बहुत कमे लोग एह पौधा के नाम बता सकी. साँच कहीं त हमरो नइखे मालूम. बाकिर एहिजा एह पौधा के छवि के इस्तेमाल एगो खास मकसद से कइले बानी.
अँजोरिया का लगे एगो बड़का समस्या बा लिखनिहारन के कमी के. जे बड़का साहित्यकार बाड़ें ऊ चिरौरी करावल चाहेलें भा उनुका लागेला कि उनुका नाम का सहारे हम आपन अँजोर करत बानी. हमरा से एगो बड़का कमजोरी हऽ कि हमरा चिरौरी करे ना आवे. एक दू बेर कहिलें जरुर बाकिर फेर महटिया दिहिलें. अबर बानी, दूबर बानी, भाई में बरोबर बानी, सवाई ना अढ़ाई बानी !
रउरा आपन लिखलका अँजोरिया पर नइखीं देखल चाहत त मत देखीं बाकिर एकरा के डीह त बने ना देब. कुछ ना कुछ पौधा त लगावते रहब. बड़का लोग त भोजपुरी बोले, लिखे, पढ़े, बतियावे में शरमाएला बाकिर हम त शान से भोजपुरी बतियाइलें. एह आदत का चलते कई बेर दोसरा भाषा के दोस्तन के असहजो कर दिहिलें ओह लोग से भोजपुरी में बोल के. कुछ लोग के शिकायतो रहेला कि, ‘तुम्हारी बोली बिगड़ गई है, शुद्ध हिन्दी बोलने की आदत डालो.’ अरे भाई हम त हमेशा कोशिश करिलें कि ठेठे बोली बाकिर बहुते कुछ तब दोसरा का पल्ले पड़ी ना से, कुछ सहज करे के पड़ जाला.
आईं फेर ओहि पौधा के चरचा पर. हमार कहना बा कि रउरा लोग कुछ ना कुछ भोजपुरी में लिखल शुरु करीं. कवनो छोट कहानी, कवनो कविता, कवनो चुटकुला, कवनो रोचक वारदात, कुछ अनुभव वगैरह. आ ओह लिखलका के अँजोरिया पर अँजोर करे खातिर भेजल करीं. रचना का साथे आपन एगो छोटहन फोटो आ दू चार लाइन में परिचय आ संपर्क पता भेज दीं. हमरा बहुत खुशी होई ओह रचना के अँजोरिया पर अँजोर कर के. फेर जब राउर रचना पसन्द आवे लागे, राउर गिनिती बड़का लिखनिहारन मेंं होखे लागो त मत भेजब अँजोरिया पर. बाकिर तबहीं ले त भेजल करीं जब ले राउर गिनिती नयका कलमकार में होखत बा. एगो शृंखले चला दीहल चाहत बानी नयका कलमकारन के.
का कही अंजोरिया में कौ बेर लिखे के मन भईल बाकिर राउर पते ना बुझाइल कहां कईसे भेजी
ईमेल से – anjoria@outlook.com पर भेज दीं.