(पुस्तक समीक्षा)
डॉ आशारानी लाल के लिखल उनुका दाम्पत्य जीवन के यादगारन के आत्मकथात्मक किताब यादों की गठरी पढ़े के मिलल त लाख चहला का बादो एके बेर में ना पढ़ पवनी. काहें कि ओतना वेदना एक घोंट में पी जाए ला आदमी के नीलकंठ बने के पड़ी. आ वइसन नीलकंठ होखल सहज नइखे. पुरा किताब पढ़े का दौरान कई बेर आपन रोआई रोकल मुश्किल हो गइल. किताब में जतना लिखाइल नइखे ओहसे अधिका पढ़े के गलती रोकतो रोकत हो जात रहुवे.
हिन्दी आ भोजपुरी के जानल मालन साहित्यकार डॉ आशारानी लाल के एह किताब का बारे में कुछ कहला से पहिले अपना बारे में बतावत जरुरी बा. हम ना त साहित्यकार हईं ना भाषाविद्. चिकित्सा विशेषज्ञ होखला का चलते अपना पढ़ाईओ का दौरान भाषा विज्ञान पढ़े के मौका ना मिलल. भोजपुरी से छोह का चलते अँजोरिया के प्रकाशन शुरु कइनी त बहुते लिखनिहारन से बातचीत करे के मौका मिलल, ओह लोग के लिखलका के अँजोरिया पर अँजोर करत गइनी त कुछ कुछ बुझाए लागल. आजु पहिला बेर कवनो किताब के समीक्षा लिखे के दुस्साहस कइले बानी. गलती होखहीं के बा आ एहसे पहिलहीं लेखिका समेत सभका से माफी माँग लेत बानी. जवन लिखे जात बानी ओकरा के एगो सामान्य पाठकीय प्रतिक्रिया का रुप मे लीहल जाव, समीक्षा का रुप में ना.
करीब आठ दशक के जिनिगी में छह दशक के दाम्पत्य जीवन के उरेहत डॉ आशारानी लाल एहमें कवनो बनावट नइखी बुनले. बुने के कोशिशो नइखी कइली. मन के वेदना सामने आवत गइल बा आ ओकरा के जस के तस लिपिबद्ध करत गइल बाड़ी लेखिका. पूरा पढ़त कई बेर हमरा आपन माई याद आइल त कई बेर आपन जीवन संगिनी. संगिनी त साथही बाड़ी माई चलि गइल. जतना भोगलसि भगवान जनि करसु कि कबो केहू दोसरा के भोगे के पड़े. वैधव्य आ बुढ़ापा दुनु औरत के तूड़ के राख देला. बंगला भा कोठी कतनो बड़ रहे ओकरा अपना कोठरी में अकेले जिए के पड़ेला. कोठरिओ तब जब ऊ खुश किस्मत होखो. ना त दलान भा ओसारा में कवनो अलंग फेंकल खटिया भा चउकी पर आपन अभिशप्त जिनिगी जिए के पडेला. शायद एही से कहल जाला कि सुभागी सुहागिने मर जाले. हालात विधुर बुढ़वो ला बहुत कुछ अइसने होला बाकिर ऊ मरद होखला का मजबूरी में रोइओ ना सके. चिल्लात रहेला, भलही केहू सुने भा ना.
धन संपति परिवार से भरल घर में अकेले जीयल, अपना सगरी इच्छा के मार के तोस कइल सहज ना होखे. होखिओ ना सके. बाकिर ओकरा के जिए के पड़ेला. आ एह दौरान ओकरा बेर बेर अपना सुहागिन जिनिगी के याद आवत रहेला. अपना मन के वेदना ऊ उनुके से ओरहन का रुप में मने मन सुनावत रहेले, भलहीं ऊ सुनसु भा ना. एह किताबो में हमरा ओही वेदना के अनुभन भइल आ हम त इहे कहब कि हर मरद के – चाहे ऊ बेटा होखे भा भतार – एक बेर एह किताब के जरुर पढ़े के चाहीं. पढ़ लेब त औरत के समुझल कुछ आसान हो जाई आ रउरा जिनिगी के ओह औरत के शायद अतना वेदना ना बेधी. एकरा के आपन जिम्मेदारी मानल बेमतलब ना रही, एगो औरत के जीयल सहज बना के हमनियो का आपन जिनिगी सुधार सकीलें.
यादों की गठरी किताब कल्याणी शिक्षा परिषद्, 3320-21, जटवाड़ा, दरियागंज, नयी दिल्ली – 110002 से प्रकाशित भइल बा. कड़ा जिल्द में करीब 100 पन्ना के एह किताब के दाम 250 रुपिया राखल गइल बा.
- डॉ ओम प्रकाश सिंह
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