चंपारन सत्याग्रह से जुड़ल कई गो कहानी अइसनो बाड़ी सन, जवन साइत इतिहास के पन्ना में जल्दी ना मिलें स बाकिर ओह कहानियन के, ओह इलाका क लोग पीढ़ियन से सुनत आ रहल बाड़े। लोग बतावेला कि चंपारन का तत्कालीन मरमभेदी सच्चाइयन के सुन-देखि आ जान के ‘बापू’ महात्मा बन गइले। एइजा गरीबी एह हद तक रहे कि मेहरारुन के पास आपन पूरा तन ढाँपे के कपड़ा ले ना मिलत रहे, कस्तूरबा जब एह सचाई के बापू के बतवली त दुखी होके ऊहो अपना देह से कपड़ा तेयाग करे के संकलप ले लिहले । तबे से ऊ चरखा कात के, ओह सूत से बीनल चदरा आ धोती से आपन देह ढाँकसु । चम्पारन महात्मा गाँधी के अइसन बन्हलस कि ऊहाँ का जनता खातिर उनकर, दमन आ शोसन का खिलाफ चलावल आन्दोलन इतिहास का पन्ना में हमेशा खातिर अमर हो गइल । ओह घरी के सत्याग्रही बागियन क जब चरचा होला त गाँधी बाबा के सँगे एगो नाँव पहिला स्तर पर उभरेला — पं0 राजकुमार शुक्ल जी के ।
बंगाल से नील के खेती उजरल त नीलवर अंगरेज आपन बोरिया बिस्तर लेले बिहार पहुँच गइले सन। उहाँ उन्हनी के चंपारने सबले पिछड़ल जगहा लउकल, जहाँ उनहन के, उहाँ का भोला भाला लोगन पर आपन मनचाहा राज कर सकत रहलन स। चंपारन नील का खेतियो लायेक उरबर लउकल। नीलबरन के सरदार जेम्स मैक्लिआड बेतिया के लाल सरैया कोठी में आपन डेरा जमवलस। 1866 में जब चम्पारन जिला बनल, ओह घरी ले जेम्स नील का खेती के टन्ट घंट उहवाँ फइला चुकल रहे। कहाँ अनाज, कहाँ नील, जमीन आसमान क फरक। खेतिहरन के घाटा आ रैयत के भुखमरी। चारू ओर धुआँ धुआँ सुनुगे लागल। आजिज आइ के रैय्यत नील क खेती बन्द कर दिहले सन, तब नीलवर अपना असली रूप में आ गइले अमानुषिक अत्याचार आ मार पीट जबरजस्ती के सिलसिला शुरू भइल। आजिज आके बेहाल रैय्यत फरियाद कइले। जब कुछ सुनवाई ना भइल त लालसरैया का लगे बटुराइ के कोठी में आग लगा दिहले । बाकिर एह आग लगवला में रैय्यत का खिलाफ कवनो सबूत, कवनो प्रमान ना मिलला का बादो पटना के कमिश्नर, राज में अशान्ति फइलावे का आरोप में उहाँ का लोगन के दोषी करार दिहलस। हालाँकि रैय्यतन का ओर से फरियाद में साफ कहल गइल कि गरीबी में पिसात रैय्यतन से, उनहन क जमीन, नील खेती खातिर जबरन पट्टा लिखवावल जात रहल हा। खेती नीक ना भइला पर जुलुम ढाहल जात रहल हा। लोग खइलो बिना मरे आ जुलुमो सहे, ई अन्याय ह !
नीलहन के पहुँच रहे । ऊहो सरकार से मदद के गोहार लगवलें स । जेकर राज ओही क दोहाई। सरकार मोतिहारी में दू गो जजन के अदालत बना के एकर सुनवाई करे क हुकुम सुना दिहलस। उहाँ नीलवर, रैय्यतन का खिलाफ मोकदिमा करें स आ जीत उन्हने क होखे लागल। मजबूरन नील के खेती बन होखे के सवाले ना पैदा भइल । एह स्थिति में रैय्यत में क्षोभ आ खीसि बढ़ल जात रहे । सन् 1978 में नीलवर बिहार प्लाटर्स एसोसियेशन के सभा में दू गो निर्णय भइल ।
पहिला-नील के दाम बढ़ावे के, दुसरका नील फसल उगावे वालन से मालगुजारी ना वसूले के । बाकिर ई देखावा क चोंचला रहे । मालगुजारी असुलात रहे । फेर एसोसियेशन ई फैसला कइलस कि बिगहा में तीन कट्ठा नील के खेती करे वाला के मालगुजारी ना बढ़ावल जाई । ईहे तीनकठिया प्रथा के शुरूआत रहे । 1887 में जब बिहार में भारी अकाल पड़ल त नीलहा, नील के दाम साढे दस से बढ़ा के साढ़े बारह रुपया क दिहलें स। रैय्यतन में बढ़त असंतोष कम ना भइल। अत्याचार से खिसियाइल, तेलहुडा कोठी के रैय्यत उहाँ का अंगरेज मनेजर के हत्या कर दिहले स। ओकरा बाद त पूरा चम्पारन अंगरेजन का जुल्मो सितम का आगि में धधके लागल।
एह आगि के बुतावे में चंपारन समेत पूरा उत्तरबिहार में देश खातिर मरे मिटे वाला अनेक नवहा अंग्रेजन से लोहा लेबे खातिर तइयार हो गइले । ओह जन आन्दोलन में, के नेता आ नायक रहे, ई महत्व ना रहे सबकर मिलल जुलल भूमिका रहे। कई नायक रहले, अपना अपना जवार के । चम्पारन आन्दोलन के प्रणेतन में पं० राजकुमार के महत् भूमिका के गाँधियो जी स्वीकार कइले रहनी । अगर शुकुल जी ना रहिते त साइत गाँधी जी चंपारन ना अइते, ना ई जबर्दस्त आन्दोलन होइत। राजकुमार शुक्ल जी गाँधी जी के चंपारन ले आइ के महात्मा के संबोधन से पुकारे आ चम्पारन सत्याग्रह खातिर उदबेगे वाला लोगिन में अगुवा रहले। 1929 में साबरमती से लवटि के शुक्ल जी अपना चंपारन के गाँव सतवरिया के बजाय ओहि साहू का मकान में रहे लगनी, जहवाँ गाँधी जी रुकत रहनी । स्वास्थ ठीक नाहियो रहला पर, शुकुल जी ओइजे से चंपारन आवत जात, गरीबन आ देश के सेवा करत रहि गइनी । मोतिहारी में उहाँ के देहावसान हो गइल । मरे से पहिले अपना बेटी से मुँहें आगि देबे के जवन इच्छा उहाँ के रहे, ओकर पालन भइल । उहाँ का श्राद्ध में डा० राजेन्द्र प्रसाद, अनुग्रहनारायण सिन्हा आदि नामी लोगन का सँगही एगो अंगरेज अफसर ‘ऐमन’ पहुँचल रहे । राजेन्दर बाबू ओकरा से चुटकी लेत पुछलीं, ‘‘अब त रउआ खुश होइब ऐमन जी, काहे कि राउर दुश्मन एह संसार से चल गइल ..।’’
राजेन्दर बाबू के बोल सुनिके ऐमन साहब का आँखिन से झर झर लोर बहे लागल । ऊहो सुराज का एह धुनी सेनानी के लोहा मनले रहे । ओकरा मुँह से अतने भर निकलल रहे, ‘‘- चम्पारण का अकेला मर्द चला गया !’’ ऊ अपना चपरासी के तीन सौ रुपया देत पंडित जी के श्राद्ध के बेवस्था करे के कहले रहे कि ‘ई मर्द आपन काम धाम सब कुछ छोड़ के देश अउरी गरीबन का सेवा में पचीसन साल गँवा दिहलस आ हम, एह एह त्यागी के सर्वस्व छीन लिहनी। अंगरेज अफसर ऐमन के मन में एतना हलचल रहे कि शान्त होखे क नाँव ना लेव । शुक्ल जी का मुअला का बाद ऊ अपने मन के तोख देबे खातिर पंडित राजकुमार शुक्ल जी का दमाद सरयू राय के अपना कोठी में बोलाइ के, मोतिहारी के पुलिस कप्तान का नाँवें एगो चिट्ठी दिहलस जवना का आधार पर, सरजू राय के पुलिस जमादार के नौकरी मिलल।
पं० राज कुमार गाँधी जी का लड़ाई के एगो जुझारू आ समर्पित सिपाही रहलन, बाकिर चम्पारण आन्दोलन के अइसन सामाजिक नायक रहलन, जिनका दिहल त्याग, सेवा आ संघर्ष का बुनियाद पर आगा स्वतंत्रता आन्दोलन खातिर देश के, बिहार के, चंपारन के कतने बीर सपूत अपना के होम कइलन।
भोजपुरी दिशाबोध के पत्रिका पाती के सितम्बर 2017 अंक से साभार
महावीर स्थान के निकट, करमन टोला,
आरा 802301 (बिहार)
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