भउजी हो !
का बबुआ ?
आजु त उपासल होखबू ?
हँ बबुआ आजु तीज के व्रत त सभे औरत करेली.
एही पर एगो सवाल बा भउजी ? तोहरा लोग खातिर त तीज, जिउतिया तरह तरह के व्रत बा बेटा भतार खातिर बढ़िया मनावे के. बाकिर मरदन के एहसे आजाद काहे राखल बा ?
ई दरद रउरा ना बूझ पाएब. मरद हईं मरदे रहब. बाकिर सवाल कइले बानी त हम आपन जबाब त देबे करब. असल बाति ई बा कि हमनी का आपन घर छोड़ के दोसरा का घर में आइले जा आ ओही घर के आपन घर बना के राखीला जाँ. आपन बाप महतारी भाई बहिन सगरी छूटि जाला. अब अगर इहो सहारा छूटि जाव त हमनी का कहाँ जाएब कहाँ के रहि जाएब ! एही चलते औरत हमेशा अपना बेटा भतार के बढ़िया मनावेली. ई विस्थापितन के दरद ह बबुआ. एक जगहा से उखरला का बाद दोसरा जगहा ठौर बनावे के दरद. पार्वती जी के माईओ उनुका के विदाई का बेरा इहे कहले रही कि, “करेहू सदा शंकर पद पूजा, नारि धरम पति देव न दूजा.”
ठीक कहत बाड़ू भउजी. आजु त कुछ खाएब पिएब ना. चलत बानी.
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