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बांसगांव की मुनमुन – 7

( दयानन्द पाण्डेय के बहुचर्चित उपन्यास के भोजपुरी अनुवाद )

धारावाहिक कड़ी के सतवां परोस

( पिछलका कड़ी अगर ना पढ़ले होखीं त पहिले ओकरा के पढ़ लीं.)

बाहुबली ठाकुरन के एह गांव बांसगांव, जवन तहसीलो रहल, में अब मुनक्का राय के धाक जम गइल रहल. बीच में जे लोग उनुका से कतराए लागल रहुवे उहो अब उनुका के प्रणाम करे लगलें. कचहरी में ओमईओ अब बुताइल रहे लागल. पहिले ऊ मुनक्का राय के देखते सीना उतान क के चले लागत रहुवे, अब मूड़ी नवा लेव आ ‘चाचा जी प्रणाम!’ कहि के गोड़ो छूवे लागल रहल.

बाकिर गिरधारी राय ?

उनुकर हेकड़ी अबहियों बरक़रार रहुवे. अतना सब होखला का बादो ऊ मुनक्का राय के नीचा देखावे के कवनो मौका बाँव ना जाए देसु. सिल्क के कुर्ता-जाकेट अउर टोपी लगवले ऊ अब नेता कहाए लागल रहलें. बाकिर पता ना का घरे, का बहरे लोग उनुका के नेताजी ना, सिर्फ़ नेता कहल करसु. आ नेतो के एह पर कवनो खास उजूर ने रहुवे. बहुते बेर लोग उनुका के नेता बाबा, नेता भइया भा नेता चाचा कहियो के बोलल करे. आ ऊ खैनी मलत, फटकत, फूंकत, खात, थूकत मगन रहसु. जब-तब तेज़ आवाज़ में हवा ख़ारिज करत घूमत रहसु. कई बेर त ऊ जइसे कपड़ा फाड़े पर चरचरचइला के आवाज होला वइसने आवाज लगातार निकालल करसु. दिन गुज़रत जात रहल आ बांसगांव के सांस में दुनू चचेरा भाइयन के पट्टीदारी राणा प्रताप बनल चेतक पर चढ़ल करे. ई इबारत केहुओ साफ़ पढ़ सकत रहुवे.

पढ़ाई खतमे कइले रहल राहुल कि ओकरा बिआहो के दिन आ गइल. बिआह विनीता तय करववले रहुवे. होखे वाली दुलहिन रहुवे त एही जिला के बाकिर थाईलैंड में रहल रहुवे. ओकर माई बाबूजी दू पीढ़ियन से ओहिजे बस गइल रहलें. से ओकर जनम ओहिजे भइल रहल आ एह नाते ऊ ओहिजे के नागरिक रहुवे. राहुल के फ़ायदा ई होखे वाला रहल कि थाईलैंड के एह लइकी से बिआह कइॢा का बाद उनुको ओहिजा के नागरिकता मिल जाइत आ नौकरिओ आरामे से भेंटा जाइत. बाक़ी भाइयन का तरह कंपटीशन वग़ैरह देबे के मूड में ना रहुवे ऊ. सबकुछ ऊ फटाफटे हासिल क लीहल चाहत रहल. रमेश आ धीरज दुनू उनुका के समुझवलें कि, ‘वइसे शादी कइल चाहत बाड़ऽ त कवनो हरज नइखे बाकिर अगर एह लालच में करत बाड़ऽ कि थाईलैंड के नागरिकता भेंटा जाई आ ओहिजा नौकरी लाग जाई त अइसन मत करऽ.’ बाकिर राहुल के विनीता अतना कनविंस क लिहले रहल कि ऊ केहू के सुने के तइयार ना रहल. मुनक्को राय इशारे में सही बाकिर कहलन कि, ‘टैलेंटेड बाड़ऽ, कैरियर नीमन बा. भाइयने का तरह कम्पटीशन में बइठऽ. कहीं ना कहीं चुनाइए जइबऽ.’ ऊ जोड़बो कइलन कि, ‘अगर रमेश बुढ़ौतिओ में सफलता हासिल कर सकेला त तूं त अबहीं गबरू जवान बाड़ऽ. आपन एम.एस.सी. गारत मत करऽ एह तरह !’

बाकिर राहुल पर विनीता के जादू चल गइल रहुवे.

आ आखिरकार लड़की वाला थाईलैंड से अइलें आ राहुल के बिआह ले गइलें. जी हँ, जइसे लड़िका वाला लड़की बिआह के ले जालें वइसहीं राहुल के ससुरारी वाला राहुल के बिआह ले गइलें. बस बिआह का बाद दू महीना इंडिए में रहे के प्रोग्राम दुलहिन के पहिले से बना के आइल रहलें. कोर्ट मैरिज अउर वीज़ा वोगैरह के फार्मेलिटीज़ पुरावे ला. पासपोर्ट त राहुल पहिलहीं से बनवा रखले रहल.

ख़ैर, एह बिआह में बाजार भाव से अधिके तिलक-दहेज मिलल मुनक्का राय अपना बेटा खातिर. आखि़र लड़िका ए.डी.जी., ए.डी.एम. अउर बैंक मैनेजर के भाई रहुवे. लड़िकी वालन का लगे थाईलैंड के कमाई रहल आ ओकरा के देखावे के ललको रहल. बिआह धूमधाम से भइल. बारात बांसगांव से शहर के गइल. बारात में द्वारपूजा का बाद जज साहब, आ उनुका चाचा के खोज भइल त दुनू जने गायब रहलन. दू-तीन घंटा ले दुनू जने के एहिजा-ओहिजा खोजाईओ भइल. बाकिर कहीं पता ना पागल. बारात में गुपचुप सन्नाटा पसर गइल. नौबत अब पुलिस में रिपोर्ट करावे के आ गइल. बाकिर एगो वकील साहब कहलन कि ‘जल्दबाज़ी ना करे के चाहीं. तनिका देर अउर देख लीहल जाव. रिपोर्ट त बादो में लिखावल जा सकेला.’ बारात में सन्नाटा पसरले जात रहुवे. बारात के सगरी ख़ुशी मातम में बदले लागल रहुवे. द्वारपूजा का बाद के रस्मो रोक दीहल गइल रहुवे. लोग कहत रहे कि बांसगांव से त दुनू जने चलबे कइलें. फेर गायब कब आ कहाँ हो गइलें. फेर राय बनल कि बांसगांव घरे फ़ोन कर के पूछ लीहल जाव. बाकिर मुनक्का राय ई कहि के रोक दिहलें कि, ‘घरे बस मेहरारू बाड़ी सँ आ रो-गा के पूरा बांसगांव बटोर लिहें सँ. बदनामिओ होखी आ भद्दो पिटाई.’

खाना-पीना हो चुकल रहुवे आ घराती बेर-बेर आ के बारात में आगा के रस्म करावे ला ज़ोर डालत रहलें. अगिला रस्म ताग-पात के रहुवे जवना के पंडित जी लोग कन्या निरीक्षणो कहेला. एह रस्म में दुलहा के बड़का भाई सब विधि करावेला. आ एहिजा बड़के भइया, माने जज साहब, ग़ायब रहलन. से जनवासा के मुर्दनी छपले पढ़ल रहुवे. एक जने सलाह दिहलन कि ए.डी.एम. साहब भा बैंक मैनेजर साहबे से ई रस्म करवा लीहल जाव. बाकिर ए.डी.एम. साहब, माने कि धीरज गँवे से बोलल, ‘ना जज साहब के आ जाए दीहल जाव.’

जज साहब आ चाचा जी अधरतिया के करीब बारह बजे आइल लोग. सभका जान में जान आइल. पता चलल कि चाचा जी आपन कुरता सिआवे ला उर्दू बाज़ार के एगो ख़ास दर्जी मटका टेलर्स के दिहले रहलन. ख़ास एही बारात ला. दुकान पर चहुंपलन त पता चलल कि जवन दर्जी ओह कुरता के सीयत बा ऊ ओह दिन आइले ना रहुवे. आ चूंकि कुरता हाथ से सिए के रहल से ऊ घरहीं लेले गइल रहुवे. आ घर ओकर शहर का बहरी एगो गांव में रहुवे. चाचा जी अब ओकरा गांवे गइलें. जज साहब के कार साथे रहबे कइल. दर्जी का गांवे गइलन त कुरता के कुछ काम बाकिए रहल. काम करवलन. कुरता पहिरलें आ बारात खातिर चलल लोग. रहता में जाम मिल गइल. जाम से निकललें त गाड़ी ख़राब हो गइल. फेर रिक्शा लिहलें आ बारात में चहुंपले. मुनक्का राय ई सब सुन के बहुते नाराज़ भइलन बाकिर मौक़ा के नज़ाकत देखत कुछ बोललन ना. ओने दुलहा राहुलो जज साहब पर कुपित रहुवे. उनुके वजह से ओकरा बिआह में खरमंडल हो गइल. ई बात ऊ आगहूं का दिनन में ना भुलाइॢल कबो.

ख़ैर, बिआह के कार्यक्रम पूरा भइल. औपचारिकतन के पुरावल गइल. बाद में कोर्टो मैरिज भइल आ ओकरा बादे वीज़ा मिलल. राहुल के ले के उनुकर दुलहिन थाईलैंड उड़ गइल. अब बांसगांव में रह गइलन मुनक्का राय, उनुकर पत्नी आ बेटी मुनमुन राय.

इहो एगो संजोागे रहल कि जइसे-जइसे मुनक्का राय के परिवार में बेकत कम होखल गइलें, ठीक वइसहींं बांसगांव तहसीलो ढहल जात रहुवे. आस पास के क़स्बा बढ़त जात रहलें, विस्तार के पाँख लगवले. बाकिर बांसगांव ठिठुरत रहुवे, सिकुड़त रहुवे. देश के जनसंख्या बढ़त रहल, बाकिर बांसगांव के सिर्फ जनसंख्ये ना तहसील के रक़बो घटत जात रहुवे. 1885 में बनल एह तहसील में पहिले करीब बाइस सौ गांव रहुवे. 1987 में दु गो नया तहसील – गोला अउर खजनी – बन गइला से अब बांसगांव में महज सवा चारे सौ गांव रह गइल रहुवे. कहां त तमाम तहसील ज़िला बनत जात रहली सँ, कहां बांसगांव तहसीले बनल रहे खातिर हांफत रहल. ।

1904 में बनल तहसील के बिल्डिंगा ख़स्ताहाल हो चलल रहुवे. बाकिर बांसगांव के बाबू साहबान के दबंगई आ गुंडई अबहियों अपना शान आ रफ़्तार पर रहली सँ. आ ई शान अउर रफ़्तार अइसना वेग में रहली सँ कि बांसगांव बसला का बदले उजड़ल जात रहल. कवनो व्यवसायी एहिजा फरत-फुलात ना लउकत रहल. कवनो उद्योग भा रोज़गार के ठेकाने ने रहल. ले दे के एगो कचहरी, एस.डी.एम. के दफ़्तर अउर कोतवाली रहल. पोस्ट आफ़िस, ब्लाक के दफ़्तर आ प्राथमिक चिकित्सालयो रहुवे. एगो कालेज लड़िकन के आ दोसरका लड़िकियन के इंटर कालेज रहली सँ आ एगो प्राइवेट डिग्री कालेजो रहल. बाकिर एह सभ का भरोसे भला कतहीं आबादी बसेले ? सड़कन में एक-एक फ़ीट के गड़ही. दोसरे, बाबू साहबान के दबंगई, उनुकर रंगदारी. चाय पी लिहें, पान खा लिहें, पइसा ना दिहें. ग़लती से अगर दुकानदार पइसा मांग लिहलसि त ओकरा के लात-जूता से धुन दिहें. बाबू साहबान एहिजा के पहिला दर्जा के नागरिक रहलें. बाकी लोग दुसरका-तीसरका दर्जा के नागरिक. तेहू पर कब गोली-बंदूक़ चल जाई केहू ना जानत रहुवे.

शहर के यूनिवर्सिटी में ओह दिनन में अइसन वाक़या अकसरहाँ घटल करे. एक त बाबू साहब लोग पढ़ाई करे यूनिवर्सिटी ले अइबे ना करसु. आइओ जासु त पूरा दबंगई का साथे. बग़ल का ज़िलन में दू गो गांव कईन आ पैना बाबूए साहबान के रहुवे. यूनिवर्सिटी में दबंगई चलल करे आ सामने वाला बतावे कि हमार गाँव कइन ह त लोग चुप लगा जाव. बाकिर अगर कवनो दूसर दबंग आ जाव आ ओकरा के कहे कि, ‘तूं कईन के हउवऽ नू ? त हमार घर पैना हवे।’ त कईन वाला चुपा जाव आ कहीं तिसरका आ के बता देव कि ‘हमारा घर बांसगांव ह !’ त पैनो वाला चुपा जाव. त ई रहुवे बांसगांव के तासीर !

वइसहूँ अगल-बगल का गांवन में एगो बात बड़ मशहूर रहुवे कि अगर सुबह-सबेरे केहू बांसगांव के नाम ले ली त ओह दिन ओकरा दिन भर पानी ना भेंटाई, खाना त दूर के बात रही. बांसगांव मतलब बिपत. बलुक बिपत के पिटारा. मुनक्का राय के गांव में त एगो बुढ़ऊ बहुते ठसक से कहसु कि, ‘हम बांसगांव नइखीं देखले. आजु ले गइलो नइखीं.’ कवनो नवही पूछ लेव त खिसिया जासु. कहसु, ‘कवनो चोर चकार हईं का जे बांसगांव जाईं ?’ मुख़्तसर में बांसगांव का रहल, पूरा तालिबान रहल.

आ अइसनका बांसगांव में मुनमुन जवान होखत गइल. अब ‘हम कइसे चलीं डगरिया लोगवा नज़र लड़ावेला’ गाना जे ऊ लईकाईं में सुनले रहल, ओकरा जवानी में छलके लागल रहुवे. ओकर शेख़ी भरल शोख़ी बांसगांव में एगो नया सनसनी परोसत रहुवे. कवनो रोक-छेंक रहुवे ना. सखी-सहेलियां टोकऽ सँ त ऊ कहल करे – ‘ख़ुदा जब हुस्न देता है, नज़ाकत आ ही जाती है !’

(उपन्यास के नायिका मुनमुन के इंट्री हो गइल त सोचत बानी कि रउरा सभे के अगिला कड़ी के इंतजार कराईं. घबड़ाईं जन, जल्दिए लवटब अगिला कड़ी का साथे.)

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