बजलऽ ए शंख बाकिर ….
…बाबाजी के पदा के! सतरह दिन के बनवास का बाद राउर अँजोरिया फेर अपना पुरनके अँगना में मौजूद हो गइल बिया. एह बीचे कतना परिश्रम कतना परेशानी भइल, से मत पूछीं. बस अतने जान ली कि एगो बियाबान में एगो लड़िका रास्ता भुला गइल रहुवे बाकिर हिम्मत ना हरलस आ लागल रहल. होते हवाते बाहर के अँजोर लउकिये गइल ओकरा आ ऊ सही सलामत ओह बियाबान जंगल से बहरी निकल आइल.
ई बात त हम कतना बेर बतवले बानी कि हमरा लगे कंप्यूटर के कवनो औपचारिक जानकारी भा प्रशिक्षण नइखे. जवन सीखले बानी अपने प्रयास से एकलव्य लेखा. एगो बात हमरा पक्ष मे इहे जाला कि हम हमेशा आउट आफ बाक्स सोचे खातिर स्वतत्र रहीले. औपचारिक प्रशिक्षण रहीत त जानल पहिचानल रास्ता से जइती, ना रहला का चलते आपन राह  खुद खोजे के पड़ेला. जिनिगिओ में इहे बात साँच होला. कबो हिम्मत मत हारीं. लक्ष्य का तरफ मुंह कइले आगा बढ़े के प्रयास करत रहीं. देर सबेर अपना जगहा पर चहुँपिये जाएब.
आशा करत बानी जे अब ले जवन समय एह भुलभूलैया से निकले के रास्ता खोजे में लागल तवना के अब नया नया सामग्री जोड़े में इस्तेमाल हो पाई आ रउरा सहयोग आ प्यार दुलार से अँजोरिया आगा बढ़त जाई. अब त एह में इन्टरएक्टिविटी आ गइल बा. रउरा हर सामग्री पर आपन राय दे सकीलें.एह सुविधा के इस्तेमाल करीं आ अँजोरिया के भोजपुरी समाज के एगो मजगर मंच बना दीं. जहाँ तक अँजोरिया के नीति के सवाल बा त ऊ उहे बा जवन पहिले रहुवे. कबिरा खड़ा बाजार में सबकी पूछे खैर, ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर.
राउर,
अँजोरिया संपादक

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