जब घूर के दिन फिरेला

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– जयंती पांडेय

बाबा लस्टमानंद से रामचेला पूछले, ‘बाबा हो, ई घूरो के दिन कइसे फिरेला?’
बाबा कहले, ‘जे तहरा एकर उत्पत्ति आ टीपण जाने के होखो त भोजपुरिका में बतकुच्चन करे वाला डाक्टर साहेब से सवाच ल. हम त जानत बानी कि आज के जमाना में घूर के दिन फिर गइल बा. सब नेता लोग बस झाड़ू ले के निकलता लोग आ नारा लागऽता कि ‘जहां सोच उहां शौचालय!’ सब मंत्री लोग झाड़ू ले के फोटो खींचवावता.’

अब एकरा घूर के दिन फिरल ना कहबऽ त का कहबऽ सब मंत्री लोग त घूर के दिने नू सँवारे निकलल बा. जब घूर के दिन फिरेला त नेता लोग झाड़ू के चरण स्पर्श करेला. झाड़ू ले के तरह-तरह के फोटो खातिर पोज देला.

जब घूर के दिन फिरेला त जेकर नसीब ना ठीक रहेला ओहु के हो जाला. झड़ुओ चुनाव जीत जाला. नोट आ दारू चुनाव हार जाला. झाड़ू अइसन लहराला कि बुझाला जइसे विश्वविजयी झंडा फहरा रहल बा.

अरे भाई घूर के दिन पिर जाला चाहे कहऽ नीमन हो जाला त ऊ कालीन के निचहुँ पहुँच जाला आ कालीन वाला ओकरा नीचे लुकवावेला आ कहेला कि भईवा, एहिजे आराम कर. जब घूर के दिन लवटेला त ओकरा से बिजली बने लागेला. जब कोइला के दलाली में नेता लोग दागी हो सकेला, केहु प्रधानमंत्री ना हो सके त इहो संभावना बा कि ई घूरवा कवनो दिने दलाली के विषय बन जाई.

जब घूर के दिन फिरेला त ऊ सरकार के सामने अइसे आ के खड़ा हो जाला जइसे संसद क सवाल. ऊ कवनो बड़हन शहर के डींग के हवा निकाल सकेला.

जब कोलकाता शहर कहे कि हमरा लगे फ्लाईओवर बा, माॅल बा, मेट्रो बा त इहे घूरवा पूछ सकेला कि भईया, हमहुं त बानी हर जगह.


जयंती पांडेय दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास में एम.ए. हईं आ कोलकाता, पटना, रांची, भुवनेश्वर से प्रकाशित सन्मार्ग अखबार में भोजपुरी व्यंग्य स्तंभ “लस्टम पस्टम” के नियमित लेखिका हईं. एकरा अलावे कई गो दोसरो पत्र-पत्रिकायन में हिंदी भा अंग्रेजी में आलेख प्रकाशित होत रहेला. बिहार के सिवान जिला के खुदरा गांव के बहू जयंती आजुकाल्हु कोलकाता में रहीलें.

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