भाँड़ आ भँड़ुआ के फरक

रउऱो सोचत होखब कि जब बतकुच्चन करत बानी त एकरा के बतकुच्चन में काहे नइखौं डलले. असल में ई बतकुच्चन ना होके यथार्थ के देखे-समुझे के कोशिश बावे.

पुरातन काल से चलत आवत बा कि मीडिया के आदत होला – “अश्वत्थामा हतो” कहे के बाकिर साथही साथ जोड़ल भुला जाए कि – ‘नरो वा, कुञ्जरो वा !’ आ अगर कहबो करे त सोशल मीडिया के शंखनाद में ओह वाक्य के डूबा दीहल जाव.

देश आजुकाल्हु मोदी युग से गुजरत बा. भलहीं लोग आजु एकरा के मोदी युग का नाम से नइखे बोलावत बाकिर आगे चलि के जब एह काल के चरचा होखी त एकरा के मोदिए युग का नाम से जानल जाई. पहिले के युग में मीडिया एक त सरकारी कंट्रोल में रहुवे आ जवन स्वतंत्र मीडियो रहबो कइल त ऊ भाँड़ मीडिया वाला रहल. बाकिर मोदी युग में मीडिया दू खेमा में बँटा गइल बा – भाँड़ आ भँड़ुआ मीडिया में. पुरनका जमाना में भाँड़ आ भँड़ुआ का बीच में फरक या त रहबे ना कइल भा ओकर जरुरते ना रहल. लेकिन आजु भाँड़ आ भँड़ुआ मीडिया दुनू अपना चरम पर बाड़ें. कहे वाला एकरा के मोदी मीडिया आ गोदी मीडियो का नाम से बोलावेलें. एक समूह मोदी के समर्थन करेला, दोसरका ओकरा विरोध में रहेला. ना हे में ना शी में वाला मीडिया आजु शायदे मिले कहीं.

अब अतना लिख लिहला का बाद जरुरी लागत बा कि एकरा के परिभाषितो कर दीहल जाव. भाँड़ मीडिया के पुरनका जमाना में चारण मीडिया कहल जात रहे. एह मीडिया के कामे होला जे सत्ता मेंं रहे ओकर वन्दना गावल, बढ़ा-चढ़ा के ओकर गुणगान कइल. दोसर समूह भँड़ुआ मीडिया कहल जा सकेला. काहें कि ई ओह लोग के प्रशंसा करे में लागल रहेला जे सत्ता में नइखे बाकिर येन-केन-प्रकारेण सत्ता में आवल चाहत बा. हमरा याद पड़ेला साठ के दशक में कोलकाता – तब ओकरा के कलकत्ता कहात रहुवे – के एगो हिन्दी दैनिक रहुवे – दैनिक विश्वमित्र. ओकर संपादक शान से कहल करसु कि उनुकर अखबार देशभक्त होखे चाहे ना, राजभक्त जरुर हउवे !

हम एह लाइन से बहुत फरका ना चलीं बाकिर हमार कहना हऽ कि मीडिया कुछऊ होखे ओकरा निष्पक्ष ना होखे के चाहीं. या त पक्ष में रहे भा विपक्ष में बाकिर निष्पक्ष में ना ! रउरा कहब कि ई कवन बात भइल. त जान लीं कि अगर मीडिया पक्ष में बा तबो आ विपक्ष में बा तबो पाठकन के पता लाग जाला कि ऊ पक्ष में बा कि विपक्ष में. बाकिर निष्पक्षता के आवरण में रहे वाला मीडिया सबसे निकृष्ट होला. ऊ सिर्फ अपना फायदा के सोचेला आ ‘जइसन बहे बयार पीठ तब तइसे कीजो’ का तर्ज पर काम करेला.

रउरा इहो कहब कि आजु अचानके हम मीडिया पर काहे बरसे लगनी. आ अंजोरिया भाँड़ मीडिया हऽ कि भँड़ुआ मीडिया. त जान लीं कि मनरंजन के क्षेत्र में हम भँड़ुआ मीडिया के काम करेनी बाकिर सामाजिक आ राजनीतिक क्षेत्र में भाँड़ वाला. आ हम एही राह पर बनल रहब जबले सरकार सही राह पर बिया, देश हित में बिया, हिन्दू हित में बिया. हम कबो आपन पूर्वग्रह भा दुर्वाग्रह तोपे लुकाऊ के कोशिश ना करीं.

बाकिर भँड़ुआ मीडिया !

ऊ आधा बात बताई, आधा पचा जाई. बताई कि नितिन गडकरी, जिनकर नाम भाजपा का पहिलका सूची में ना आइल, हवाई अड्डा पर मोदी के स्वागत करे चहुँपलन. ऊ ई ना बताई कि गडकरी महाराष्ट्र से आवेलें आ भाजपा अबहीं ले महाराष्ट्र के नाम फाइनल नइखे कइले.

ऊ ई त बताई कि राजनीतिक चंदा खातिर मोदी सरकार के बनावल इलेक्टोरल बॉण्ड के प्रणाली के न्यायपालिका असंवैधानिक करार कर दिहलसि. कहलसि कि जनता के अधिकार होखे के चाहीं कि ओकरा मालूम रहे कि कवना राजनीतिक गोल के कवना कंपनी भा कवना धनपति से कतना चंदा मिलल. बाकिर ई ना बताई के आजु के न्यायाधीश न्याय के अधीन ना रहसु, न्याय के अपना अधीन राखेलें. आ शायद एही चलते एह लोग के न्यायमूर्ती कम कहाला, न्यायाधीश अधिका ! ई मीडिया रउरा के इहो ना बताई कि एह इलेक्टोरल बॉण्ड वाली प्रणाली से पहिले ले, माने कि मोदी सरकार का पहिले ले, अधिकतर चंदा करिया कमाई में दीहल जात रहुवे. बॉण्ड वाली प्रणाली में सगरी व्यवस्था के ई मालूम रहेला कि कवन बॉण्ड के खरीदल आ ओकरा के केकरा के दीहल. सार्वजनिक ना होखे त बस इहे कि के केकरा के कतना दीहल. अगर पता चले लागे कि कवन उद्योगपति सरकारी गोल के भा विरोधी गोल के कतना चंदा दीहले बा त ओकरा दुष्प्रभाव के अंदाजा रउरो लगा सकीलें. अगर विपक्ष के चंदा दिहलसि त सरकार के कोपभाजन बन जाई आ अगर सरकारी गोल के चंदा दिहलसि त बाद में अगर सरकार बदलल त नयका सरकार के कोपभाजन बन जाए के पड़ी. न्याय के अपना अधीन राखे के शौकीन न्यायाधीश लोग ई कबो ना बताई कि न्यायाधीशन के नियुक्ति के मौजूदा प्रणाली संविधान के कवना प्रावधान का तहत बा. ऊ लोग एकरो ला सहमत ना होखे कि जनता के मालूम होखे के चाहीं कि कवना न्यायाधीश के नियुक्ति कवना आधार पर कइल गइल भा कवना न्यायाधीश के कवना कारण से प्रोन्नति ना दीहल गइल. ऊ लोग एकरा के एकदम गोपनीय राखल चाहेला कि न्यायाधीशन के नियुक्ति तय करे वाली कोलेजियम में का चरचा भइल. ई बात जाने के अधिकार जनता के काहे ना होखे के चाहीं ?

आ भंड़ुआ मीडिया इहो ना बतावल चाही कि ऊ सार्वजनिक करो कि कवना राजनीतिक गोल भा कवना सरकार के कतना विज्ञापन ओकरा मिलत बा, भा मिलल बा आ एकरा से ओकरा कतना कमाई होखत बा ?

अब इहो जान लीं कि आजु ई भँड़ास कवना चलते निकलनी. भोजपुरी के सबले पुरान आ दुनिया में भोजपुरी में पहिलका वेबसाइट होखला का चलते हम मानीलें कि भोजपुरी में कतहीं कुछ नीमन भा बाउर हो रहल बा त ओकर जानकारी आम भोजपुरियन तक चहुँपा दीं. ‘कवन जात हो’ फेम के एगो पत्रकार हउवन रविश कुमार. भोजपुरी के सौभाग्य से ऊ भोजपुरिया हउवन आ उनुकर एगो भोजपुरी चैनल चलेला यूट्यूब पर बिहान के नाम से. चैनल भोजपुरी में बा त ओकर जानकारी रउरा तकले चहुँपावल हमार काम होखहीं के चाहीं. बाकिर चूंकि हम उनुका राजनीतिक प्रलाप से सहमत ना रहीं एहसे अबहीं ले उनुका के शेयर ना कइनी रउरा लोगन से. आजु अचानके उनुका बिहान पर चहुंप गइनी त एगो नया प्रलाप लउकल. रउरा सभे से ओकर आलोचना-समालोचना कइला से बेहतर इहे बा कि उनुका चैनल के जस का तस रउरा सोझा परोस दीं. फैसला रउरा सभे पर बा.

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