नकभेसर कागा ले भागा

– बिनोद सिंह गहरवार

फगुआ एगो अजबे किसीम के तेवहार ह. जसहीं घाम में गर्मी आवेला कि सभे के चेहरा प ललाइ छा जाला. सूखलो काठ में पचकी फूटे लागेला. आम के मोजर से रस चुए लागेला. मौसम के बदलाव के सबसे बड़ असर नायिका प पड़ेला. उनकर लाल – लाल ओठ से ललाइ बरसे लागेला. बेचारी बेहाल हो के….”लाली – लाली ओठवा से बरसे ला ललइया हो कि रस चुएला , जइसे अमवा के मोजरा से रस चुएला …”गीत गावे लागेली.

इ फागुन बड़ा खुरफाती महिना ह. बेचारे बुढ़ऊ भर जाड़ा कउरा त दबकल रहन त केहु झूठहुं खोज खबर ना लेलस. बाकि फागुन आवते उनका के देख के गाँव भ के मेहरारु , ” भर फागुन बुढ़उ देवर लगिहें .. भर फागुन …. गा – गा उनकर राह चलल दुलम क देवेली.

गजबे ह फागुन आ गजबे ह एकर तासीर ! अब हइ देखीं भोरे-भोरे उठतानी त घरघुमन भउजी घरघुमन भइया के गरियावतारी, “संइया आभागा ना जागा , नकभेसर कागा ले भागा”….

एने लिलू भउजी के लिलू भइया से दोसरे सिकाइत बा. उनकर टिकुली भूला गइल बा. उनका से कह रहल बारी , ” टिकुली भूलइले हमार , आरे लाला टिकुली भूलइले हमार”. बसावन भउजी के अपना ननद से एगो अलगे ओरहन बा. उनकर ननद उनकर कँगन हेरा देले बारी. अब उ आपना ननद के अलगे ओद – बाद कइले बारी….. “ननदो बोलऽ ना, कहँवा हेरवलू कँगानवा, अँगना हेरवलू ओसरवा हेरवलू , किया हेरवलू दुआरवा…. ननदो बोलऽ ना”.

हम का करीं. छोट – मोट लेखक ठहरनी. अइसे त चिंतन करी ला. बाकिर इ सब खेल देख के चिंता में पड़ जाइला. फगुआ में, ” बाबू कुँवर सिंह तेगवा बहादुर, बँगला में उड़ेला अबीर”, ” बाबा हरिहर नाथ, सोनपुर में होली खेले”, चाहे ,”सदा आनंद रहे एही द्वारे , मोहन खेले होरी हो”, गीत से गली- गली हड़होर मचे त कवनो नया बात नइखे. बाकिर होली के गीत में कबो टिकुली, कबो नथुनी, कबो कँगन हेराला त इ चिंता के बिसय बा. आउर त आउर ले दे के सब कसर कागा पूरा क देवे ला. बताईं ओकरा औरतन से कतना डाह बा कि नकभेसर लेके भाग जाला.

हइ इश्वरी माया देंखी फगुआ के गीत में पुरुष के अँगुठी , घड़ी भाय चैन कबो ना हेराला. उ लोग एह आफत से एकदम सुरक्षित बारन. ओह लोगन के ना कवनो चीज भूलाला आ ना गीतकार लोग के कलम चलावे के मौका मिलेला. इ फगुआ एकदम पछपाती ह. होली गीतन के बहाने खाली पुरुसन के दोसरा के चीज हेरइला प एँड़ी अलगा – अलगा के गीत गावे के आ उसकी – बिसुकी चलावे के मवका देवे ला. एही से होली से अबुता के औरत लोग गावेला, ” फागुन मोरा लेखा बयरी ऐ ननदो, फागुन मोरा लेखा बयरी……

कबो – कबो हमरा बुझाला कि एह बिसय प गहन चिंतन करे के चाहीं. भोजपुरी के बिद्वानन के बोला के बिचार- बिमरस करवावे के चाहीं. भाई ई पक्षपात कब ले चली कि खाली मेहरारुए के चीज हेराई आ मरद के ना हेराई? भोजपुरी विभाग के बिभागाध्यक्ष जयकांत सिंह जय (लंगट सिंह कालेज मुजफ्फरपुर) , दिवाकर पाण्डेय भोजपुरी बिभागाध्यक्ष( बीर कुँअर सिंह विश्वविधालय, आरा) गुरुचरण सिंह (प्राचार्य जैन कवलेज , बिकरमगंज) एह सभ लोगन के एह बिसय प निमन से शोध करे के चाहीं. फागुन में इ कुल्ह खेला औरते के साथे काहे होला? पुरुष के साथे काहे ना होला?

चलीं कारन कुछुओ होखे,लड़िकवा के बहाने लड़कोरिया जियेले. एही बहाने भोजपुरी में हमनी के नीमन- नीमन होली गीत त सुने के मिलेला.

जय फगुआ. जय फगुआ के गीत.

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