का हमनी का एह तंत्र के लोकतंत्र कह सकीलें ?

– पाण्डेय हरिराम

सरकार आ जनता के रिश्ता पर बात करे के होखे त बहुते दिक्कत बुझाला. अब परे साल रामलीला मैदान में अधरतिया भइल पुलिस कार्रवाईए के बात लीं. एह पर पिछला बियफे का दिने कोर्ट फैसला सुनवलसि. ई फैसला ओह सबले बड़ सवाल के रेघरिया दिहले बावे जवना से हमनी के लोकतंत्र मौजूदा दौर में जूझत बावे. ई हवे विश्वास के कमी. देश के आम जनता अगर शांति का साथ विरोध के मकसद से इकट्ठा होखे आ कवनो तरह के तोडफ़ोड़ जइसन गतिविधि ना करे, चुपचाप मैदान में बइठल रहे त ई सोचे के कवनो कारण नइखे बनत कि अगिला दिने कुछ बेसी लोग जमा हो जाव त कानून व्यवस्था ला खतरा पैदा हो जाई. आखिर सरकार अपने लोग से एह कदर अनेसाइल काहे रहेले कि शांति भंग होखे के अनेसा से निपटे खातिर ओकरा पुलिसे के शांति भंग करे के पड़ जाला ? एह अनेसा के कवनो लोकतांत्रिक व्यवस्था खातिर स्वाभाविक त नाहिये कहल जाई.

मगर, बात दूसरको तरफ जाले. लोगो सरकार पर वइसने अविश्वास राखेला. उनुका अपना नेता लोग पर, अपने मंत्रियन पर, अपने विधायकन-सांसदन पर कवनो यकीन नइखे रहि गइल. ई बाति एक बेर ना बेर-बेर रेघरियाइल बा. त सवाल ई बा कि आखिर जनता अइसनका अविश्वसनीय नेता लोग के सकरले काहे बिया ? एह सवाल के दूइये गो जवाब हो सकेला. पहिला जवाब त ऊ सगरी बेता आ ऊ सभे देला जिनका के शासकन के जमात में शामिल मानल जा सकेला. ऊ जवाब ई बा कि दरअसल लोग के अपना प्रतिनिधियन, नेतवन, मंत्रियन माने कि शासकन पर अविश्वास हइये नइखे. ई त बस मीडिया आ अण्णा हजारे, बाबा रामदेव जइसन कुछ निहित स्वार्थी तत्व दुष्प्रचार करेला. अगर जनता के नेता लोगन पर भरोसा ना रहीत त ऊ एहन के बर्दाश्त काहे करीत? ऊ एह लोग के बर्दाश्त कइले जात बिया. अपना आप में ई एके गो तथ्य ढेर बा ई साबित करे के कि जनता नेता लोग पर भरोसा करेले आ कमोबेश असंतोष का साथ ओह लोग के नेतृत्व सकरबो करेले.

दोसरका जवाब ई बा कि जनता के अपना नेता लोग पर कवनो भरोसा नइखे रहि गइल. ऊ अगर एह लोगन के बर्दाश्त करत बिया त ओकर इकलौता कारण इहे बा कि ओकरा लगे कवनो बेहतर विकल्प नइखे. एह जवाब के पक्ष में सबूत के तौर पर ई दलील ठोकल जाले कि जबहिये जनता के बेहतर विकल्प मिलत लउकेला – चाहे ऊ अण्णा हजारे होखसु भा केहु दोसर – त ऊ ओह विकल्प का ओर बढ़ जाले. अइसन गैर राजनीतिक विकल्प आम जनता में जवना तरह के जोश अचानके जगा देला, ओकरे से साबित हो जाला कि आज के सगरी राजनीतिक जमात से जनता कवना तरह से खफा बिया.

सबूतन का अभाव में कवनो एक फैसला पर चहुँपल मुश्किल होखला का चलते हर केहु अपना सुविधा आ सहूलियत का हिसाब से कवनो एक दलील के सकार लेला. अतना तय बा कि अगर आप पहिला जवाब चुनत बानी त आपके ई माने के होई कि आजु के नेता-मंत्री जवने करत बाड़न तवने में देश के भला बा. जहाँ ले थोड़-बहुत असंतोष के बात बा त ओहसे निपटे खातिर कबो अलां, कबो फलां के चुनत रहीं. “सगरी नेता चोर हउवें” भा “सगरी एके थैली के चट्टा-बट्टा हउवें” जइसन बयान देबे के अधिकार तब आपके पास ना रहि जाई.

अगर आप दुसरका जवाब चुनत बानी त अउरी बड़ दिक्कत में फसब. ओह मामिला में आप ई कहि के ना बच पाएब कि जनता सगरी दल के खारिज कर दिहले बिया. आपके नया लोकतांत्रिक विकल्पो बतावे के पड़ी. अगर रउरो कवनो विकल्प नइखे बुझात त फेर नया विकल्प खोजे भा नया विकल्प बनावे के जिम्मेदारीओ आपही के कपारे आई. एह दुनु कठिन जवाबन में से कवन जवाब चुने के चाहीं एह कठिन सवाल पर आप माथापच्ची करीं, हम ओह सवाल पर लवटत बानी जवना के सुप्रीम कोर्ट के फैसला रेघरियवले बिया, विश्सवनीयता के कमी के सवाल. त अगर नेता के जनता पर आ जनता के नेतालोगन पर भरोसा नइखे रहि गइल आ तबहियो दुनु एक दोसरा के पल्लू धइले बाड़न त सोचीं का हमनी का एह तंत्र के लोकतंत्र कह सकीलें ?

(25 मार्च 2012)


पाण्डेय हरिराम जी कोलकाता से प्रकाशित होखे वाला लोकप्रिय हिन्दी अखबार “सन्मार्ग” के संपादक हईं आ उहाँ का अपना ब्लॉग पर हिन्दी में लिखल करेनी.

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