अनिल ओझा ‘नीरद’ के दू गो गीत
  • अनिल ओझा ‘नीरद’

(एक)

दोसर का बूझी इहवाँ, दोसरा के बेमारी?
ऊ त बूझऽतारी चीलम, जेह पर चढ़ल बा अँगारी।।

देशवा के देखऽ अपना, आजु इहे हाल बा।
नेता लोग का करनी से, जनता बेहाल बा।।
मुट्ठी भरि भइले ई त, अंजुरिन्हि प’ भारी।
बूझऽतारी चीलम, जेह पर चढ़ल बा अँगारी।।

आवेला चुनाव, इनिका ओठे परे फेफरी।
खोजे लागसु अबकी उद्धार हमार के करी?
जितला पर चमचनि के, भीड़ि लागे भारी।
बूझऽतारी चीलम, जेह पर चढ़ल बा अंगारी।।

एगो पारटी के शासन, अब त मोहाल बा।
मिलि-जुलि लूटें सभे, जनता के माल बा।।
घुरहू-कतवारूवो के, पाँव भइल भारी।
बूझऽतारी चीलम, जेह पर चढ़ल बा अँगारी।।

केकर बाटे राज, केकरा के गोहराईं?
बढ़ल ना कमाई, जेतना बढ़ल मंहगाई।।
पेटवे ले नइखे खाली, सइ गो बेमारी।
बूझऽतारी चीलम, जेह पर चढ़ल बा अंगारी।।

(दू)

किस्मति के हऽ खेल कि
हउवे समय के अइसन घानी।
जहवाँ जाली खेहोरानी, तहवाँ मिले आगि ना पानी।।

समय देखावे रंगई अइसन, बड़े-बड़े बहि जाले।
कुल्हिये अक्किलि कुल्हिये ताकत, कइल-धइल रहि जाले।
चतुर सुजान बनेले उजबुक, मति होई हलकानी।
जहवाँ जाली खेहोरानी, तहवां मिले आगि ना पानी।।

रावण आगे राम कबों, भीलन के आगे अर्जुन।
कबो कृष्ण रणछोड़ कहइले, समय के अइसन दुर्गुन।।
शक्ति नाहीं, समय हवे बलवान, इ रउआ मानीं।
जहवाँ जाली खेहोरानी, तहवां मिले आगि ना पानी।।

समय चलावे चक्र त तेजो तीर, कुंद होई जाला।
राजमहल के हरिश्चन्द्र, एक दिन फकीर होइ जाला।।
चोट सहे के हिम्मत चाहीं, लिखि जाई नया कहानी।
जहवाँ जाली खेहोरानी, तहवां मिले आगि ना पानी।।

मति समुझीं कमजोर इहाँ पर सब बाटे बलवान।।
तब काहें के हीन समझ, केहू के दूसत बानी।
जहवाँ जाली खेहोरानी, तहवां मिले आगि ना पानी।।

हावड़ा, कोलकाता (पं0 बंगाल)

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