बांसगांव की मुनमुन – 15 वीं कड़ी

( दयानन्द पाण्डेय के बहुचर्चित उपन्यास के भोजपुरी अनुवाद )

धारावाहिक कड़ी के पन्दरहवां परोस
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( पिछला कड़ी में पढ़ले रहीं कि मुनमुन के बिआह हो गइल. गवना कुछ दिन बाद होखे के रहल. अब आगे के कहानी पढ़ीं. पिछलका कड़ी अगर ना पढ़ले होखीं त पहिले ओकरा के पढ़ लीं.)

सब कुछ बदल गइल रहल बाकिर गिरधारी राय ना बदललें. ऊ मुनमुन के बदनाम कइल चाहत रहलन. ठीक वइसहीं जइसे केहू सड़क का किनारे-किनारे चलल जात होखो आ ओकरा पाछै से आवत कवनो मोटरसाइकिल, कवनो कार, कवनो जीप, कवनो बस तेज़ रफ़्तार से आवे आ सड़क किनारे पड़ल कादो-कींचड़ के छींटा अनायास ओकरा पर मारत निकल जाव. बाकिर मुनमुन में अचानके आइल बदलाव उनकर शकुनी बुद्धि हेरा दिहले रहल, तबहियों उनुकर बूढ़ाइल आंख कीचड़ के छींटा कहां से कइसे मारल जाव, एही उधेड़-बुन में व्यस्त रहल.

गिरधारी राय के फ़ितरत रहल कि ऊ आपन इच्छाएं पूरा करे ला हमेशा दोसरा के, दोसरा के औजारन के इस्तेमाल कइल करसु. जइसे कि अगर केहू के मारे के होखो त ऊ इहे चाहसु कि बंदूक़ो दोसरा के होखे, कान्हो केहू अउर के, आ ट्रिगरो केहू तेसर दबावे. बस निशाना उनुकर लगावल होखो. आ आदमी मार दीहल जात रहल. बांसगांव में लंढन आ बूड़बक-बताहन के जमात बहुतायत में रहल. जे गिरधारी राय भा गिरधारी राय जइसना के हाथों इस्तेमाल होखहीं ला जनमल होखो. ठाकुर बहुल बांसगांव में गिरधारी राय ख़ुराफ़ाती जीनियस अइसहीं ना कहात रहलन. खैनी बनावत, खात, थूकत गांधी टोपी लगाात-उतारत बइठले-बइठल, बइठे के दिशा बदल का ज़ोर से हवा ख़ारिज करत गिरधारी राय बड़हनन के निपटा देत रहलन. हालां कि उनुकर बाबूजी रामबली राय जब जीयत रहलें त उनुका ला कहल करसु कि खाली दिनाग शैतान के घर होला! बाकिर गिरधारी राय कहत फिरसु कि, ‘इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से पढ़ल हईं. आ कवनो कोदो देके नइखीं पढ़ले.’

एक बेर एगो पूर्व विधायक गिरधारी राय से अझुरा गइलन. दबंगो रहलन आ ठाकुरो. हमेशा गोली बंदूक़ लिहले चार लोगन का घेरा में घूमल करसु. देशी शराब के कईए भट्टी रहली सँ, ईंट के भट्टो रहल, आ कट्टो बनवावल करसु अपना शोहदन ला. ठेको-पट्टा कीहल करसुु आ सब कुछ खुलेआम. कवनो परदेदारी ना. उलटे स्थानीय प्रशासनो उनुका भौकाल में रहुवे. काहें कि ओगह घरी के ठाकुर मुख्यमंत्री से उनुकर बिरादराना संबंध रहल. बड़हन संकट में पड़ गइल रहलन तब गिरधारी राय. तबहियों ओह पूर्व विधआयक महोदय के अपना बेंवत भर हिदायत दीहलन आ कहलन कि, ‘हमरा से जन अझुराईं बाबू साहब! नाहीं त जब सरे बाज़ार राउर पगड़ी उछली त पछताए लागब!’

‘जवन उखाड़े के होखे उखाड़ लीहऽ गिरधारी राय!’ पूर्व विधायक आपन मूछ अईंठत कहले रहलन.

गिरधारी राय तब त चुपा गइल रहलन बाकिर ई घाव ऊ कवनो घवाहिल नागिन का तरह अपना सीना में दफ़न क के बईठल रहलन. कुछ दिन बाद एगो नया एस.डी.एम. आइल. ऊ ना त प्रमोटी रहल, ना पी.सी.एस.. बलुक आई.ए.एस. रहल. बिहार के रहे वाला एह अधिकारी के ई पहिलका पोस्टिंग रहल. कद काठी से मजगर.ईमानदारी आ बहादुरी के जज़्बा से भरोूर. बस गिरधारी राय ओकरा का कैच क लिहलन. फ़ोन पर ओह एस.डी.एम. के पूर्व विधायक बाबू साहब के ग्रास रूट लेवल कव सगरी कुंडली सऊँप दिहलन. आ ओकरा के चढ़ावत कहलन, ‘अबहीं ले के सगरी एस.डी.एम. सब कुछ जानतो एह बाहुबली का सोझा सरेंडर क देसु. बाकिर सुने में आवऽता कि रउरा नौजवान हईं, बहादुर हईं अउऱ ईमानदारो. वे रउरे से उमेद बा!’

‘आप चिंता मत करीं!’ कह के एस.डी.एम. फ़ोन काट दिहलें.

आ सचहूं दू तीन दिन बादे से एस.डी.एम. ओह पूर्व विधायक के देशी शराब के भट्टियन, कट्टा के फैक्टरियन, ईंट भट्टन पर पर छापेमारी शुरू कर दीहलें. हफ़्ते भर में पूर्व विधायक के ग्रास रूट लेबिल के सगरी ताना बाना छितरा गइल. एक रात ऊ पूर्व विधायक एस.डी.एम. के फ़ोन लगा के पहिले त ओकरा के चेतवलन, फेर महतारी बहिन के गाली से नवाज़ दीहलन. आ कहलन कि, ‘नौकरी करे के बा त सुधर जा ना त कटवा के फेंकवा देब.’ ओने से एस.डी.एम. कुछ कहतन ओकरा पहिलहीं फ़ोन काट दीहलन. एकरा बाद एक दिन ऊ पूर्व विधायक महोदय अपना पूरा दल-बल का साथे बांसगांव बाज़ार से गुज़रत रहलन तबहियें एस.डी.एमो. सी.ओ. पुलिस अउर एस.ओ. बांसगांव संगे बाज़ार से गुज़रत रहलन. एक साथ अतना हथियार बंद लोगन के देख एस.डी.एम. भड़कलन आ सी.ओ. से पूछलन, ‘ई कवन हऽ, केकर कारवां हऽ?’ सी.ओ. फुसफुसा के ओह पूर्व विधायक के नाम बतवलन. त एस.डी.एम. अउरी भड़क गइलन. सी.ओ. के बोला, ‘तुरते इसके अरेस्ट करवाइए!’ सी.ओ. प्रमोटिओ रहल आ उमिरदराजो. अचकचात पूछलसि, ‘सर, एह तरह बाज़ार में?’ आगे जोड़लसि, ‘ठीक ना लागी.’

‘इहे ठीक रही.’ कह के एस.डी.एम. आपनी जीप पूर्व विधायक का सोझा ले जा के रोकवा दिहलें. आ ड्राइवर से पूछलन, ‘एहनी में से ऊ कवन हऽ?’ ड्राइवर धीरे से इशारा से बता दिहलसि. एस.डी.एम. जीप से उतर के सीधे ओह बाहुबली पूर्व विधायक का लगे चहुँप गइलन. पीछे-पीछे पूरा फोर्स मय सी.ओ. अउर एस.ओ. के.
‘रउरे पूर्व विधायक मिस्टर चंद हईं?’
‘हँ त, तूं के?’
‘हम एहिजा के एस.डी.एम. हईं.’
‘ओह त तोहार दिमाग अतना खराब काहें बा?’
‘ऊ त बाद में बताएब.’ एस.डी.एम. बोलन, ‘पहिले ई बताईं औह रात हमरा के गरियावत काहें रहनी?’
‘कह कि गरियाइए के तोहरा के बखश दीहनी. ना त मन करत रहे कि तोहार गरदन कटवा दीं.’ कहत पूर्व विधायक फेरू एस.डी.एम. पर माई बहीन के गारी के बौछार कर दिहलन.

एस.डी.एम. फेरू सी.ओ. का तरफ़ घूर के देखलन बाकिर सी.ओ. इशारे-इशारा में संकेत दिहलसि कि एहिजा से निकल लीहल जाव. बाकिर एस.डी.एम. बुदबुदईलन, ‘तुम सब डेरापूत हऊव.’ आ ख़ुदही पूर्व विधायक पर झपट पड़लन । तड़ातड़ तीन चार थप्पड़ मरलन आ गरेबान पकड़त नीचे ज़मीन पर ढकेल दीहलन. ज़मीन पर गिरावतो एस.डी.एम. तीन चार लातो लगा दीहलन. आ कहलन, ‘बहुत बड़ गुंडा हऊवऽ, बहुते बड़ ताक़त समुझेले अपना के?’
‘आइंदा से गरिआवे के हिमाकत मत करीहऽ आ आपन सगरी नाजायज़ धंधे बंद कर दऽ ना त हम बंद करवा देब. आ अइसन अइसन धारा लगाएब कि हाईओकोर्ट से जमानत ना ले पइबऽ!’
‘तोर त नौकरी खा जाएब!’ बाहुबली पूर्व विधायक ज़मीन पर पटाइले गुर्राइल, ‘तोरा मालूमे नइखे कि तूं केकरा पर हाथ उठवले बाड़ऽ’
‘देख, हम जवना जगहा से आ जवना झा परिवार से आइलें औहिजा दूइए तरह के लोग होला. या त आई.ए.एस. ना त नचनिया. आ हम हईँ आई.ए.एस. जवन बिगाड़े के होखो बिगाड़ लीहे.’ कहत एस.डी.एम. ओकरा के अउर एक बेर लतिया दीहलन. बाहुबली के सगरी हथियार बंद साथी आ बाज़ार के लोग टुकुर-टुकुर देखत रह गइल. आ एस.डी.एम. मय फ़ोर्स के औहिजा से चल गइल. भीड़ में गिरधारिऔ राय रहलन. एस.डी.एम. के जाते ऊ मूंछे में मुसकइलन आ बहुते फुरती से गिरल पड़ल बाहुबली पूर्व विधायक के उठवलन ज़मीन से आ उनुकर गरदा झाड़त कहलन, ‘का बाबू साहब केकरा से अझुरा गइनी रउरो! सब का के गिरधारी राय समझ लिहिलें रउरो! हरदम ठकुराई ठोंकला से नुक़सानो हो जाला कबो-कबो.’

बाहुबली अचकचात गिरधारी राय क देखलसि आ अगियाइल आँखिन घूरलसि. गिरधारी राय फेर बुदबुदइलन, ‘रसरी जर गइल बाकिर अईंढन ना गइल.’ कह के गिरधारी राय सरक लीहलन बाहुबलिओ एह अपमान से आहत रहलो पर अकड़त अपना लाव-लश्कर समेत चल गइल चहुँपल लखनऊ. मुख्यमंत्री से भेंट कइलसि आ जवना के कहल जाला पुक्का फाड़ के रोवल, वइसहीं पुक्का फाड़ के रोवलसि. आ जब लवटल त एस.डी.एम. के बदली करवाइए के. फेर जे ऊ एस.डी.एम. कहले रहल कि हमरा किहां या त आई.ए.एस. बनेला लोग ना त नचनिया. त ऊ बाहुबली उनुका के नचवा दिहलसि आ भरपूर. हर तीन महीना, चार महीना पर ओकर ट्रांसफर करावत गइल. आ उहो दुर्गम से दुर्गम जगहन पर . तब उत्तराखंड उत्तरे प्रदेश में रहल से सगरी पहाड़ नचवा दिहलसि. गिरधारी से केहू एह बात के चरचा कइल त ऊ साफ़ कह दीहलन कि, ‘अब ऊ नचनिया बने चाहे पदनिया, हमरा का?’ ऊ कहलन,‘हमार काम त हो गइल नू?’

आ सचहूं ओह दिन का बाद ऊ बाहुबली पूर्व विधायक अपमान के नारल दुबारा बांसगांव के ज़मीन पर डेग ना धरलसि. से गिरधारी राय बाते बात में जेकरा-तेकरा से शेख़ी बघारत कहसु, ‘बड़हन-बड़हन चंद को चांद बना दिहनी त तू कवन चीझू हउवऽ?’ चंद को चांद बनवला का बाद अब ऊ मुनमुनो के मून बनावल चाहत रहलन. चाहत त रहलन बाकिर कवनो तरकीब निकलो निकलत ना रहुवे. उनुका विवेको लउके ना. से सोचलन कि काहें ना एक बेर विवेक सिंह का घरे जा के ओकर हालचाल ले लीहल जाव. बाकिर फेर सोचसु के कहीं ऊनुकर पोल-पट्टी मत खुल जाव आ फैर लेबे का जगहा देबे के पड़ जाव. एक त घर आ पट्टीदारी के मसला रहल, दोसरे मुनमुन के भाई जज आ अफ़सरान रहलें. से ऊ डेरा जासु आ मन मसोस के रह जासु, वइसहूं अब ऊ बूढ़ा गइल रहलन. बाप के कमाइल सगरी धन बिलवा चुकल रहलन आ बेटा नाकारा हो गइल रहलन स. आपनो परेशानियां कुछ कम ना रहल उनुकर बाकिर दोसरा के परेशान करे में उनुका जवन सुख मिलल करे ओकर ऊ का करसु?

विवश रहलन. अवश रहलन. एह सुख का आगा, मुनमुन के मून बनावे का तड़प में ऊ एगो विज्ञापन के स्लोगन गुनगुनाइल करसु – ये दिल मांगे मोर! बिलकुल कवनो बचवा का तरह. ओने मुनमुन के, मुनक्का के, मुनमुन के अम्मा के तकलीफ-बेमारी बढ़ल जात रहल. खरचो बढ़ गइल रहल आ बेमारिओ. ख़ास क के मुनमुन के टी.बी. ओकरा के हलकान क दिहले रहल. अब कब-कबो ओकरा खाँसी का साथे खूनो आवे लागल रहल. हालां कि टी.बी. अब कवनो असाध्य बीमारी ना रह गइल रहल. बाकिर हीं नियमित इलाज अउर दवाई ना हो पावत रहुवे. डाक्टर कहसु कि एको दिन दवाई नागा हो जाई त सगरी इलाज अकारथ हो जाई. दवाई कर पूरा कोर्स बिना नागा पूरा करे के रहल. बाकिर आर्थिक थपेड़न का चलते गाहे-बगाहे भा कबो लापरवाही का चलते नागा होइए जाव. मामला बिगड़ जाव. बाबू जी समझवलो करसु कि, ‘सब कुछ छोड़ दवाई लग के करऽ.’ फेर पत्नी से भनभनासु, ‘मुनमुन के मनमानी बढ़ गइल बा. ओकरा के रोकऽ ना त कवनो दिन ऊ आपन जान ले ली.’

‘हमरो कहल अब ऊ कहांँ मानेले?’ मुनमुन के अम्मो भनभनासु.

धीरे-धीरे दिन बीतल. दिन, हफ्ता. महीनन में बीता. मुनमुन के ससुराल से गवना के दिन आ गइल. मुनमुन तनिका मुनमुनाईल कि, ‘अबहीं ना. हमार बेमारी ठीक हो जाव पहिले’ बाकिर मुनक्का राय ना मनलन. गवना के दिन सकार लीहलन. एक महीना बाद के दिन. बेटनो के खबर दे दीहलन. राहुल हमेशा का तरह फेरू हवाला से बीस हज़ार रुपिया भेज दिहलसि आ बता दिहलसि कि, ‘अबहीं हम ना आ पाएब.’ तरुण कहलन, ‘मुश्किल त बा, बाकिर कोशिश करब.’ धीरज कुछ साफ ना कहलन बाकिर रमेश कहलन कि, ‘आएब. बाकिर कुछेके घंटा ला. सिर्फ़ विदाई का बेरा.’

से सगरी तइयारी मुनक्का अकेले कइलन. ख़रीददारी से ले कर मिठाई-सिठाई तक के. बाकिर पहिला काम ऊ ई कइलन कि राहुल के भेजल रुपिया से मुनमुन के टी.बी. के दवाई डेढ़ साल ला इकट्ठे ख़रीद दीहलन. आ ओकरा के हिदायत दे दीहलन कि बिना नागा दवा खा लिहऽ. आधा अधूरा तइयारियन का बीच गवना हो गइल. ऐन विदाई के आधा घंटा पहिले रमेश बांसगांव सुबह-सुबह पहुंचलन आ मुनमुन के विदाई करवा के, अम्मा, बाबू जी के बिलखत छोड़ चल गइलन. अम्मा कहबो कइली कि, ‘बाबू तूं पहिले त अइसन निष्ठुर ना रहलऽ?’ जवाब में ऊ चुपे रहलन. बाद में चउथो के दउड़ा-दउड़ी ले के मुनक्का राय अकेलही गइलन. बाकिर उनुका मुनमुन ससुराल में ख़ुश ना लागल. ऊ चिंतित भइलन. भारी मन से बांसगांव लवटि अइलन. गवना का पंद्रह दिन भितरे मुनमुन के फ़ोन आइल कि, ‘बाबू जी, अगर हमरा के जिन्दा देखल चाहत बानी त तुरते आ के हमरा के लिवा जाईं.’ अतने कह के मुनमुन फ़ोन काट दिहलसि.

मुनक्का राय केहू से राय मशविरो ना कइलन आ सरपट भगलन मुनमुन के ससुराल. लवटलें त मुनमुन के लिवाईए के. मुनमुन के अम्मा मुनमुन के अचानक देखते हकबका गइली. कहली, ‘ई का भइल?’ मुनमुन अम्मा से लिपट गइल आ दहाड़ मार-मार के रोवे लागल. रोवते-रोवत अपना दुख के गाथा बतावे लागल. रोवल-धोवल सुनि के आस-पड़ोस के औरतो जुट गइली सॅ. साँझ ले सगरी बांसगांव के मुनमुन के ससुराल से बैरंग वापस अइला के ख़बर मालूम हो गइल. मुनमुन का घरे ओह रात चूल्हा ना जलल. मुनक्का राय पर त एह बुढ़ौती में जइसा ठनका गिर पड़ल रहुवे. ठकुआ मार दिहले रहुवे उनुका के. भर रात नींदो ना आइल. सबेरे एगो पड़ोसिने चाय नाश्ता ले के अइली. कुछ शुभचिंतक, हित-चिंतक, आ मज़ा लेबे वाला लोग आ चहुँपल. केहू से ना त मुनक्का कुछ बोलले, ना मुनमुन, ना मुनमुन के अम्मे. मुनमुन आ मुनमुन के अम्मा हर सवाल पर जवाब में बस रोवते रहली. आ जब बहुते हो गइल त मुनक्का राय एगो शुभचिंतक के बार-बार पूछला पर कि, ‘आखि़र भइल का?’ का जवाब में बस अतना बुदबुदइलन, ‘अब का बताईं कि का हो गइल?’ आ मूड़ी गोत लीहलन.

कई लोग पीठ पीछे कहल, ‘जवने होखो, अतना जल्दी बेटी के वापिस ना ले आवे के चाहत रहल मुनक्का के.’ केहू कहल, ‘रायो मशविरा त ना कइलन केहू से’ ते केहू अंदाज़ा लगावल, ‘लागत बा कि बेटवनो के अबहीं नइखन बतवले.’ तरह-तरह के बात, तरह-तरह के लोग. ‘वकील हउवन भइया. ख़ुद समझदार बाड़न. दोसरा के सलाह देलें बाकिर ख़ुद ना लेलें.’ एगो एक्सपर्ट कमेंट मुनक्को राय के कान ले चहुँपल. पलट के ऊ सिर्फ़ घूर के देखलन एह टिप्पणीकार के, त ऊ गँवे सरक लिहलसि कि कहीं वकील साहब के सगरी खीस ओकरे पर मत बरस जाव! ख़ैर, लोगन के आवाजाही कम भइल आ बात धीरे-धीरे खुलल. खुलल आ खुलत चल गइल. तिल के ताड़ बन के बांसगांव में मेहराइल गोईंठा का तरह सुलगत धुंआ का तरह पसरत गइल. बात विवेको ले चहुँपल. बाकिर ऊ चाहियो के आइल ना. मारे डर के कि कहीं फेरू पिट-पिटा गइल तब?

ह़फ्ता भर बाद घनश्याम राय दू लोग का साथे अइलन आ मुनक्का राय से बोललन, ‘वकील साहब, रउरा ओह बेरा खिसी आग रहनी से ओह दिन रउरा से कुछ ना कहनीं आ रउरा बेटी के विदा क दिहनी. अब खीस शांत करीं आ निहोरा बा कि हमरा बहू के विदा कर दीं!’ बाकिर मुनक्का राय शांत रहलन कुछ बोललन ना. बोलली मुनमुन के अम्मा आ दरवाज़ा का अलोता से ख़ूब बोलली, ‘राउर लड़िका जब लुक्कड़-पियक्कड़ रहल त रउरा झूठ काहे बोलनी कि पी.सी.एस. के तइयारी करत बा? राउर लड़का जब पगलाइल बताह का तरह घूमत फिेरेला एहिजा-ओहिजा त रउरा कहनी कि इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में पढ़त बा? आ अतना बड़का का घर में हमरा बेटी के उपवास कर के रहे पड़ल. रउरा घर में भरपेट खाना ला तरस के रहि गइल हमार बेटी. राउर बेटा त अबहीं ले हमरा बेटी के मुँहो नइखे देखले. ई सब का ह? राउर पत्नी आ बेटी हमरा बेटी के सतवली सँ आ ताना मारत रहली सँ? नया नवेली बहू से कइसन-कइसन काम करवनी सभे? आ चाहत बानी कि अपना बेटी के फेरू ओही नरक में भेज दीं. मरे खातिर? लांछन आ अपमान भुगते ला?’

‘देखीं समधिन जी, रउरा बेकारे खिसियात बानी. बाति अतना बड़ नइखे जतना रउरा समुझत बानी.’

‘हम सब समुझत बानी.’ मुनमुन के अम्मा दरवाज़ा का अलोते से बोललौ, ‘हमार बेटी अइसे ना जाई, बस कह दिहनी.’

‘चलीं, जब राउर अइसने राय बा त समधिन जी हम का कर सकत बानी?’ घनश्याम राय मुनक्का राय से मुख़ातिब होखत कहलन, ‘वकील साहब रउरे कुछ विचार करीं आ समधिन जी के समुझाईं.’

बाकिर मुनक्का राय चुपे रहलन. बोली उनुकर पत्निए, ‘समुझाईं रउरा पहिले घर के लोगन के आ अपना बेटा के सुधारीं पहिले. तब आईं.’

‘हमरा घर में त वकील साहब मेहरारु मरदन से एह तरह से ना बतियाली सँ.’ घनश्याम राय बोललन, ‘का रउरा घरे मेहरारुए बोलेली सँ, मरद ना?’

‘ख़ैर, मनाईं कि मरद हमरा घर के अबहीं ले राउर करतूत नइखन जनले सँ.’ मुनमुन के अम्मा दरवाज़ा का अलोते से बोलली, ‘जवना दिने हमार बेटा जान गइले सँ रउरा करतूतन के, त कच्चे चबा जइहें सँ. रउरा अबहीं जानत नइखीं कि कवना परिवार से राउर पाला पड़ल बा?’

‘जानत बानी समधिन जी, जानत बानी. रउरा घर में सब लाट गवर्नरे भरल बाड़ें. अतना बड़ लाट गवर्नर कि एगो बहिन के सम्हार ना पइले सँ. बहिन आवारा हो गइल. बूढ़ महतारी-बाप के देख ना पावऽ सँ कि ऊ मरत बाड़ें कि जीयत बाड़ें.’ घनश्याम राय बोललन, ‘हमहूं जानत बानी रउरा परिवार के लाट गवर्नरी!’

‘अब रउरा कृपा कर के चलीं आ विदा होखीं!’ मुनक्का राय बिलकुल शांत स्वर में हाथ जोड़त घनश्याम राय से कहलन, ‘रउरा कुछ अधिके बोलत बानीं.’

‘अब रउरा अपना दरवाज़ा पर हमार अपमान करत बानीं वकील साहब!’ घनश्याम राय अउर भड़कलन.

‘जी ना. हम पूरा सम्मान सहित रउरा से निहोरा करत बानीं कि कृपया आप विदा होखीं आ तुरते प्रस्थान करीं.’ मुनक्का राय फेरू हाथ जोड़लहीं शांत स्वर में घनश्याम राय से कहलन.

‘चलीं. जात त बानी बाकिर रउरा दरवाजा पर भइल एह अपमान के कबहियों ना भुलाएब.’

‘मत भूलाएब आ फेर अइबो मत करब.’ पूरी सख़्ती से बाकिर पूरा शांति से मुनक्का राय कहलन.

‘त ई आखिरी बा हमरा ओर से?’ घनश्याम राय तड़कलें.

‘जी हँ, ईश्वर करसु कि ई आखिरिए होखे.’ मुनक्का राय के धीरज अब जबाब देत रहल.

‘आखि़र परेशानी का हो गइल वकील साहब?’ घनश्याम राय हथियार डालत बोललन, ‘आखि़र हम लड़िका वाला हईं!’

‘लड़िका वाला हईं त हमरा मूड़ी पर मूतब का?’ मुनक्का राय बोललन, ‘हम अपना के असुविधा का बारे में बतियवनी आ रउरा हमरा बेटी के आवारा घोषित कर दिहनी. हमरा रतन जइसन बेटन पर जिनका पर हमरे ना पूरा बांसगांव आ सगरी गांव जवार के गुमान बा. ओहनी पर छिछला टिप्पणी कर दिहनीं. एह कारण कि रउरा बेटहा हईं आ हम बेटिहा? आ पूछत बानी कि परेशानी का बा? हम बात टाले खातिर चुप बानी त रउरा कहत बानी कि हमरा घर में मरद ना मेहरारुए बोलेली सँ? राउर बेटा पी.सी.एस. का होखेला त छोड़ीं ऊ ए.बी.सी.डी. ले ना जाने आ रउरा झूठहूँ ओकरा पी.सी.एस. के तइयारी के ड्रामा रचि के हमरा फूल जइसन बेटी के जिनिगी तहस नहस कर दिहनी. आ मरद बनत बानीं? ई कहां के मर्दानगी ह?’ मुनक्का राय अतना कहतो आपन संजीदगी मेनटेन रखलन आ हाथ जोड़त फेरू कहलन, ‘कृपया विदा होखीं सभे.’ उनुका एह विदा होखे के संबोधन में ध्वनि पूरा के पूरा इहे रहल कि जूता खा लिहनी सभे आ अब त जाईं. घनश्याम राय आ उनुका साथे आइल दुनू परिजनो के चेहरा के भाव जात घरी अइसने लागत रहल मानो सौ जूता खइले होखे लोग. घनश्याम राय का समधियान में अइसना स्वागत के उम्मीद ना रहल. ऊ हकबक रहलन.

उनुका साथे आइल हितो-नात अपना के कोसत रहलें कि ऊ घनश्याम राय का साथे एहिजा एह तरह अपमानित होखे काहें आ गइलेंने क्यों आ गए? एक जने घनश्याम राय के रास्ता में कोसत कहतो रहलन कि, ‘बांसगांव के लोग वइसहीं दबंग आ सरकश होखेला. तेह पर इनकर बेटा जज आ अफ़सर. करेला आ नीम चढ़ल! के कहले रहल कि बेटा के शादी बांसगांव में करीं?’ दोसरो एगो परिजन पहिलका के सुर में सुर मिलावत बोलालन, ‘बांसगांव थाना कचहरी, मार-झगड़ा के जगहा ह. रिश्तेदारी करे के जगहा ना!’

‘अब रउरा सभे चुपो होखब कि ना? कि अइसहीं बांसगांव के सांप से डसवावत रहब?’ घनश्याम राय आजिज़ आ के बोललन, ‘वइसहीं ससुर हमार दिमाग भन्नाइल बा.’

घनश्याम राय सचहूँ होश में ना रहलन. दू दिन बाद ऊ रमेश के फ़ोन लगवलन आ रोवे लगलन, ‘जज साहब हमार इज़्ज़त बचाईं! हमार इज़्ज़त अब रउरे हाथ में बा!’

‘अरे भइल का घनश्याम जी? कुछ बतइबो करब कि औरतन का तरह रोवते रहब?’

‘रउरा कुछ मालूम नइखे?’ घनश्याम राय बुझक्कड़ी कइलन.

‘अरे बतइबो करब कि बुझउवले बुझावत रहब?’ रमेश खीझिया के बोललन.

‘अरे राउर बाबू जी नाराज हो के हमरा बहू के पंद्रहे दिन बाद लिवा ले गइलन आ अब बातो करे ला तइयार नइख. हम बांसोगांव गइनी, बेटहा होखला का बावजूद. छटाको भरके हमार इज़्ज़त ना कइलन.’ घड़ियाली आंसू बहावत घनश्याम राय कहलन, ‘आ देखीं ना रउरा जनतब में कुछऊ नइखे.’

‘पता त नइखै बाकिर हमार बाबू जी एह स्वभाव के त हईं ना, जइसन रउरा बतावत बानी.’ रमेश बोललन, ‘तबहियों अगर अइसन कुछ भइल बा त रउरो किहां से कुछ ना कूच भूल-चूक जरुरे भइल होखी. तबो हम पता करत बानी पहिले कि आखिर बात का बा? तबे कुछ कह पाएब.’

‘हँ, जज साहब अब रउरे हमार आस, हमार माई-बाप बानीं.’

‘अइसन मत कहीं आ धीरज राखीं.’ कह के रमेश फ़ोन काट दिहलन.

कुछ देर ले त ऊ भकुआइल बइठल रहलें. दुनिया भर के पेंचदार मामिला निपटावे आ फ़ैसला सुनावे वाला रमेश अपने घर का मामिला में घबरा गइलन. पत्नी के बोला के बइठवलन आ घनश्याम राय के फ़ोन वाली बात बतवलन. रमेश के पत्निओ चिंतित भइली आ कहली, ‘पहिले रउरा बांसगांव फ़ोन क के सगरी बात जान लीं फेर कुछ करीं.’

‘ऊ त करबे करब बाकिर एह तरह रिश्ता में खटास आवे से डर लागत बा कि कहीं रिश्ता टूट मत जाव.’

‘मुनमुन बहिनी शादी के पहिलहीं से कुछ संदेह में रहली ई रिश्ता ले के. बाकिर उनुकर बात पर केहू धेयाने ना दीहल. सभ लोग मजाक में टारत चल गइल.’

‘त तूं हमरा के काहे ना बतवलू?’ रमेश पूछलन.

‘का बतवतीं जब सब कुछ तय हो गइल रहल. ऐन तिलक में का बतवतीं?’

‘हँ, चूक त भइल बा.’ रमेश बोललन, ‘चलऽ देखल जाव.’ फेर ऊ बांसगांव फ़ोन मिलवलन. फ़ोन पर अम्मा मिलली. रोवे लगली, कहली, ‘अब जब सब कुछ बिगड़ गइल तब तोहरा सुधि आइल बा?’

‘अम्मा आखिर भइल का बा?’

‘सब कुछ का फ़ोने पर जान लीहल चाहत बाड़ऽ?’ अम्मा पूछली, ‘का मुक़दमो के फ़ैसला फ़ोने पर लिखवा देलऽ?’

‘ना अम्मा, तबहियों?’

‘कुछ ना बाबू. अगर बहिन के इचिको फिकिर बा त दू दिन ला आ जा. मिल बइठ के मामिला सलटावऽ.’

‘ठीक बा अम्मा!’ कह के रमेश फ़ोन कटलन आ धीरज के मिलवलन आ मामिला बतावत कहलन कि, ‘अम्मा चाहत बाड़ी कि बासंगांव पहुंच के मिल बईठ के मामिला निपटावल जाव.’

‘त भइया हमरा लगे त अबहीँ समय बा ना. घनश्याम राय राउर पुरान मुवक्किल हवे. समुझा-बुझा के मामला निपटवा दीं.’ धीरज बोलल, ‘आ हमरा बुझात बा कि मुनमुन के उहे नासमझी होखी, शादी के पहिले वाली. बातचीत क के ख़त्म करवा दीं विवाद.’

‘चलऽ देखत बानी.’ कह के रमेश अब तरुण के फ़ोन मिलवलन आ सगरी मसला बतवलन. कहलन कि, ‘तुहूं साथे रहीतऽ त बातचीत में आसानी रहीत. काहें कि सगरी बात हमहीं करीं त मामिला के गंभीरता टूटी. तू-तू-मैं-मैं से हमहूं बचल चाहत बानी. धीरज आ ना पइहन आ राहुल अतना दूर बा, केहू अउर के घर का मामिला में डालल ठीक ना होखी.’

‘ठीक बा भइया. कवनो लगातार दू दिन के छुट्टी देखि के दिन तय कर लीं आ बता दीं हमरा के, पहुंच जाएब.’

रमेश दिन तय करि के तरुण के बता दीहलन आ घनश्यामो राय के. आ साफ़-साफ़ कह दीहलन कि, ‘बातचीत में रउरा आ राउर बेटा इहे दुनू रहब, तेसर केहू ना.’

‘त पंचायत के प्रोग्राम बनवले बानी का जज साहब, कि इजलास लगवाएंब?’ घनश्याम राय बिदक के बोललन.

‘देखीं घनश्याम जी, अगर मामिला निपटावल चाहत बानी त एह तरह मत बतियाईँ. ना त फेर हमार आइल मुश्किल होखी. आईं कि आइल कैंसिल करीं?’

‘अरे ना-ना जज साहब. रउरा त तनिका मज़ाक पर नाराज़ हो गइनी!’ घनश्याम राय जी-हुज़ूरी पर आ गइलन.

‘रउरो जानत बानी कि हमार राउर रिश्ता मजाक वाला ना हवे.’ रमेश पूरा सख़्ती से बोललन, ‘आइंदा एह बात के ख़याल राखब. आ हँ, अबहीं हमरा ई मालूम नइखे कि भइल का बा. हमरा तनिको नइखे मालूम. बासंगांव आइए के बात जानब, समुझब आ तब कुछ कहब. एगो बात फेरु जान लीं कि बातचीत में रउरा आ राउर बेटे रहिहें. तेसर केहू ना. हँ अगर रउरा चाहीँ त राधेश्याम के माता जी के ले आ सकिलें. बस. आ इहो बता दूं कि हमरो तरफ से हमार बहीन, हमार एगो भाई, अम्मा आ बाबूजी रहिहें. दोसर केहू ना.’

‘जी जज साहब!’

‘आ हआ, बातचीत करे खुला मन से आएब. पेशबंदी वग़ैरह हमरा पसंद ना होखी पारिवारिक मामिला में.’

‘जी, जज साहब!’ घनश्याम राय कह त दीहलन बाकिर घबराइओ गइलन. ई सोच के कि अपना बेटा के नालायकियत के कइसे तोपिहें? तिस पर जज साहब कह दीहलन कि कवनो पेशबंदी ना. जज के निगाह ह, ताड़ त लीहि पेशबंदी! तबहियों ऊ पेशबंदी में लाग गइलन. एकरा बिना दोसर कवनो उपाय रहे का? पहिला पेशबंदी ऊ ई कइलन कि अकेलहीँ बांसगांव जाए के सोचलन. आ तय कइलन कि बहुते जरुरी भइल त बेटा से फ़ोन पर बात करवा दिहें. ज़रूरत होखी त पत्निओ से फ़ोने पर बातचीत करवा दीहन. बाकिर जइहन अकेलही. जवने इज़्ज़त-बेइज़्ज़त लिखल होखी, अकेलही झेलीहन. फ़ोन पर संभावित सवालन के जवाबो पत्नी आ बेटा के रट्टा लगवा दिहलें आ समुझा दिहलें कि बातचीत में पूरा विनम्रता बनवले राखे के पड़ी. बस एक बेर जज के बहीन आ जाव घर में फेर ओकरा जजी के सगरी परखचा उड़ा दिहें. बस आ त जाव एक बेर.

(अब रउऱो सभे के उत्कंठा रही कि बांसगांव में का बतकही होखी. घबश्याम राय शायद मुनमुन के अबहीं ले बढ़िया से जानत नइखन.कोशिश रही कि अगिला कड़ी जल्दिए परोस पाईं – अनुवादक)

 

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