भोजपुरी साहित्य के समृद्धि में विमल के डायरी ‘नीक-जबून’
  • डॉ अर्जुन तिवारी

न समझने की ये बातें हैं न समझाने की
जिंदगी उचटी हुई नींद है दीवाने की.

  • फिराक गोरखपुरी

दुख-सुख, हर्ष-विषाद, आशा-निराशा, हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश के चलते हमनी के जीवन तबाह बा. कभी-कभी क्षणिक हास-परिहास हो जाला, जवना के यादगार बनावे खातिर कलम के सिपाही सभ आतुर रहेला आ ओकरा के लिपिबद्ध करेला. दैनिक घटना का संबंध में अपना मन का उधेड़-बुन के टाँकल एगो उत्तम विधा ह, जवना के डायरी कहल जाला. डायरी रोजाना के अनुभव आ तथ्य के स्मारक ह. डायरी लेखन में तीन बातन पर विशेष ध्यान दिहल जाला-
क- विवरण संक्षेप में होखे, तथ्यात्मक होखे.
ख- स्थान, घटना, अनुभूति स्पष्ट आ निष्पक्ष हो.
ग- कल्पनाशीलता, चित्रात्मकता, बनावटीपन से परहेज राखल जाव. लेखक के चिंतन-चरित्र-व्यक्तित्व के जाने-पहचाने के सुगम माध्यम डायरी ह. एहमें आत्मीयता, निकटता, क्रमबद्धता का समावेश से विलक्षणता आ जाला.

डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल के नीक-जबून के पूरा पढ़ गइला पर हमरा आँख के आगे भक दे अँजोर हो गइल, हम भोजपुरी माई के धन-धन करे लगनीं. आज काल्हु नवका पढ़ाकू लोग कह देला कि भोजपुरी के साहित्य समृद्ध नइखे. ई कहेवाला के अब सुटुक जाएके चाहीं. ‘नीक-जबून’ जइसन भोजपुरी डायरी के पसंगो में दूसर भाषा के डायरी नइखे छपल. ई डायरी सत्यान्वेषण के नजीर के रूप में बा. ‘सर्वे सत्यम् प्रतिष्ठितम्’ के अनुरूप सितंबर 2016 से अक्टूबर 2018 तक के कालखंड में जीवन में जवन-जवन घटना घटल ओकर पोस्टमार्टम करिके डॉ. विमल समाज के सचेत कइले बानीं.

एह ग्रंथ के पहिलके पन्ना पर जब हम पढ़नीं… ‘अपना माटी के भाषा के गर्व से भाषा बनावल जा सकता, भोजपुरी में नेवता लिखल जाव’. ई पढ़ते हमारा देशरत्न बाबू राजेंद्र प्रसाद जी याद आ गइनीं. राष्ट्रपति रहते राजेंद्र बाबू अपना पोती का बियाह के कार्ड भोजपुरी में छपववले आ बँटले, जवना के शुरुआत ‘सोस्ती सीरी सरब उपमा जोग….’ रहे. महान लोग का चिंतन में केतना साम्य होला, एकर ई पुष्ट प्रमाण बा. एह दूरदर्शिता खातिर डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल जी के बधाई. एकरा पथ पर चलिके भोजपुरिया भाई आपन स्वाभिमान बढ़ावस त अच्छा. साँचो अइसने काम शुरू कइके भोजपुरी के स्वाभिमान से जोड़ल जा सकेला.

“रसियाव खाईं आ टन-टन काम करत रहीं’ दिसंबर 2016 का डायरी में टाँकल बा. विमल जी लिखले बानीं- ‘धन्य रहन हमार पूर्वज, बात-बात में बिग्यान. हम त आजुओ कहबि कि लजाईं सभे मति कि रसियाव देखिके लोग रउआँ के गरीब आ पुरान बूझे लगिहें. लउकी-भात आ रसियाव के परंपरा के जिंदा रहे दिहल जाव. एही प लउकजाबरि, अलुमकुनी, गादा के दालि, महुआ के लाटा, बजड़ा आ जोन्हरी के चिउरी, साँवा के भाका, टाङुनि के लाई आ दरिया-दही पर बात चले लागल अउर हमार कुछ बंगाली मित्र कबो अचरज से आ कबो भकुआ के हमनी के देखे लगलन. ”

कृपाशंकर उपाध्याय जी भोजपुर कॉलोनी के जान रहीं, शान रहीं. आजु ओह नेह के दरियाव के इयाद से मन-प्राण भींज गइल बा –
“सूतल सनेह आके के दो जगा गइल.
जिनिगी में दरद के बा लहबर लगा गइल. ”
एह पन्ना के कथ्य आ शिल्प दूनू बेजोड़ बा. आत्मीयता, स्वाभाविकता से परिपूर्ण ई डायरी सदाशयता आ मानवता के पाठ पढ़ा रहल बिया. आज के घोर मतलबी दुनिया में
‘तुम्हें गैरों से कब फुर्सत, हम अपने गम से कब खाली ?
चलो बस हो चुका मिलना न तुम खाली न हम खाली. ’
भाव-प्रवण डायरी-लेखन से मिसिर जी इतिहास पुरुष बन गइनीं.

‘बगसर बिसरत नइखे’ का बहाने भोजपुरी के साधक उपन्यासकार भारवि जी, भोजपुरी के गौरव ‘विप्र’ जी, भोजपुरी साहित्य मंडल, रामदयाल पांडेय जी, गणेश दत्त किरण आ रामेश्वर सिनहा ‘पीयूष’ जी के स्मरण महत्त्वपूर्ण बा. “आरा बलिया छपरा, भोजपुरी के अँचरा” हमरा खातिर पुरान पड़ गइल. हम त “बकसर बलिया छपरा, भोजपुरी के इहे अँचरा” कहींले.

‘सगरी उमिरिया दरदिया के बखरा’ सुनते हरिवंश पाठक ‘गुमनाम’ जी सामने खड़ा हो जाईंले-
“मटिया क गगरी पिरितिया क उझुकुन
जोगवत जिनिगी ओराइ
सगरी उमिरिया दरदिया के बखरा
छतिया के अगिया धुँआइ. ”
एह चार लाइन के व्याख्या खातिर चार ग्रंथ लिखे के पड़ी. अल्प शब्द में अति विशाल भाव, रूपक अलंकार का बेजोड़ प्रयोग से भोजपुरी के खोइँछा भरे का चलते गुमनाम जी आ विमल जी के साधुवाद.

प्राचार्य डॉ. संजय सिंह ‘सेंगर’, सुनील सिन्हा के स्तंभ, धन्य बानी तुलसीदास जी, स्वामी मनोज्ञानंद, महेंद्र मिश्र के शिल्प-विधान आ कैलाश भइया जइसन पर डायरी लिखके अति विशिष्ट पल के यादगार पल के याद करत लेखक नई पीढ़ी का सामने अनुकरणीय बात-व्यवहार परोसले बाड़े ताकि साहित्य के प्रेरक तत्त्व सिद्ध हो जाव.

भोजपुरी में पहिले पहिले डायरी लिखके मिश्र जी जहाँ भोजपुरी के समृद्ध कइले बानी, वोही तरह ‘वाक्यं रसात्मकं काव्यम्’ के चरितार्थ करे में अपने साहित्य-शिल्प, सौष्ठव के सदुपयोग कइले बानी. गद्य में लिखाइल ई डायरी संवेदना, मर्म आ उत्तम शैली का चलते पद्ये बुझाता. प्रकाशन नमन पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रिब्यूटर्स आकर्षक मुद्रण, विषिष्ट कवर पेज आ नीमन कागज के प्रयोग कइले बाड़े. उनका के अनघा बधाई. ई भोजपुरी डायरी भोजपुरी के मान, शान, स्वाभिमान बढ़ाई. एकर पाठक यशस्वी होइहें- एमें कवनो शक-सुबहा नइखे. डॉ. विमल अइसने कृति से साहित्य के भंडार भरत रहीं- हमार ईहे कामना बा.

ग्रंथ के नाम : नीक-जबून
विधा : डायरी
लेखक : डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल
प्रथम संस्करण : 2019
ISBN : 978-81-944361-1-9 & 978-81-944361-0-2
पृष्ठ : 120
मूल्य : 220/110 रुपए (सजिल्द/अजिल्द)
प्रकाशक : नमन पब्लिशर्स एंड डिस्ट्रिब्यूटर्स, कानपुर.

0 Comments

Submit a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *