुरीओ के नेशनल असेम्बली में बोले जाये वाली भाषा के मान्यता मिलो.

हमनी का भुलाये क ना चाहीं कि एक जमाना में सत्तर फीसदी मारीसियन भोजपुरी बोलत आ समुझत रहलें. बाद में भोजपुरी का खिलाफ योजनाबद्ध तरीका से षडयन्त्र रचल गइल, कुछ खुला त कुछ गुपचुप. कहल जा सकल जाला कि ऊ षडयन्त्र बहुत हद तक सफल हो गइल बा. जबकि भोजपुरी दुनिया के आठ से दह करोड़ लोगन के भाषा हवे आ जवना के विश्वविद्यालयन में डाक्टरेट स्तर तक पढ़ावल जा रहल बा.

अब मंत्री महोदय से पुछल जाव कि भोजपुरी के भाषायी पढ़ाई आ पढ़ाई के माध्यम बनावे में उनकर का राय बा? ऊ एकरा पक्ष मे बाड़े कि खिलाफ में? एहिजा हम बता दिहल चाहत बानी कि हम खाँटी भोजपुरिया माहौल में बड़ भइनी आ हमरा दोसरा कवनो भाषा में, चाहे ऊ क्रेओल होखो, भा फ्रेंच, भा अंगरेजी, बोले बतियावे में दिक्कत होत रहुवे. हमार एगो चीनी दोस्त रहुवे आ उहो मजगर भोजपुरी बोल लेत रहुवे. कहल जरुरी नइखे कि हमार मुसलमानो संहतियन के भाषा भोजपुरिये रहुवे. आ हमनी में से केहू अपना जिनिगी में खराब ना निकलल.

कवनो भाषा संस्कृति के पसार के माध्यम होले, आ हम त ई कहल चाहेम कि अकेला माध्यम होले. से जदि कवनो संस्कृति के नाश करे के होखे त पहिले ओकरा भाषा के खतम कर दऽ. फेर ओकर संस्कृति एक पीढ़ी से दोसरा पीढ़ि ले ना जा पाई आ जल्दिये ऊ कतम हो जाई. हमनी के भोजपुरी भाषा आ संस्कृति का साथे इहे हो रहल बा. अब अधिकारी का एह भाषा आ संस्कृति के बचावल चाहत बाड़े कि एकरा के धीरे धीरे दर्दहीन तरीका से मर जाये दिहल चाहत बाड़े? अतना धीरे धीरे कि केहू के पतो ना लागो?