आदर्श युवक के सम्मोहक प्रेम के सूत्र में बंधल सामाजिक ताना बाना
‘जुगेसर’ उपन्यास एगो अइसन व्यापक फलक वाला आधुनिक उपन्यास ह जवना में गांव अउर शहर दूनों के सामाजिक परिस्थिति अउर चुनौती के वस्तुपरक ढंग से बहुत व्यापक अर्थ में चित्रण बा. कथानक के पात्र खाली व्यक्ति ना हउअन बलुक ऊ मौजूदा समाज के एगो अइसन व्यक्ति बनके आइल बाडऩ जवना में उनका निजीपन के अतिक्रमण भइल बा आ ऊ समाज के लाखोंलाख लोगन के प्रतिनिधित्व करे में समर्थ बाडऩ. उपन्यास के नायक जुगेसर कउनो साधारण युवक ना हउअन बलुक ऊ एगो अइसन जोशीला, आदर्शवादी अऊर निष्कपट व्यक्ति हउअन जवन समाज में व्याप्त तमाम समस्या से जूझऽता अउर अपना ढंग से प्रतिक्रिया देऽता अउर एही समाज में अपने जीए के एगो अलग रास्ता बनावऽता. ई रास्ता संघर्ष के नइखे ऊ सहअस्तित्व के सिद्धांत पर चलऽता. दोसरा के बदले के त बहुत प्रयास नइखन करत लेकिन अपना आचरण के शुचिता के आखिर ले बरकरार राखे में सफल बाड़े. जुगेसर के जीवन अपने आपमें एगो आदर्श युवक के जीवन बा अऊर चुपचाप एगो मॉडल देश-दुनिया के सामने रखऽता कि कइसे विपरीत परिस्थितिओ में बिना समझौता कइले व्यक्ति सादगी अउर बिना भ्रष्टाचार के कवनो रास्ता अपनवले आपन जीवन शुचिता से गुजार सकऽता.
जुगेसर साइंस के मेधावी छात्र रहे अउर बिना कवनो जोड़ तोड़ के अपना व्यक्तित्व के खूबी के साथो तरक्की करत चलल जा ता. पद प्रतिष्ठा में जुगेसर से सफलो व्यक्ति ओकरा व्यक्तित्व का आगे नत हो जाता अउर पाठक के निगाह में बौनो. सफल व्यक्ति हमेशा समाज के आदर्श व्यक्ति ना होखे ई बात पूरा शिद्दत से हरेन्द्र कुमार जी अपना ए उपन्यास में उठवले बानी आ ईहो एगा कारण बा जवन एह उपन्यास के सार्थकता प्रदान कर ता.
उपन्यास में खाली सामाजिक ठोस यर्थाथे नइखे. एकर प्रमुख विशेषता बा एकर रोचकता. हृदयस्पर्शी एगो प्रेम कथा के सूत्र से ई उपन्यास बंधल बा जवन जुगेसर के दाम्पत्यो जीवन में बरकरार रह ता, जवन ना सिर्फ युवा पाठकन के बलुक पोढ़ो पाठकन के समान रूप से आकृष्ट करी. स्त्री के व्यक्तित्व के औदात्यपूर्ण चित्रणो एह उपन्यास के अर्थवान बनावे में समर्थ भइल बा. जुगेसर के प्रेमिका पूजा, जवना से बाद में जुगेसर अपना परिवार के अनिच्छा के बावजूद शहर में विवाह कर ले ता, एगो अइसन आदर्श नारी के रूप में उभर के आवऽतिया जे भारतीय समाज के पारिवारिक ताना-बाना के मजबूत कऽ के आदर्श प्रस्तुत करऽतिया. प्रेम परिवार से अलगाव करावे ला के प्रचलित धारणा के विपरीत मौका पड़ला पर प्रेम के परिधि केतना विस्तृत हो सकेला पूजा के चरित्र ओकर उदाहरण बा. उपन्यास में प्रेम के द्वंद्व, अंतरजातीय विवाह के समस्या, शिक्षा जगत आ राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार आदि समस्या के बखूबी उठावल गइल बा जवन उपन्यास के उपन्यासे नइखे रहे देत बल्कि समाज के मौजूदा स्वरूप पर सार्थक टिप्पणी बन जाता. उपन्यास में प्रेम क कएकगो दृश्य एतना जीवन्त बा कि पढ़त समय पाठक के सामने दृश्य उपस्थित करे में समर्थ बा. हरेन्द्र जी के लेखन शैली एतना सादगी पूर्ण अउर भाषा एतना सरल-सहज आ प्रवाहपूर्ण बा कि कहीं से साहित्यिकता के आतंक नइखे होत बल्कि रोचकता, सरसता आ आगे का भइल जाने के जिज्ञासा अन्त तक बनल रह ता. अउर अन्त में उपन्यास पढ़ के आंख छलाछला जाय तो एके उपन्यास दोष न मानल जाव, मन भारी हो जाई लेकिन उपन्यास के कथानक अउर चरित पाठक के मन में हमेशा-हमेशा खातिर आपन जगह त बनाइए ली, ई पूरा विश्वास बा.
– डॉ.अभिज्ञात
आपन बात
हरेन्द्र कुमार पाण्डेय अँजोरिया पाठकन खातिर अपरिचित ना हईं. इहाँ के लिखल उपन्यास सुष्मिता सान्याल के डायरी बहुत पहिले से अँजोरिया पर मौजूद बा. दुख एक बात के बा कि पीडीएफ फार्मेट में होखला आ बहुते बड़हन फाइल होखला का चलते बहुते कम लोग एकरा के पढ़ले बा. सौभाग्य से डा॰ हरेन्द्र कुमार अपना नया उपन्यास “जुगेसर” के साफ्ट कॉपी भेज दिहले बानी. एह उपन्यास के प्रकाशन धारावाहिक रूप में कोलकाता के लोकप्रिय हिन्दी दैनिक “सन्मार्ग” में हो चुकल बा आ बाद में पुस्तकाकारो में प्रकाशित भइल बा सन्मार्ग का तरफ से. पेश बा उहे उपन्यास अँजोरिया के पाठकन खातिर.
एह तरीका से प्रकाशित होखला से भोजपुरी साहित्य पूरा दुनिया के भोजपुरी पाठक पाठिकन के सहज रूप से मिल जाई आ भोजपुरी खातिर ई सबले बढ़िया तरीका लागेला हमरा.
एहिजा इहो बता दिहल जरूरी लागल कि बता दीं कि उपन्यास के अँजोरिया शैली में डाले का चलते कुछ कुछ बदलाव कइल गइल बा. एह धृष्टता खातिर हम माफी माँगब बाकिर हमरा ई जरूरी लागल एह से हम कइले बानी. आशा बा कि लेखक समीक्षक के एह पर ढेर आपत्ति ना होखी.
पूरा उपन्यास बहुते जल्दिए पूरा प्रकाशित कर दिहल जाई काहे कि ई भोजपुरी में लिखल गइल बा आ अनुवाद करे के परेशानी नइखे एकरा साथे जइसे कि “लोक कवि अब गाते नहीं” का साथे भइल बा आ अबही ले ओकर पूरा अनुवाद प्रकाशित नइखे हो सकल.
ओम,
संपादक, अँजोरिया.कॉम
सुस्मिता सान्याल वाला उपन्यास हम पढले रहनी। ऊ उपन्यास भोजपुरी समाज से अबहीं बहुत दूर के बाऽ। ओकरा पर आधुनिक अंगरेजी आ हिन्दी उपन्यास के छाप साफ लउकतऽ।
नयको के स्वागत बाऽ।