झीमी-झीमी बूनी बरिसावेले बदरिया

Ram Raksha Mishra Vimal

– डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल

झीमी-झीमी बूनी बरिसावेले बदरिया
लागेला नीक ना ।
हँसे सगरी बधरिया लागेला नीक ना ।

सरग बहावेला पिरितिया के नदिया
छींटे असमनवा से चनवा हरदिया
धरती पहिरि लिहली हरियर चुनरिया
लागेला नीक ना ।
नील रंग के किनरिया लागेला नीक ना ।

बरिसि-बरिसि घन पात-पात धोवे
कवि आ रसिक सभ सुध-बुध खोवे
झूमि-झूमि गावेलिन झूमर सभ सुंदरिया
लागेला नीक ना ।
चले देली ना डगरिया लागेला नीक ना ।

नाचे लगले मोरवा मोरिनिया के संगवा
मनवा गोताए लागल नेहिया के रंगवा
गगन मगन भइले झरली फुहरिया
लागेला नीक ना ।
देखि छबि के बजरिया लागेला नीक ना ।

अवते सवनवा ना होखे के मगनवा
खनकि-खनकि उठे गोरी के कंगनवा
फाटि जाले बदरी के मन के अन्हरिया
लागेला नीक ना ।
खुले प्रीत के डगरिया लागेला नीक ना ।

2 Comments

  1. महेश लाल श्रीवास्तव

    विमलजी, सभन से पहिले रउआ के धन्यवाद। एह सावन महिना के रंग में गोताइल राउर कविता (झूमर) हमरा मन के सराबोर क देलस। बहुत बढ़िया सोच के साथ कविता के एक-एक लाइन रउआ माला अइसन गोंथ के बनवले बानी। भोजपुरी के चासनी में डुबावल एकदम नरम खझुली के स्वाद रउआ परोस देले बानी।

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    • डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल

      का कहलीं भाईजी, नमस्कार।रउरा नीक लागल, आ अतना सजाके प्रतिक्रिया लिखलीं, हम त नतमस्तक बानी। आभार।आग्रह बा कि अउरियो रचनन पर समय-समय पर आपन मूल्यवान प्रतिक्रिया देके भोजपुरिका आ हमरा के जरूर कृतार्थ करत रहीं। रा.मि.विमल

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