‌बांसगांव की मुनमुन – 13 वीं कड़ी

( दयानन्द पाण्डेय के बहुचर्चित उपन्यास के भोजपुरी अनुवाद )

धारावाहिक कड़ी के तेरहवां परोस
—————————————–

( ई कवनो योजना ना रहुवे, बस संजोगे भर बा कि बांसगांव के मुनमुन के एह तेरहवीं कड़ी के शुरुआत तेरहवीँ से त ना बाकिर मुशनी से जरुर हो रहल बा. बाकिर एही में मुनमुन के बिआह तय होखे से लेके तिलका चढ़े तकले के कहानी बा. बिआह के खबर अगिला कड़ी में दे पाएब. तिलका आ बिआह में कुछहीं दिन के अंतर राखल बा. से जल्दिए लवटब. पिछलका कड़ी अगर ना पढ़ले होखीं त पहिले ओकरा के पढ़ लीं.)

मुनक्का राय जब ससुराल चहुंपले तबले दुपहरिया हो गइल रहुवे. बाकिर ओहिजा के जवन नजारा ऊ देखलन त उनुका पछतावा होखे लागल कि अइलन काहे. सगरी शोक झगड़ा में बिला गइल रहल. सगरी गाँव बटोराइल रहल, हित-नात आ परिचित सभे आइल रहल आ राम किशोर के दुनू बेटन के दावा रहल बड़का बाबूजी के संपति पर. दुनू के कहना इहे रहल कि, ‘बड़का बाबू जी दुनू भाइयन के बड़ भाई रहलन. एहसे उनुकर सगरी संपति आधा-आधा बँटाई. उनुकर लाशो.’ दुनू छटक-छटक के कहत रहले सँ कि, ‘आधा लाश हमार, आधा लाश तोहार.’

‘कहीं लाशो के बंटवारा होला?’ गांवे के एक जने अफ़सोस जतावत कहलन. सुनते राम किशोर के बेटा मुकेश लपक के उनुकर नरेटी दुनू हाथे दबावे लागल आ कहलसि, ‘चुप साला! तें के हईस रे !’

बवाल बढ़ चुकल रहुवे. आरी मँगावल जा चुकल रहल राम निहोर के लाश के आधा-आधा करे खातीर. फ़ोटोग्राफ़रो बोलवा लीहल रहुवे फ़ोटो खींचे खातीर. राम किशोर के दुनू बेटा छटक-छटक के राम निहोर के लाश का साथे फ़ोटो खिंचवावत रहलन स. कबो एह दिसाईं से त कबो ओह दिसाईं से. कबो एह कोना से त कबोओह कोना से. राम अजोर आ जगदीश आपन-आपन कपार पकड़ले चुप-चाप बइठल ई अभिशप्त नजारा तिकवत रहलन. एही बीच आजिज़ आ के केहू थाना पर फ़ोन कर के पुलिसो के ख़बर क दीहल, पुलिस आइल तब कहीं जा के मामिला सलटल. राम निहोर के लाश दू टुक्का होखे से बाचल. राम किशोर के एगो बेटा अबहियों जिदियाइल रहल कि ‘बड़का बाबू जी के आग हमहीं देब.’ आखिरकार पुलिस पूछलसि कि, ‘आखिरी समय में राम निहोर राय केकरा संगे रहलन आ के उनुकर सेवा-टहल करत रहुवे?’ गांव वाला साफ कर दीहलन कि,’राम अजोर राय आ उनुकर बेटा जगदीशे रामनिहोर के सेवा कइलें आ ऊ इनही लोगन साथे रहत रहलन. सगरी जायदादो ई एही लोगन के लिख दिहले बाड़न.’

‘बाकिर एकर मुक़दमा त अबहीं चलते बा.’ मुकेश तमतमा के बोललसि, ‘दाखि़ल ख़ारिज अबहीं ले नइखे भइल.’

‘त अब हमहीं तोहरा के दाखिल कर देब अबहियें थाना मेंं.’ दरोग़ा जब डपटलसि त मुकेश ओहिजे भीड़ में सँसर गइल.

‘राम नाम सत्य है’ के उद्घोष का साथे राम निहोर के मंजल निकलल, पुलिस का पहरा में. गांव से भीड़ उमड़ पड़ल. अगलो-बगल के गाँव से लोग एह मजल में जुड़त गइल एह आसरे कि शायद कही शमशनो पर कुछ ना कुछ बवाल होखबे करी. राम निहोर राय के लाश के दू टुकड़े करे वाला बात सगरी जवार में पसर चुकल रहुवे. अइसन पहिले ना त कतहीँ सुनाइल रहल ना देखल गइल रहल. से एही लालसा में सभे सरयू नदी के शमशान घाट ले चहुँप गइल. मुनक्को राय के अबहीं ले ठकुआ मरले रहल. ज़िंदगी भर के वकालत में ऊ किसिम-किसिम के झगड़ा, प्रपंच आ पेंच देखले हरलन बाकिर अइसन त ‘न भूतो, न भविष्यति!’ ऊ बुदबुदइन.

शमशान घाट पर मुकेश एक बेर फेर कुलबुलाइल, ‘मुखाग्नि हमहीं देब.’

बाकिर दरोगा जसहीं ओकरा के घूरलन ऊ फेरु भीड़ में सँसर गइल. फेर कवनो विवाद ना भइल. ज़्यादातर भीड़ के पछतावा रहल कि अरे कवनो तमाशा त भइबे ना कइल ! मुनक्को राय शमशान घाट से लवटि के अइलन. कुछ देर अनमनाइले बइठलन, राम अजोर से संवेदना जतवलें आ पत्नी अउर मुनमुन के ले के देर रात बांसगांव लवट अइलन. घरे अइला पर पत्नी से बोललन, ‘तोहार ई मँझिला भाई राम किशोर शुरूए के दुष्ट हवे. तोहरा मालूम बा कि जब हमनी के शादी से पहिले हमरा के देखे ला आइल रहुवे त तरह तरह के खुरपेंची सवाल पूछत रहुवे. अतने ना सबेरे-सबेरे जब लोटा ले के दिशा मैदान करे निकलल त बाते बात में हमरा के ललकार के कोस भर दउड़ा दिहलसि कि देखीं के जीतत बा? हम बूझ गइल रहनी कि ई हमार दउड़ल नइखे देखे चाहत, हमार परीक्षा लीहल चाहत बा. ई दम-खम चेक कइल चाहत बा हमरा के दउड़ा के. हम दउड़ त गइनी आ भगवान के दया से हमार साँसो ना उखड़ल आ ई बेवकूफ हमरा के अपना परीक्षा में हमरा के पास क गइल. हमनी के शादी हो गल. बेवक़ूफ़ कहीं का, बड़ा होशियार समुझेला अपना के.’ कहत मुनक्का राय एह गम का घड़ियो में पत्नी ओरि देखत मुसुका दिहलन.

वह जानत रहलन कि पत्नी के मँझिलके भाई से बेसी पटेला. मंझिला भइया मतलब राम किशोर भइया. उनुका नीक ना लागत रहुवे तबहियों बतावत रहलन कि, ‘एक बेर त ससुरा हदे कर दीहलसि. अचके में कचहरी आ गइल भरल दुपहरिया में. ओह घरी कोका-कोला नया नया आइल रहल देश में. हम सोचनी कि साला साहब के स्वागत कोका-कोला से कर दीं. मुंशी के कह के कोका-कोला मंगववनी. आठ-दस लोग अउरिओ बइठल रहल तखता पर ओह बेरा. से एह चक्कर में सभका ला मँगवा दिहनी. सभे कोका-कोला पीयल बाकिर ई ना. हाथ जोड़ लिहलसि. आ देहाती भुच्च सगरी हितई-नतई में हमरा के पियक्कड़ डिक्लेयर करवा दिहलसि. सभे के पूरा विस्तार देत बतावल करे कि बताईं, बोतल चलत बा. खुल्लम खुल्ला. उहो दिनदहाड़े. हम गइनी त बेशरम हमरो के पियावे लागल. केहू तरह हाथ जोड़ के छुट्टी लिहनी. हम सफ़ाई देत-देत हार गइनी बाकिर केहू मानबे ना करे. तब के बेरा में कोका-कोला के अतना चलनो ना रहल. सगरे से बहुते लोग त बूझबे ना करे कोका-कोला. बोतल समुझ लेव. आ बोतल मतलब शराब!’ ऊ
भड़कल रहलन, ‘अब पड़ल बा अपना पापन के गठरी लिहले बिछवना पर हगत-मूतत. नालायक़ अपना धर्मात्मा भाई, राम निहोर भाई साहबो के ना छोड़लसि. भर जिनिगी त डसते रहल, मुअला का बादो अपना संपोलन के भेज दिया आधा लाश काटे ला. नालायक़ के नरको में यमराज महराज जगह ने दिहें.’

मुनक्का राय के एकालाप चालूए रहल कि मुनमुन आ के उनुका के टोकलसि, ‘बाबू जी कुछ खइबो-पियबो करब कि मामाजी के सरापिए के पेट भर लेब?’

‘हां, कुछ रूखा-सूखा बना दऽ.’

‘सब्जी बना दिहले बानी. नहा धो लीं त रोटी सेकीं.’

‘ठीक बा.’

‘आ हँ, अम्मा तुहूं कुछ खा लऽ.’

‘ह कुछ ना खाैब आजु. इनहीं के खिया दऽ.’

खा पी के सूत गइलन मुनक्का राय. अगिला दिन से फेरु उहे कचहरी, उहे खिचखिच, उहे मुनमुन, उहे बिआह खोजे के रामायण फेर से शुरू हो गइल आ शादी काटे में गिरधारी राय के मेहनतो. राम निहोर राय के लाश आधा-आधा काटे वाले त्रासद तमाशा के रिपोर्टो गिरधारी राय के मिल चुकल रहल. से ऊ विवेक-मुनमुन कथा में खइला का बाद वाला स्वीट डिश का तरह एही कथा के परोसे-परोसवावे लगलन. कहसु, ‘जवना लड़की के ममहर अतना गिरल, अतना बवाली होखो ओह लड़की के कवनो परिवार में आइल कतना भयावह होखी? आखि़र आधा ख़ून तो ओही ममहरे के बा ओकरा में.’

आ जब ऊ देखलन कि मुनक्का राय अब शादी खोजत-खोजत फ़ुल पस्त हो गइल बाड़न आ कतहीं बात बनत नइखे त बाहर से देखे में चकाचक बाकिर भीतर से पूरा तरह खोंखर एगो परिवार से रिश्ता करे के तजवीज़ एगो वकील साहब का मार्फ़त परोसवा दीहलन. ऊ परिवार कबो रमेश के मुवक्क़िलो रहुवे आ गिरधारी राय के ससुराल पक्ष से दूर के रिश्तो में रहल. लड़िका गिरधारी राय का तरहे इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के बेस्ट फेलियर रहुवे. संगहीं स्रिजनोफेनिया के मरीजो आ फ़ुल पियक्कड़ो. गिरधारी राय के हिसाब से मुनक्का राय के निपटावे ला एकदम फ़िट केस रहुवे. जब कि लड़िका के बाप घनश्याम राय एगो इंटर कालेज में लेक्चरर रहलन आ आपन एगो हाई स्कूलो चलावत रहलन. दबंगईओ में उनुकर कमोबेश दखल रहल. ब्लाक प्रमुख रह चुकल रहलन, घर में ट्रैक्टर, जीप सहित खेतो-मकान रहल. मुनक्का राय जब उनुका हियं चहुँपले त उनुकर खूब आव-भगत भइल. ख़ूब सम्मान दिहलन. मुनक्का राय गदगद हो गइलन बाकिर जब उनुका पता चलल कि लड़िका राधेश्याम राय अबहियों इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में एम.ए. में पढ़िए रहल बा त ऊ बिदकलन. बाकिर लड़िका के बाप झूठ बोलत कहलन कि, ‘होनहार हवे आ पी.सी.एस. क तइयारिओ करत बा.’ त उनुका जान में जान आइल. फेर लड़िका के पिता घनश्याम राय कहलन, ‘राउर बेटा सब बढ़िया पद पर प्रतिष्ठित बाड़े सँ त एकरो के अपने तरह कहीं ना कहीं खींचिये लिहें सँ. आ अगर तबहियों कुछ ना भइल त आपन हाई स्कूल त बड़ले बा. दुनू मियां-बीवी एही में पढ़इहें. रउरा बेटी के शिक्षा मित्र रहला के अनुभवो कामे आ जाई.’

‘हं-हं, काहें ना?’

एह रिश्ता में मुनक्‍का राय के एगो सुविधा लउकल कि एहिजा इंगलिश मीडियम, इंजीनियर, एम.बी.ए., एम.सी.ए. वग़ैरह के चरचा भा फ़रमाईश ना कइलन लड़िका के पिता. बाकिर जब बात लेन-देन के चलल त ओहमें ऊ कवनो रियायत ना कइलन. दस लाख रुपए सीधे नगद मांग लिहलन. मुनक्का राय तनिका भिनभिनइलन त ऊ कहलन, ‘राउर बेटा सब अतना प्रतिष्ठित पदन पर बाड़े सँ. त रउरा ला कवन मुश्किल. रउरा त हाथ के मइल हवे दस लाख रुपिया.’

‘बाकिर रउरा माँगत बहुत बेसी बानी.’ मुनक्का राय तनिका टहकार होके बोललन, ‘ई रेट त नौकरी वाला लड़िकनों के नइखे. आ राउर लड़िका त अबहीं पढ़ते बा.’

‘पढ़तहीं नइखे, पी.सी.एस. के तइयारिओ करत बा.’ ऊ कहलन, ‘जे कहीँ पी.सी.एस. में सेलेक्ट हो गइल त रउरा पचासो लाख में ना भेंटाई. उड़ जाई’ ओकर बोली मुनक्को राय से टहकारे रहल, ‘पकड़ लीं अबहीं ना त जब उड़ जाई तब ना पकड़ पाएब.’

‘तबहियों!’ मुनक्का राय मेहराइल आवाज में बोललन.

‘अरे मुनक्का बाबू इहो त हम एहले करत बानी कि राउर सगरी बेटा कवनो ना कवनो प्रतिष्ठित पद पर बाड़न स, नीमन परिवार बा, कुलीन बा से हम आंख मूंद के हामी भरत बानी.’

एकरा बाद ही-हा कं बीच पंडित जी के बोलावल गइल. कुंडलियन के मिलान कइल गइल. पंडित जी बतवलन कि, ‘शादी बाइस गुण से बन रहल बा.’

फेर त दुनू फरीक एक दोसरा के बधाई दिहलें. गले मिललें. मुनक्का राय वापस बांसगांव ला चल दिहलें बिलकुल गदगद भाव में. उ राह में एक बेर अपना कटिया सिल्क के कुर्ता आ जाकेट पर नज़र डललन. उनुका नीमन लागल. फेर सोचलन कि कहीें एह कुरते जाकिट के फ़ोकसबाज़िए त बात ना बना दिहलसि? फेर ऊ इहो सोचलन कि कहीँ एह जम रहल कुर्ता जाकिटे के भौकाल में त लड़िका के बाप दहेज ला अतना बड़ मुँह त ना बा दिहलन?

तबहियों उनुका ई रिश्ता ना पता काहे पहिला नजर में बहुते ठीक लागल. अब उनका का पता रहल ऊ त गिरधारी राय के बिछावल बिसात पर प्यादा बन के रह गइल बाड़न. राहुल के फ़ोन अइला पर ऊ बता दिहलन कि, ‘तमाम देखल रिश्तन में ई शादी हमरा जम गइल बा. ऊ वह घनश्याम राय के बेटा राधेश्याम राय ह. लड़िका होनहार बा. इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में पढ़त बा आ पी.सी.एस. के तइयारिओ कर रहल बा.’

‘माने कि रउरा पूरा तरह पसंद बा.’

‘हँ, पसंद त बा बाकिर ऊ दहेज तनिका बेसी माँगत बाड़न.’

‘कतना?’

‘दस लाख रुपिया नगद.’

‘हं, ई त तनिका ना बहुते बेसी बा.’ राहुल बोलल, ‘रउरा भइयो लोगन के बता दीं. का पता बातचीत से कुछ कम कर दे.’

‘ठीक बा.’ मुनक्का राय आश्वस्त हो गइलन.

रमेश से बात भइल त ऊ कहलन कि, ‘बाबू जी घनश्याम राय त हमार मुवक्किल रहल बा. ओकर फ़ोन नंबर दीं, एक बेर बतिया लेत बानी. कुछ का, अधिके कम करवा लेब.’

‘फ़ोन नंबर अबहीं त नइखे. बाकिर पता कर के बता देब.’

‘आ हँ, लड़िको का बारे में तनी ठीक से जांच पड़ताल कर लिहीं. वइसहूं घनश्याम राय तनी दबंग आ काइयां टाइप के आदमी हवे. इहो देख लेब.’

‘ठीक बा.’

बाद में जब रमेश फोन कइलन घनश्याम राय के त ऊ ‘जज साहब, जज साहब!’ कह-कह के विभोर हो गइल. कहे लागल, ‘धन्यभाग हमार कि रउरा हमरा के फ़ोन कइनी. हमरा त विश्वासे नइखे होखत.’

‘ऊ सब त ठीक बा बाकिर रउरा जे दस लाख रुपिया मांगत बानी ओकर का कइल जाव?’ रमेश बोललन, ‘एगो बेरोज़गार लड़िका के अतना दहेज त सोचलो ना जा सके. आ रउरा अइसे मांग लेत बानी.’

‘रउरा जइसन कहीं हुज़ूर हम त अपने के पुरान मुवक्किल हईं’ कह के ऊ घिघियाने लगलन.

‘नक़द, दरवाज़ा, सामान वग़ैरह कुल मिला के पांच लाख रुपए में तय रहल. अब रउरा तय कर लीं कि का सामान लेबे के बा आ का नकद. ई सब पिता जी के बता दीं.’ रमेश लगभग फ़ैसला सुना दिहलें.

‘अरे जज साहब अतना मत दबाईं’ घनश्याम राय फेर घिघियाइल.

‘घनश्याम जी, हमरा जवन कहे के रहल से कह दिहनी. बाक़ी रउरा तय कर लीं आ पिता जी के बता दीं. प्रणाम!’ कह के रमेश फ़ोन काट दिहलन. फेर बाबू जी के ई सगरी बातचीत बतावत कहलन कि, ‘बाक़ी उत्तम मद्धिम रउरा अपना स्तर से देख लेब. ख़ास कर के लड़िका आ ओकर स्वभाव वगैरह. चाल-चलन, सूरत-सीरत. इहो सब जानल जरुरी बा.’

‘बिलकुल बेटा.’ मुनक्का राय बोललन, ‘बस एक बेर तू सब भाईओ आ के देख लेतऽ त नीक रहीत.’

‘अब ओकरा घरे हमरा के मत ले चलीं.’ रमेश बोला, ‘धीरज, तरुण से बतिया लीं.’

लेकिन धीरज आ तरुणो टार दिहलें. कहलें कि, ‘बाबू जी, रउरा देख लिहले बानी, रउरा पसन्द आ गइल बा. रउरा अनुभवी बानी. राउरे फ़ैसला अंतिम फ़ैसला रही.’

बेटन के एह बात से मुनक्का राय गदगद हो गइलन. आखिरकार चार लाख रुपिया नगद, मोटरसाइकिल आ तमाम घरेलू सामान, घड़ी, चेन, टीवी, फ्रि़ज, फ़र्नीचर सहित तय हो गइल. बियाह के दिन आ तिलक के दिनो बेटन का राय से दू तीन दिन के गैपे में रखाइल जेहसे ओहलोग के अधिका समय बरबाद ना होखे. आ सब कुछ एकही बेर के अइला में निपटा लीहल जाव. अब दिक्क़त ई आइल कि धीरज आ तरुण जे दू-दू लाख रुपिया देबे के कहले रहलें, घट के एक-एक लाख रुपिया पर आ गइल. मुनक्का राय राहुल के बतवलन. राहुल थाईलैंडे में अपना ससुर का लगे गइल. समस्या बतवलसि. ससुर ओकरा के आश्वस्त कइलन आ कहलन कि, ‘ख़रच-वरच के चिंता मत करऽ. जवने खरचा होखे बतावऽ, हम सब दे देब. बस इहे ध्यान रखीह कि शादी में कवनो कमी ना रहे. पूरा धूम धाम से होखे.’ ससुर कहलन, ‘दू गो बेटी बिअहले बानी. मान लेत बानी कि इहो हमार तिसरकी बेटी हिय.’

‘ना. हम एक-एक पाई बाद में वापस कर देब.’

‘हम जानत बानी. बाकिर एकर ज़रूरत नइखे.’ राहुल के ससुर दरअसल राहुल के एही ख़ुद्दारी के क़ायल रहलन. राहुल के सिंसियरिटी, ओकर मेहनत आ क़ाबिलियत पर ओकर ससुर मोहित रहलन. ऊ सबका से कहतो रहलन कि, ‘हम बड़ भाग्यशाली बानी जे अइसन दामाद मिलल.’

मुनमुन के बिआह के सगरी खरचा राहुल ओढ़ लिहलन. हवाला का जरिए पांच लाख रुपिया बाबू जी के भेज दिहलन आ कहलन कि, ‘बाक़ी ख़रचो जवन होखो तवन बताएब.’

कार्ड वार्ड छपा गइल हलवाई वग़ैरह के साटो हो गइल. मुनक्का राय कहसु कि, ‘पइसा होखो त कवनो काम रुके ना.’ तरुण तिलका से तीन दिन पहिले सपरिवार आ गइल. मुनमुन ओकर गोड़ ध लिहलसि आ बोलल, ‘भइया एक बेर लड़िका देख आईं कि कइसन बा? बात-बेवहार कइसन बा? चाल-चलन कइसन बा?’

‘बाबू जी त देखले बानी नू?’

‘देखले कहां बानी?’ ऊ बोलल, ‘बाबू जी त सिर्फ़ लड़िका के घर आ उनुका पिता के देखले बानी. ऊ बाबूजी के जवने बता दिहलन उहां के उहे मान लिहले बानी. एको बेर अपना ओर से कुछ दरियाफ़्त नइखीं कइले.’

‘बाकिर मुनमुन कार्ड छपा के बंटाइओ गइल बा.’ तरुण बोललन, ‘अब का कइल जा सकेला?’

‘काहें? बारात त दुआरी पर सेे लवट जाले जे अगर कवनो गड़बड़ होखेला, एहिजा त सिर्फ़ कार्ड बंटाइल बा.’

‘अरे अब दिनो कतना बाचल बा?’

‘भइया आप लोग हमार बलि मत चढ़ाईं.’ ऊ फेरु हाथ जोड़त बोलल.

‘मुनमुन अब कुछ ना हो सके.’ तरुण सख़्त भाव में बोलल.

अगिला दिने धीरज आइल त मुनमुन ओकरो गोड़ ध के चिरौरी कइलसि कि, ‘भइया रउरा त प्रशासन चलाइलें. एक बेर अपना होखे वाला बहनोई के जा के देख त आईं. ओकरा बारे में कुछ पता करवा लीं!’

‘का बेवकूफी के बात करत बाड़ीस?’ धीरजो डपट दीहलन.

रमेशो भइया से मुनमुन हाथ जोड़लसि त ऊ बोललें, ‘हम जानत बानी ओह परिवार के.’

‘अपना होखे वाला बहनोईओ के जानत बानीं?’

‘अब शादी हो रहल बा, ओकरो के जान लेब.’

तिलक का दिने राहुल आइल थाईलैंड से त मुनमुन ओकरो से कहलसि, ‘भइया रउरा अतना खरचा कर रहल बानी हमरा बिआह में, एक बेर अपना होखे वाला बहनोई के त देख आईं, कुछ अता-पता लगा लीं.’

‘अब आज का दिने?’

‘आदमी कपड़ो ख़रीदेला त देख समुझ के आ रउआ लोग हमरा होखे वाला जीवनो साथी के देखल समुझल नइखीं चाहत?’

‘आज तिलक चढ़ावे जात बानीं स.’ राहुल बोलल, ‘फेर बाबू जी त देखिए समुझ लेले बानी. उहाँ के कवनो दुश्मन त ना हईं तोहार?’

‘बाकिर गिरधारी चाचा त हउवें नू?’

‘का?’

‘उनुका ससुरारी के रिश्ता के हउवें ई लोग.’

‘का?’

‘हँ.’

‘तोहरा कइसे मालूम?’

‘बाबूए जी का बातन से पता चलल.’

‘ओह त बाबू जी ई सब जानत बानीं नू?’ राहुल बोलल, ‘फेर घबरइला के कवनो बात नइखे.’

‘बाबू जी त अपना होखे वाला दामाद के अबले देखलहूं नइखीं कि लूला हवे कि लांगड़. बस ओकरा बाप के देखले बानी आ ओकर फ़ोटो भर देखले बानी!’

‘चल. अगर तिलका में लूल-लांगड़, आन्हर काना भा अइसन वइसन लउकल त शादी कैंसिल कर देब. बस!’ राहुल बोलल, ‘तूं अतना शक काहे करत बाड़ू बाबू जी का फ़ैसला पर?’

‘एहले कि ई हमार जिनगी ह, हमरा भविष्य के सवाल ह. ज़माना बदल गइल बा. बाकिर बाबू जी नइखीं बदलल. उहां के त अबहियों पुरनके पैटर्न पर चलत बानी जब बाल विवाह के ज़माना रहल आ लोग माई-बाप, घर दुआर देख के शादी कर देत रहुवे.’

‘ओह अतनी बात?’ राहुल बोलल, ‘बाबू जी पर अतना अविश्वास कइले ठीक नइखे. ख़ुशी-ख़ुशी शादी कर, सब ठीक होखी. ’ कह के राहुल अपना ओर से बात खतम करे के चहलसि.

‘रउआ लोग दीदीयन का बिआह में त अतना निफिकिर ना रहनी. एक-एक चीज़ खोद-खोद के ठोंक-पीट के तय करत रहनीं.’

‘तब मुनमुन समय अफरात रहल.’ राहुल बोला, ‘तब के बात अउर रहे. हमनी का तब कमज़ोर रहनी सँ. आज नइखीं सॅ. आजु केहू हमहन का ओर सपनो में आंख उठा के ने देख सके.’

‘अतना अहंकार ठीक नइखे राहुल भइया!’ मुनमुन बोलल, ‘रावण एही में डूब गइल रहल आ बरबाद हो गइल.’

‘का बेवक़ूफी बतियावत बाड़ू?’ राहुल बोलल, ‘तिहार बिआह होखे जा रहल बा, शुभ-शुभ बोलऽ!’

‘शुभे-शुभ आगहूं रहे भइया एही ले त इ सब कहत बानी कि एक बेर अपना होखे वाला बहनोई के शादी से पहिले ठीक से जांच पड़ताल लीं.’ मुनमुन बोलल, ‘आखि़र हम कवनो दुश्मन त हईं ना रउरा सभन के जे एह तरह बिना जंचले-समुझले हमरा के एगो अनजाना खूंटा पर बान्हे जात बानी. आखिर हमरा जिनिगी के सवाल बा.’

‘बाबू जी पर तोहरा भरोसा नइखे?’ राहुल अउँजा के बोलल.

‘पूरा भरोसा बा. बाकिर अब उहां के वइसन शार्प नइखीं रह गइल. उमिर हो गइल बा. दोसरे अबहीं ले उहां के सिर्फ़ घर आ लड़िका के बाप के देखले बानी. लड़िका के ना.’

‘काहें, बरिच्छा में त देखलहीं होखब?’

‘कहां?’ मुनमुन अकुला के बोलल, ‘ओकर छोटे भाई बरिच्छा लिहलसि. ऊ त इलाहाबाद से आइले ना रहल बरिच्छा में.’

‘का?’

‘हँ, बाबू जी सिरिफ फ़ोटवे से काम चलावत बानी.’

‘चलऽ अब आज तिलक त कैंसिल हो ना सके.’ राहुल बोलल, ‘बाकिर हम कोशिश करब कि ओकरा के आजु निकहा से देख-समुझ लीं. कहीं कवनो दिक्क़त बुझाइल त कैंसिल कर देब ई बिआह.’

‘सच राहुल भइया!’ ऊ राहुल के गोड़ धर के बइठ गइल, ‘भुलाएब जन.’

‘बिलकुल!’

धूमधाम से तिलक गइल आ चढल. लवटला पर सभे तिलक में ख़ातिरदारी आ इंतज़ाम के बड़ाई के पुल बान्हे लागल. फेर एह फिकिरे पड़ गइल कि एहिजा के इंतज़ाम में कवनो कोर कसर मत रह जाव. सगरी बात होखत रहल, बाकिर जवना के बात ना होखत रहल ऊ रहल दुलहा के बात. केहू दुलहा के जिकिरो ना करत रहुवे, भुलाइलो से ना.सुबेरे से सँझ हो गइल. मुनमुन कान लगवले-लगवले थाक गइल. सभे इंतज़ाम में डूबल रहुवे. आखिर मौक़ा देख के मुनमुन फेरु राहुल के पकड़लसि. पूछलसि, ‘हमार काम कइनीं?’

‘कवन काम?’

‘दुलहा देखनी?’ ऊ खुसफुसाइल.

‘हँ, भई हँ. दुलहा देखनी!’ राहुल तनिका तेजे आवाज में बोलल.

‘धीरे से नइखे बोलात?’ मुनमुन फेरु खुसफुसाइल.

‘हँ, भई देखनी.’ राहुला मुनमुने का तरह खुसफुसाइल.

घर में सब लोग ई सब देख के खिलखिला के हंस पड़ल. मुनमुन लजा के अपना कमरा में भाग गइल. बाकिर थोड़हीं देर बाद फेरु ऊ मौक़ा ताक के राहुल के पकड़लसि आ ओकर हाथ पकड़ के ओकरा के छत पर ले गइल. बोलल, ‘हमार मज़ाक उड़ावे के समय नइखे ई. हमरा जिनिगी आ मौत के सवाला बा ई.’

‘अच्छा?’ राहुल आंख फैला के मज़ा लेत बोलल.

‘त तूं ना मनबऽ? ना बतईबऽ?’

‘देखऽ सांच बात त ई बा कि तोहार होखे वाला दुलहा एक आंख आ एक गोड़ से लाचार बा.’ राहुल मज़ा लेत बोलत रहल, ‘एही चलते हम ओहिजा सब का सोझा कुछ बतावे से हिचकत रहनी. अब तूं पुछबू कि तब हमरा के ओकरा से बिआहल काहे जा रहल बा? त देखऽ, हम बस अतने कहल चाहब कि ई बाबू जी के फ़ैसला हवे आ हमनी भाइयन में से केहू बाबू जी के फ़ैसला चैलेंज करे का स्थिति में नइखे. ठीक?’ राहुल बात ख़तम करत पूछलसि, ‘अब हम जाईँ? ढेरे काम पड़ल बा.’

‘ओफ़्फ़ राहुल भइया ई मज़ाक के बात नइखे.’

‘तोहरा अब हमरा बातो पर भरोसा नइखे त हम का कर सकिलें?’ कह के राहुल हंसत छत से सीढ़ी उतरत भाग गइल. ‍ आ जे फेर तिसरकी बेर मुनमुन राहुल के घेरलसि त राहुल साँच बता दीहलन, ‘देख मुनमुन, तोहार दुलहा देखे में औसत बा. ठीक ठाक कहल जा सकेला. अगर अमिताभ बच्चन ना ह त मुकरी भआ जगदीप भा जानी लीवरो जइसन नइखे. क़द तोहरा से बेसी आ रंगो तोहरे जइसन बा.’

‘आ बात बेवहार?’ मुदित होत मुनमुन पूछलसि.

‘अब तूं जे अतना पीछे पड़ल बाड़ू त सांच कहीं हमार बहिन, तनिका समय में केहू केहू केबात-बेवहार कइसे जान सकेला? आ अइसना मौका पर वइसहूं सभे ज़रूरत से अधिका फ़ार्मल हो जाला. हैलो हाय आ एक दोसरा के परिचय का अलावा कुछ ख़ास बात भइबे ना कइल.’

‘चलऽ राहुल भइया अतना बतावे आ ओकरा पहिले ख़ूब सतावे ला शुक्रिया.’ ऊ हाथ जोड़त विनयवत बोलल.

‘आ हँम जे बेसी डिटेल जाने के होखे त रमेश भइया से पूछ लऽ. उहेंका ओकरा से बेसी देर ले बतियवनी. आखि़र उहाँके पुरान मुवक्किल के बेटा हवे. आ फेरु जे साँच पूछऽ त पूरा तिलक समारोह में उहें के भौकालो रहुवे. वी.वी.आई.पी. उहें का रहनी. सभे जज साहब, जजे साहब के धुन लगवले रहुवे. धीरज भइया के कलफ़ लागल अफ़सरिओ उनुका जज साहबियत का आगे नरम पड़ गइल रहल.’

‘रमेश भइया!’ मुनमुन अइसे बोलल जइसे ओकरा मुंह में कवनो तिखाह चीझ आ गइल होखे, ‘हमार औक़ात नइखे उहां से ई सब पूछे के.’

‘त अब हमरा आधा-अधकचरी सूचने से काम चला लऽ.’

‘देखल जाव!’

0 Comments