कांच कोइन

Santosh Patel

– संतोष कुमार

‘इहाँ हमरा से बड़का हीरो कवनो बा का ? हम अभिए चाहीं त निमन निमन जाने के ठीक कर दीं’ – किसुन दारु पी के अपना घर के दुअरा पर पैतरा कइले रहलन. आपन मेहरारू के हांक लगावत कहलें – ‘का रे ? संजइया के माई ! कहवाँ बाड़े ? बोलाव अपना भाई के. कहवाँ बा? आजु उ सरऊ यहाँ लउक गइले त बुझ ले संजइया के माई, उ इहाँ से जिन्दा ना जइहें.’ आँख लाल पियर कइले, नथुना फूला फूला के किसुन अपना मेहरारू से फउकत रहलें.
दुआर पर तुम्मा फेरी करत किसुन फेर एक बेर हिलत डोलत, आपन छाती फुलावत कहले कि – ‘साले, तनी पहलवानी के चार गो दांव का सीख लेले बा, हमरे से ओह दिन पहलवान लेखा बतियात रहे, डेरवावत रहे. आजु बोलाव देखत बानी केतना दम में उनका में.’ इहे कुल्हि दारु पियला के बाद किसुन बकबकात रहले. काहे से एही तरेह पिछला महीना दारु पी के आपन मेहरारू के अनसोवातो गरियावत रहले तले एही बीचे उनकर सार सुनील आ गइले जे देह हाथ से, कद काठी से किसुन से बीसे रहले. बहिन साथे आपन बहनोई के बेवहार देखि के खिसिया गइले आ आपन बहनोई के चेतावत कहले, ‘आगे से अइसन बेहवार होई त बुझ लिहऽ, हम का करब ?’ बहिन के कहला पर सुनील किसुन से माफ़ी माँग के आपना घरे चल गइलें बाकिर किसुन भुलाइल ना रहले ओह दिन के बात.

वइसे त उ अनदिनहूँ दारु पी के जादा फइलत रहले बाकिर आजु उनकर हावभाव तनी अलगे रहे. आँख कबो उपर त कबो नीचे, देह पूरा झकझोरत रहलें. दउर के घर में, खन में घर से बहरी. मने आजु उनकर ड्रामा पूरा शबाब पर रहे. दुआर पर जब उ जोर-जोर से डकरे लगलें त उनकर मेहरारु घर से बहरी निकल के दुअरा पर आ के किसुन से पुछली – ‘का हो संजइया के बाबू ? कब ले इ नाटक होई ? काहे ई कूल्हि कइले बाड़? का कही टोला महल्ला ? तोहरा आदत से लोग असहीं परसान बाड़े ऊपर से आज हद करत बाड़ऽ. जादे चढ़ गइल बा त चल के आराम कर ल.’ बाकिर किसुन के ओह दिन मिजाज कुछ अलगे रहे. अपना मेहरारू के आँख गुरेड़ के देखत कहलें – ‘देख संजइया के माई, हमरा देह पर आज जिन्न आ जिन्नात आइल बाड़े सन.’ संजइया के माई कहली कि ‘ठीक बा जिन्न आइल बा त निमने बा. घर में चलऽ आ रात होखे आइल रोटी पानी खा ल आ सूत जा. जिन्न के मामिला काल्हु देखल जाई. जइसे नशा फाट जाई, ओसहीं सब जिन्न जिन्नात भाग जइहें सन.’ अपना मेहरारू के इ बात सुनत किशुन के गोस्सा अउर बढ गइल आ उ घर ले दउरत गइलें आ लगलें छीपा, थरिया, कटोरा, देगची, तसला, बटुला आ छिपुली घर के अंगनाई में फेंके. कबो दांत से आपन बाहि के मॉस नोचस त कबो मेहरारू आ बेटा बेटी सन के गर्दन दबावस. ई कूल्ह देख के घर के लोग डेरा गइल. आस परोस के लोगो जउरा गइल.

किसुन के मेहरारू पड़ोस के घर में मदद मांगे गइली. पडोसी के बेटा किशोर से कहली – ‘ए किशोर बाबू, संजइया के बाबु के चाल देखते बानी. अब त उनकर पिए के धंधा अउर बढ़ गइल बा आ उनका चाल से सबसे जादे रउरा दिकदारी बा. राउर पढाई लिखाई पर असरो पड़त बा. बाकिर आजु संजइया के पापा के हाव भाव कुछ अउर बा. चलीं ना तनि देख लिही आ चल के डागदर के देखावल जाव.’

किशोर जइसे किसुन के आँगन में लात रखले, किसुन उनका देखते जिन्न आ जिन्नात के ड्रामा करे लगले. किशोर के आपन घर के पाछे एगो मठिया में रहे वाला बाबा के इयाद आइल जे जिन्न जिन्नात के झारस. एकरा अलावा लौंग फुकस, उपरी हवा देखस, नजर गुजर उतारस, जोग टोना झारस, भुत खेलावस आ जिन्न भागावास, डाइन के करमसा ठीक करस. ताबीज आ जंतर देस. कवलेजिया विधार्थी किशोर बाबा भीरी गइलन आ उनका से निहोरा कइलन – ‘बाबा ! हमार पडोसी किसुन भैया के उपर जिन्न जिन्नात साथे आइल बाडन सन. तनी चली ना, देख लिहीं.’ बाबा कहले, ‘हँ हो किशोर, ई किसुन के ऊपरे सब भुत, पिचास, चुरइन, बरह्म पिचास, बेयार, नेटुआ आवत रहे ले सन. हमरा मालूम बा कि इ किसुन के कवनो काम धंधा ना चलला से परेशानी बा आ आपन जिम्मेवारी से भागे ला इ कूल्हि नाटक करेला. कवनो बात ना, चलऽ देखल जाव.’

बाबा आगे आगे आ किशोर उनका पाछे पाछे. बाबा किसुन के अंगना पहुच गइले. बाबा के देखते किशुन कहले – ‘ई बबवा का करी ? एगो जिन्न जिन्नात होई तब नु इ उतरिहें. इहाँ त तीन गो जिन्न जवरे आइल बाड़े सन.’ बाबा किसुन के जनाना से पुछले, ‘का हो किसुन काम धाम नइखन करत का ?’ उनकर मेहरारू कहली – ‘हँ बाबा, एने कुछ दिन से दारू पिए के आदत इनका ध लेले बा एहिसे सभ कुछु भुला गइल बा. सबेरे दारू के दोकान पर जा के पी लेलन आ दिन भर बस इहे आदत ताकि हमनी घर खर्ची इनका से ना मांगी. घरखर्चा मांगते इनकर बेमारी चढ़ जात बा.’

बाबा के समूचा बात समझ में आ गइल. बाबा किशोर के कहले, ‘ठीक बा किसुन के ऊपर आइल जिन्न आ जिन्नात के झार देम. तू बंसवाडी में से दस गो कांच कोइन काट के ले आवऽ.’ हरियर हरियर छिंउकी लेखा कोइन कटा के आइल. बाबा पांच पांच गो कोइन के बन्हले. ई कुल्हि देखके किसुन भड़क गइलें. उ अइसे भड़कले जइसे कवनो कुकुरमाछी के गदहा के पाछे छोडला पर गदहा कूद कूद के दउरे लागेला. बाबा किसुन के मुड़ी में के बाल पकड के आ दोसर हाथ से किसुन के गट्टा ध के नीचे जमीन पर बइठावत पुछ्लें – ‘के हउअ ? कहवा इनका के ध ले ल ह ?’ किसुन गोस्सा से मुंह लाल कइले बदलत आवाज में कहले – ‘दू गो जिन्न आ एगो जिन्नात हईं.’ बाबा किशोर से कांच कोइन ले लेलन आ किसुन के बाबड़ी ध के जमींन पर लसारत पटक देलें आ अनाधुन लगले बवंते आ पूछे लगलन – ‘कब इनका के छोड़ब ?’ किसुन कहस – ‘अबही ना.’ बाबा किसुन के बेंत बेवतल अभी बन ना कइले रहस. बाकिर कांच कोइन के असर किसुन के ऊपर देखाई देवे लागल. किसुन जब बीस मिनिट ले हिक भर पिटा गइलन त कहे लगलन – ‘जा रहल बानी ए बाबा, अब हमके छोड़ द, अउर मत मारऽ.’ किसुन के हाव भाव बदले लागल. नार्मल देखाई देवे लगलें. बुझात रहे कि जिन्न उनका के छोडि गवे गवे भाग रहल बाड़े सन. कांच कोइन के असर अइसन भइल कि किसुन के सारा जिन्न जिन्नात भाग गइले सन. बाबा कहले – ‘मार के डरे त भूतो भाग जाले.’

1 Comment

  1. amritanshuom

    ‘मार के डरे त भूतो भाग जाले.’ sundaram..

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