21 मार्च 2009 का दिने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत अब तकले मनोनीत आवत गइल संघचालकन में सबले कम उमिर के रहलन. आये दिन अपना कवनो ना बयान से ऊ देश के हिन्दूवन का सोझा सवाल बन के खड़ा हो जालन कि पता ना ई आदमी सोचल का बा. कई बेर इनका बयानन से भाजपा के खटिया खड़ा होत आइल बा. कहे के त कहल जाला कि -‘बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताय’ बाकिर पता ना मोहन भागवत के अपना बयानन पर पतछावा होखेला कि ना
अब एक बेर फेरू इनका बयान से देश के करोड़ों हिन्दूवन के चोट चहुँपल बा. संघ के स्वंयसेवक रहला का जानते अतना संस्कार त हमरो होखे के चाहीं कि इनका नाम के आदर के साथ लीहल करीं. आ हमारा जइसन करोड़ों स्वंयसेवक अइसन भेंटा जइहें जिनका मोहन भागवत के हालिया बयान से चोट चहुँपल होखी. पता ना कइसे उनका भरम हो गइल बा कि हिन्दूवन के ठीकेदार हउवन ऊ भा राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का अलावा दोसरा केहू के हिन्दू हित के बात ना करे के चाहीं.
बियफे का दिने पुणे में ‘हिंदू सेवा महोत्सव’ के उद्घाटन करत घरी अपना मराठी संबोधन में ऊ जवन कहलन तवना के भोजपुरी में कहीं त कहलन कि रोजे मंदिर मस्जिद के एगो नया वितण्डा ले के कुछ लोग खड़ा हो जात बा. शायद अइसन लोग के लागत बा कि ई सब करि के ऊ हिन्दूवन के नेता बन जइहें.
उनकर ई बयान कतना खतरनाक बा एकरा के एही से समुझल जा सकेला कि सगरी बँवारा गिरोह, मुल्ला मौलवियन के टोली, आ लुटियन मीडिया उनकर वाहवाही करे लागल बा. हिन्दू हित के बात करे वाला हर आदमी के स्वागत होखे के चाहीं. हिन्दू एकचालकानुवर्तित्व का सिद्धान्त पर ना चले. एकोहम द्वितियो नास्ति के दर्शन हमनी के रहल बा बाकिर तैंतीस प्रकार के देवी-देवतन में श्रद्धा राखे वाला हिन्दू कवनो एक मार्ग पर ना चले. ई शायद अकेला मजहब ह हिन्दू के जे नास्तिक रहियो के हिन्दू रहि सकेला. ना त कवनो एक धर्म-ग्रन्थ, ना एगो भगवान, एगो दूत के बात करेला हिन्दू सम्प्रदाय. साँच कहीं त हिन्दू के संप्रदाय, मजहब, भा रिलिजन कहले ना जा सकेला. हिन्दू त स्वतंत्र होला कवनो देवी-देवता के माने भा ना माने के, ऊ अपना धर्मोग्रंथन पर बहस कर सकेला, ऊ अपना भगवानो से सवाल पूछ सकेला. एहसे अगर कवनो संघी के ई लागे कि हम मोहन भागवत के आलोचना कर के गलत करत बानी त ऊ मन से हिन्दू होइये ना सके.
समस्या इहे बा हिन्दूवन के कि ओकरा ला लड़े वाला लोग कम मिलेलें बाकिर ओकरा के समर्पण करे के सीख देबे वाला बहुते मिल जालें. ई कायरता हिन्दूवन के डीएनए मे रच-बसि गइल बा. आ इहे मोहन भागवत के ओह बात के झुठला देला कि – सभकर डीएनए एके ह. काहे कि मुस्लिम संप्रदाय में ई कायरता कबो देखे के ना मिले. ऊ अपना मजहब खातिर मरे भा मारे ला हमेशा तइयार रहेलें आ हम एह बात ला उनुकर प्रशंसा करीलें. हिन्दुवनों में इहे मरे आ मारेवाला भावना जगावल जरुरी बा.
आ भागवत जी हर मस्जिद का नीचे शिवलिंग खोजला के जरूरत कहां बा, ई त हर जगहा मौजूद बा. काशी विश्वनाथ मंदिर आ ज्ञानवापी के देखे वाला हर हिन्दू देखेला कि कइसे मंदिर के भग्नावशेष के संजो के राखल गइल बा ओह ज्ञानवापी मस्जिद में. एकर मकसद सिर्फ इहे रहल कि हिन्दू जानस आ मानस कि उनका के जतना मन करे कचारल जा सकेला आ अगर जे केहू सवाल उठावे के कोशिश करी त कवनो ना कवनो मोहन भागवत अपनहीं आ जइहें.
धिक्कार बा अइसना लोग पर आ अइसना सोच पर !
सुनले बानी कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक रहल परमपूज्य माधव सदाशिवराव गोलवलकर जी आपन सराध अपना जियते जिनिगी में अपनहीं कर लिहले रहलन. आजु देखत बानी कि मौजूदा सरसंघचालक संघे के सराध करावे पर आमाद बाड़न.
प्रतिनिधि सभा के एह बात पर विचार करे के चाहीं आ हो सके त इनका के अवकाश लेबे ला तइयार करावे के चाहीं.
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