बतकुच्चन – १४

जमाना औचक चहुँप के भौचक करे के चल रहल बा त सोचनी आजु एही चक पर कुछ बकचक कइल जाव. चक कहल जाला जमीन के कवनो बड़का खण्ड के आ एही से जमीन के छोट छोट टुकड़ा मिला के चक बनावल जाला त ओकरा के चकबन्दी कहल जाला. अब चकबन्दी के शाब्दिक अर्थ त इहे भइल बाकिर व्यावहारिक अर्थ देखल जाव त ऊ चक दोसरो तरह के हो सकेला. जइसे कि अपना वोटरन के चक. आ ओह चक के बान्हि के अपना साथे राखे वाला चकबन्दी खातिर आपन पावर देखावल. कबहु कवनो आफिस में चहुँप के ओहिजा के सेवा लेबे वाला लोग के प्रभावित कइल जा सकेला. पहिले का जमाना में राजा रात बेरात आपन परिचय छुपाके अपना प्रजा के हाल जानत रहे लोग. अबके राजा भा रानी आपन परिचय छुपा के ना, देखावत घूमेला काहे कि ओह से अपना वोटरन के चकबन्दी करे में सुविधा होला. अब एही से अपना राजनीति के चकचक भा चकाचक कइल जाला.

चक आ चाकर में कवनो आपसी संबंध ना होला. चाकर ओकरा के कहल जाला जे चाकरी करे, रउरा हुकुम पर राउर सेवा करे. नेता लोग के जनता आपन चाकर बनावल चाहेले बाकिर नेता लोग धीरे से कब जनते के आपन चाकर बना लेले से पता ना लागे. चाकर आ चकइठ के एके मतलब होला बाकिर चकइठ मोट झोंट आ विशाल होला. काम के आलसी आ पेट के तेज चाकर त मोटइबे नू करी आ तब ओकरा चकइठ बने में देरे कतना लागी. देखीला ना, नेता लोग कतना चकइठ हो जाला. चक से चकमा आ चकला दुनु होला बाकिर चकमा आ चकला के चक से कवनो नाता ना होला. चकमा दिहल त चकइठ चाकरन के रोजे के काम हऽ. चकला त रोटी बेले वाला प्लेटो के कहल जाला जवना पर बेलन से रोटी भा कुछ दोसर बेलाले आ ओहू जगहा के जहाँ वारांगना रहेली सँ. देख लीं फेर एगो शब्द में एगो मात्रा के अंतर से कतना कुछ बदल जाला काहे कि वीरांगना, बहादुर महिला, आदर के पात्र होली जबकि वारांगना, बेसवा, घिन के. देख लीं एके चक के चकफेरी करत कहाँ से कहाँ आ गइनी.

2 Comments

  1. प्रभाकर पाण्डेय

    हम जेयादे चकचक ना करत बस इहे कहबि कि इ लेख चकाचक बा। वइसे चक, नचनी (करघा में के एगो लकड़ी)के भी कहल जाला। वइसे आजकल लोग भकचोन्हर के चकचोन्हर भी कहता। कहीं-कहीं चकवा चिरई के चक भी कहल जाला अउर पहिया के भी..माने चक्का के चक हो गइल बा। खैर कवन चक कवने चक से जुड़ल बा इ त हमरा पता नइखे पर इ जरूर पता बा की अपना चक बढ़ावे की चक्कर में हर चकदार कवनो ना कवनो भस्टाचार चकदार से जरूर जुड़ल बा।। भारत के राजनीति अउर परसासन एगो एइसन चक हो गइल बा जवने घाँसि-पाति ही जेयादे उग रहल बा। समय निकालि के ए चक के साफ-सफाई जरूरी बा।
    सादर।।

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    • OP_Singh

      बहुत बहुत धन्यवाद प्रभाकर जी,

      रउरा कहल बाति से मजा आ जाले. अलग बात बा कि बहुते कम लोग दोसरा के लिखल पर टीका टिप्पणी करेला आ इहे हमनी के सबले बड़ कमजोरी बा. हर आदमी का लगे कुछ अइसन मिल जाई जवन दोसरा खातिर थाती बन जाव. अंग्रेजी अखबारन में देखीले कि एक एक पोस्ट पर सैकड़न में टिप्पणी आवेला. टीका टिप्पणी ना मिलला से समुझे में ना आवे कि जवन परोसात बा तवन सामने वाला के नीक लागत बा कि ना.

      सादर,
      राउर
      ओम

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