किताब के लिखो जब केहू छापही वाला नइखे. किताब के छापो जब केहू खरीदही वाला नइखे. किताब कइसे खरीदे केहू जब किताब लिखइबे ना करी, छपबे ना करी. किताब कइसे खरीदाव जब घर खरची चलावले मुश्किल होखल जात बा.
समस्या विकट बा. कहाँ से शुरू कइल जाव आ कहाँ पर खतम, बुझाते नइखे.
कहीं पढ़ले बानी कि केहू से कबो सुनले बानी कि अगर दिशा मालूम होखे कि केने जाए के बा त बस बढ़ चलला के काम बा. धीरे धीरे राह मिलत जाई निकलत जाई.
सुरंग जब अपना आखिर छोर पर चहुँपे वाला होला त सबले अधिका अन्हार लागेला.
फेर अचके में कहीं से कवनो रोशनी के लकीर जइसन दिखाई पड़ेला आ फेर मुहाना लउके लागेला.
लेखकन के समस्या
सबसे पहिले लेखक के समस्या पर गौर कइल जाव काहे कि कवनो शुरूआत ओहिजे से होखे वाला बा. भोजपुरी में लिखातो खूब बा आ छपातो खूब बा. समस्या बा कि छपाई के खरचा लेखक का कपारे पड़त बा आ ओह खरचा के निकले के कवनो राह नइखे. हित मीत फोकट में मिल जाव त पढ़सु भा ना एकाध पन्ना पलट जरूर लीहें. बाकिर खरीदे के पड़े त भगवान का तरह अंतर्ध्यान हो जइहे. अबगे त एहिजे रहलें ह. गइले कहवाँ?
पाठकन के समस्या
भोजपुरी पढ़ल बहुते बड़ समस्या बा. आदत पड़ गइल बा हिन्दी पढ़े के आ हिन्दी वाला स्टाइल में भोजपुरी पढ़ा ना सके. हिंदी में त जवन लिखाला तवने पढ़ाला बाकिर भोजपुरी में बहुते कुछ अपना जानकारी आ समुझ से समुझे पड़ेला.
दोसर बात कि ढंग के किताब मिलत नइखे. भोजपुरी रचनाकार खेत खरिहान. अँगना बथान से बाहर निकले के तइयार नइखन आ पाठक के रुचि नइखे रहि गइल ई सब पढ़े के. बा केहू जे भोजपुरी में मौजूदा सामाजिक आर्थिक राजनीतिक हालात पर लिखत होखे. व्यक्तित्व विकास के कवनो किताब केहू लिखत होखो. इतिहास भा विज्ञान का विषय पर कवनो बढ़िया किताब भोजपुरी में मिली का कहीं?
प्रकाशकन के समस्या
प्रकाशक त लेखक आ पाठक के बीच के कड़ी होला. ओकरा पता होला कि पाठक का खोजत बाड़ें आ ओह जरूरत के पूरा करे वाला किताब छापे ला ऊ हमेशा तइयार होलें. बाकिर हर लेखक के छपास वाली बीमारी में ऊ आपन आटा गील ना कर सकसु से बहुते किताब छापे से मुकर जाले. बहुते भइल त छपाई के पूरा खरच बरच लेखके से वसूल लीहें आ रायल्टी एडवान्स के त केहू सपनो ना देखि सके भोजपुरी में. जहाँ उनुका धंधा ना लउके तहाँ उ आपन धन दाह करे ला तइयार ना होखसु.
एह तीनो ले बढ़ के भोजपुरी के समस्या
लेखक पाठक आ प्रकाशक के समस्यो ले बड़हन समस्या बा भोजपुरी के खुद भोजपुरी से. भोजपुरी में लिखल पढ़ल गँवारु लागेला हमरा इलाकन के हिंदी साहित्यकारन के. भोजपुरी के अनेके साहित्यकार हिंदी में ना पनप सकसु त भोजपुरी के छाँह तर चल अइलें. मन त हिंदी में सोचेला, हिंदी मे बोलेला से बस ओकरे के बिगाड़ के भोजपुरिया देलें. बात बाउर लागी बाकिर जइसे शुद्ध भोजपुरी हिदी ना बन जाई वइसहीं बोगाड़ल हिंदी के भोजपुरी ना मानल जा सके. भोजपुरी के सुभाव ह सहज होखे के. एह में क्लिष्ट संस्कृतनिष्ठ शब्दन के कवनो जगहा ना होखे के चाहीं. अगर हो सके त वइसन शब्द इस्तेमाल होखे जवना के बोले में जीभ टेढ़ करे के जरूरत ना पड़े. आजु भोजपुरी के सबले बड़का जरूरत बा एकरा के हिंदीदां लोगन से आजाद करावे के.
बीच के राह
अब एह सब समस्यन का बीच में से राह निकलो त कइसे? एक आदमी के सोचला से कुछ नइखे होखेवाला. सोचे सभके पड़ी. हँ केहू ना केहू के अगुआ बनही के पड़ी.
लीक से हट के चले वाला सोच
हमरा समुझ से भोजपुरी के किताब अगर छपवावे बिकवावे पढ़वावे के बा त बनल बनावल लीक से हट के सोचे के पड़ी, करे के पड़ी. भोजपुरी किताबन के पढ़ाकू त ढेरे मिल सकेले बाकिर खरीददार अंगुरी पर गिनाए लायक भेंटइहे. एह हालत में किताब छपवावे के जमल जमावल रास्ता से अलगा रास्ता देखे सोचे के पड़ी. छोट छोट लॉट में किताब छपवावे के पड़ी. एह तरीका में किताब के प्रति किताब लागत त जरूर अधिका होखी बाकिर कुल लागत में बड़हन कमी आ जाई. एह हालत में खरीददार के तनी अधिका दाम देबे के पड़ी, प्रकाशक के तनी कम मुनाफा लिहल सोचे के पड़ी. शुरूआती खरचा लिखे वाला देव बाकिर बाद में हर बीकल किताब से ओकरा कुछ ना कुछ मिले के चाहीं. कुछ अइसन तरीका अपनावे के पड़ी जवना से अगर कवनो किताब के सौ गो खरीददार मिल जासु त लेखक आ प्रकाशक के घाटा खतम हो जाव.
साथी हाथ बढ़ाना
अब अतना कुछ कहला का बाद हम उमेद करत बानी कि कुछ लोग आगा बढ़ी आ भोजपुरी किताब खरीदे खातिर आपन नाँव लिखवाई. अबहीं कुछ देबे के नइखे. पहिले ई त देखल जाव कि अगर बढ़िया किताब छपे त केहू खरीदेवाला मिली कि ना. अँजोरिया एह दिसाईं आगा बढ़े ला, होम करत हाथ जरावे ला तइयार बिया. बाकिर अउरीओ लोग त आगा बढ़ो.
हम त चल दिहनी जेकरा साथे चले के बा से आ जाव. सभकर स्वागत बा. अगर रउरा लेखक कवि उपन्यासकार हईं आ भोजपुरी में अबले ना छपल रचना छपवावल चाहत बानी त संपर्क करीं. अपना रचना के कुछ नमूना कृतिदेव फांट में भा यूनीकोड फांट में टाइप करवा के संशोधित कर करा के हमरा लगे ईमेल से भेजीं. अगर रचना पसंद आइल त रउरा अउर कुछ ना करे के पड़ी आ राउर रचना किताब के शक्ल में सभका सोझा आवे का राहे चल सकी.
एक बात बहुत साफ साफ कह दिहल चाहतानी. किताब खातिर रचना भेजे ना भेजे के अधिकार रउरा लगे बा त छापे ना छापे के फैसला हमार होखी. खरीदे ना खरीदे के अधिकार त पाठक लोग का लगे बड़ले बा. हर रचना के अपना मन मुताबिक संशोधित करे करावे के अधिकार हमरा लगे होखी. अगर रउरा एह शर्त से आपत्ति होखे त कृपा कर के आपन रचना मत भेजीं. एक बेर रचना भेज दिहनी त फेर ओकरा बारे मे बार बार पूछल मत करीं. हम खुद संपर्क करब रउरा से एह बारे में.
आजु अतना लमहर बतियावे के कवनो सोच ना रहुवे बाकिर जब लिखे लगनी त लमहर हो गइल.
रउरा सभे के
ओम
anjoria@outlook.com
बहुत नीमन आ नेक कम बा हम त एहे चाहब कि राउर सोचल पूरा होखो .प्रकशक बने खातिर बहुत -बहुत बधाई .
राउर
ओमप्रकाश अमृतांशु
अमृतांशु जी,
सुखले बधाई दिहला से काम नइखे चले वाला. पहिले कुछ किताब छपो आ बिकाइल शुरु होखे तब बधाई लेबे देबे के समय आई. रउरा ला हमरा मन में एगो विषय बा जवना पर रउरा एगो किताब लिख सकीले. “चलीं पेंटिंग कइल जाव”.
एह बारे में आम आदमी के चित्रकारी सिखावे वाली किताब अगर भोजपुरी में लिख सकीं त रउरो आपन किताव प्रकाशित करवा सकीलें.
राउर,
ओम
सादर नमस्कार। बहुते सुन्नर बिचार बा अउर हँ…ए में हमहुँ राउर सहयोग क सकेनी…अब पूछीं कवनेगाँ…त हम चाहबि की अबहिन ले हम जवन भोजपुरी आलेख लिखले बानी, ओमे से कुछ निमन (जवन परकासक महोदय के लागो) के एगो संग्रह प्रकासित करा दीं। प्रकासन के जवन करच आइ, हम उठावे के तइयार बानी, एक बात अउर हम इ एसे कहतानी की ए से हमार मनोबल ऊँचा हो जाई अउर हमरा लिखले में आनंदो आई..अउर हम कमर कसि के कुछ विज्ञान संबंधी पुस्तकन के रचना भी करबि…कहले के मतलब इ बा की हम बहुत ग्यानी नइखीं पर कुछ किताबन के पढ़ि के ओकरी आधार पर भोजपुरी में किताब तइयार करबि अउर संदर्भ रूप में आवश्यक भइले पर ओ पुस्तकन के नाव रही (रिफरेंस)। पर ए में आप अग्रजन के महती सहायता के आवस्यकता रही। विषय का रही, कवने स्तर के रही, केतना लंबा रही आदी, आदि।। पर एगो जरूरी बात ….. बहुत-बहुत बधाई बा…एतना सुन्नर अउर जरूरी विचार खातिर।। आभार।।
प्रिय पाण्डेयजी,
सादर नमस्कार.
चलीं रउरे से शुरू होखो. रउरा अपना पसंद के रचना चुन के ओकरा के कृतिफांट में टाइप करवा के, खुद ओकर प्रूफ रीडिंग करवा आ सुधरवा के हमरा लगे इमेल से भेज दीं. कवर डिजाइन वगैरह भी भेजवा दीं त बहुत बढ़िया रही. एक बेर जब किताब हमरा सोझा होखी त ओकरा के पढ़ देख के हम बता देब कि कब प्रकाशित होखी.
एकरे अलावे रउरा अउरी कवनो खरचा नइखे देबे के. बाकी खरचा किताब का बिक्री से निकालल जाई आ हर बिकल किताब पर रउरो कुछ रायल्टी मिलल करी. चूंकि अबहीं सब कुछ प्रयोग का स्तर पर बा एहसे बाकी डिटेल धीरे धीरे तय कइल जाई.
कवनो लेखक से अलग से हम कुछ नइखी लेबे वाला. हँ छपल किताब के जतना प्रति चाहब ओतना खरीद सकीलें जवन थोक भाव पर रउरा के दे दिहल जाई. किताब के दाम प्रकाशन के समय तय होखी काहे कि अबही हमरा कुछ नइखे मालूम कि एह पर कुल कतना खरचा आई. बाकिर जवन खरचा आई तवन हम उठाएब. बस रउरा ओकरा के कम्पोज करवा के, प्रूफ रीडिंग करवा के हमरा लगे इमेल से भिजवा दीं.
एगो अउरी बात के ध्यान राखे के पड़ी कि किताब में कम से कम डेढ़ सौ पृष्ठ जरुर होखे. एहले पातर किताब नीक ना लागी.
राउर,
ओमा
बहुत नीमन सलाह बा . हम एह विषय पर काम करब .
धन्यवाद ! अंजोरिया
आदरणीय संपादक जी!
सादर नमस्कार! – – – रउरा एह निर्णय से पता न केतना साधनहीन रचना कर लोग के साधन मिल जाई। बहुत बढ़िया समाचार मिलल। हमहूँ अपना अधकचरा नज़र के देखल आ अपना जिला-जवार के घुमल जगहन के विषय में यात्रा-वृतांत पोसले बानी। एह समाचार से ओहाके टाइप करे के मन करे ;लागल।
प्रिय केशव जी,
यात्रा वृतान्त विषय ठीक रही. बस ओकरा के सन्दर्भ पुस्तक जइसन बनवला के जरूरत बा. चली रउरो लाग जाईं अपना किताब का तइयारी में.
बाकिर एक बात पता ना रउरा सभे के ध्यान में आवत बा कि ना. अबहीं ले एकहू पाठक भा पाठिका आपन नाम किताब खरीदेवाला में नइखे बतवले. जरूरत बा एहू दिसाईं कोशिश करे के कि कइसे एगो बढ़िया पाठक वर्ग तइयार हो पावे जे किताब खरीद के पढ़े वाला होखे.
सप्रेम नमस्कार,
राउर,
ओम
स्वागत जोग कदम | हमार शुभकामना |
आजुए पढ़लीं हा | किताब के विज्ञापनवाला अनुरोध भी बढ़िया लागल |
आगे बढ़ल जाव, कठिनाई त जरूर आई आ तनी मनी ना, निकहा, बाकिर व्यावहारिक स्थिति में रास्ता निकलत जाई | किताब किनहूँ के सहजोग मिली | हम कतना समय दे पाइबि, कहल कठिन बा बाकिर निस्संदेह हरसंभव सहजोग करबि |
- रामरक्षा मिश्र विमल
स्वागत बा राउर. इंतजार रही.
BAHUT BADHIYA BICHAR BA HAM TAIYAR BANI KITAB KHARID KE PADHE KHAATIR.
छापल जाय। अगर बिसय आ बस्तु बन्हिआ रही त जरूर किन के पर्हल जाई।