(पाती के अंक 62-63 (जनवरी 2012 अंक) से – 6वी प्रस्तुति)
जन्म: 1906 मृत्यु: 21 जुलाई 1971
पेशा से चिकित्सक, बांसडीह, बलिया निवासी ‘सुमित्र’ जी के एगो प्रौढ़ काव्य-संग्रह भोजपुरी ‘गाँव गिरान’ 1956 में प्रकाशित भइल रहे. राष्ट्रभाषा परिषद् पटना से प्रकाशित “भोजपुरी के कवि और काव्य” में. उनकर नाँव, परिचय आ एगो कविता उद्धृत कइल गइल बा, जवना में उनका काव्य प्रतिभा आ सिरजनशीलता के परतोख मिलत बा. हास्य का साथ सामाजिक विषमता पर गहिर व्यंग से भरल उनका काव्य-संसार में चित्रित समाज के कटु जथारथ मौलिक आ ‘आइरानिकल’ तेवर का साथ उद्घटित भइल बा.
– शिवदत्त श्रीवास्तव ‘सुमित्र’
कवि सब के अस इज्जति भारी, ढेला ढोवत फिरसु उधारी।
परम स्वतंत्र न पढ़ले पिंगल, झंडी लाल तो डाउन सिंगल।
अस सुराज इ लिहलसि चरखा, घुसखोरी के कइलसि बरखा।
कृषि-विभाग अस मिललें दानी, सरगो के ले बितले पानी।
दिहले एक तो लिहले सावा, बोवले धान त फूटल लावा।
कालिज में जब गइले बबुआ, अटके लागल घर के सतुआ।
बाहर गोल्डेन घड़ी कलाई, ढेला फोरसु घर पर भाई।
चाहसु बीबी आवे सहरी, लेइके घूमीं डहरी डहरी।
खर्च एक के तीनि बढ़ाई, कीनसु सीजर अउर सलाई।
कालिज के जे अइली दासी दिहली सासु के पहिले फाँसी।
तजि चोकर ओ अखरा रोटी, घसकल अँचरा लटकल चोटी।
करसु उपाय अब नर्स बने को, जाहि मरद बहु, पूत न एको।
डाक्टर फरके देसु दवाई, दिन-दिन भइली सूखि खटाई।
नित सूई ले सूतसु घामा, असरा में की होइबि गामा।
जस-जस सुई कइलसि धावा, तासु दुगिन चढ़ि रोग दबावा।
अस रंग-रूप बदललीं बीबी, मुँह से खून गिरवलसि टी॰बी॰।
पिछला कई बेर से भोजपुरी दिशा बोध के पत्रिका “पाती” के पूरा के पूरा अंक अँजोरिया पर् दिहल जात रहल बा. अबकी एह पत्रिका के जनवरी 2012 वाला अंक के सामग्री सीधे अँजोरिया पर दिहल जा रहल बा जेहसे कि अधिका से अधिका पाठक तक ई पहुँच पावे. पीडीएफ फाइल एक त बहुते बड़ हो जाला आ कई पाठक ओकरा के डाउनलोड ना करसु. आशा बा जे ई बदलाव रउरा सभे के नीक लागी.
पाती के संपर्क सूत्र
द्वारा डा॰ अशोक द्विवेदी
टैगोर नगर, सिविल लाइन्स बलिया – 277001
फोन – 08004375093
ashok.dvivedi@rediffmail.com
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