अबहीं ले ना बिहान भइल का गजल कहीं


– शैलेन्द्र पाण्डेय शैल

(एक)

संउसे उमिर जियान भइल का गजल कहीं
जियले बिपति के खान भइल का गजल कहीं।

चाहत पियार इश्क के चक्कर बुरा चलल
चोटहिल बड़ा परान भइल का गजल कहीं।

जनलीं न हम कि लोग नजर अइसे फेरि ली
आपन रहे ऊ आन भइल का गजल कहीं।

पइसा न गाँठ में न निंदरिये बा आंख में
बबुनी घरे सेयान भइल का गजल कहीं।

मजमा लगा के भीड़ में जमकल अन्हार बा
मुदई सुरुज आ चान भइल का गजल कहीं।

सँझहीं रहे सुनात कि नियरे फजीर बा
अबहीं ले ना बिहान भइल का गजल कहीं।

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(दू)

साँस जवने घरी ठहरि जाई
बोझ सब माथ से उतरि जाई

चारि दिन तक ले रोई गाई लोग
का करी, फेरु सब बिसरि जाई

वक्त हर दर्द के दवाई हऽ
घाव कुछ दिन का बाद भरि जाई

जिन्दगी कुछ घरी के मेला बा
सांझि होई त सब छितरि जाई

सब संगेरले बा गांठि रूई के
एगो लुतुकी में सारा जरि जाई

रंग, खुश्बू केहू भी ना पूछी
फूल टहनी से जहिया झरि जाई

फेरु त चर्चा ओही के रहि जाला
काम जइसन जे शैल करि जाई।

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(तीन)

नाँव के बस निजाम बा साहेब
झूठ सब ताम-झाम बा साहेब

सिर्फ मुंहवे के बादशाही बा
मन से सभई गुलाम बा साहेब

लोग रखले बगल में बा छूरी
मुंह में भर राम राम बा साहेब

झूठ गीता कुरान के किरिया
सांच एहिजा हराम बा साहेब

रोग बहरी बा दवा का जद से
अब त बहुते अराम बा साहेब

शैल मां -बाप के खियाल रखीं
सब इहें चारु धाम बा साहेब।

रेशमा सदन, चित्रगुप्त नगर, गमहरियां, जमशेदपुर
जिला ..सरायकेला (झारखंड), पिनः 832108

(भोजपुरी दिशाबोध के पत्रिका पाती के दिसम्बर 2022 अंक से साभार)

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