एन.आर .आई

– डॉ. कमल किशोर सिंह

परदेसवा के पीड़ा का सुनाईं ऐ भईया .
जिया चारा जस जाला छटपटाई ऐ भईया.

जिनगी लागे एगो लमहर लड़ाई ऐ भईया,
चोट कहाँ-कहाँ लागल का बताईं ऐ भईया .

घाव दिलवा के देला ना दिखाई  ऐ भईया ,
बाकी छिपे नाहीं कतनो छिपाईं ऐ भईया .

मति पूछऽ काहे भइनी ‘एन.आर.आई’ ऐ भईया,
सब सोचींला त आवेला रोआई ऐ भईया  .

केहू स्वारथ केहू कहे चतुराई ऐ भईया,
लेकिन आपन रहे कुछ कठिनाई ऐ भईया.

खग खोंता छोड़ि असहीं ना पराई ऐ भईया ,
उंहवे जाई जहाँ दाना पानी पाई ऐ भईया .

घर से बेटी अस हो गइल बिदाई ऐ भईया ,
रोअत फिरनी कहीं कोना में लुकाई ऐ भईया .

गाभी, गारी सबकर सुननी सिर झुकाई ऐ भईया ,
जे भी अपना अस लागल गइनी लपटाई ऐ भईया .

पिटमरू बनि  बनि कइनी कुछ कमाई ऐ भईया
जतना सपरल ओतना कइनी हम भलाई ऐ भईया .

घर-घोंसला लेनी इहवे अब बनाई ऐ भईया ,
मोह मटिया के मन से कबो ना जाई ऐ भईया .

धूर-माटी अस लागे सब कमाई ऐ भईया ,
सपना देखते ऊपर गइलें बाबु माई ऐ भईया .

3 Comments

  1. santosh patel

    khub bahut khub
    jas raur gati ba ashi hamro gati ba ho bhaiya
    kissa aishi ba hamro ka sunaee ho bhaiya……
    sadhuvad
    santosh kumar

  2. Shyam Narain Verma

    प्रणाम जी
    बहुत सुन्दर रचना कईले बानी !

    धन्यवाद

  3. Sidharth kumar

    bahu badhiya poem ho bhaiya.
    hamhu N R I bane la sochait hi.

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