– अशोक द्विवेदी
तुलसी, सूर प’ मूड़ी झाँटसु
ले कबीर के नाँव, सरापसु
भदभाव के टाफी चाभत
कबिता कहनी लीखसु नारा !
उहो बजावे ले एकतारा !
पढ़सु फारसी, बेचस हिन्दी
उर्दू में अंगरेजी बिन्दी
अनचितले जब तब चिहाइ के
नापसु भोजपुरी के पारा !
उहो बजावे ले एकतारा !
सवख क्रांति के जब जब उमगे
नकली अहरा भित्तर सुनुगे
ढकचसु ज्ञान, करस गोलबंदी
लफ्फाजी के लेइ सहारा !
उहो बजावे ले एकतारा !
बिहिटी-लुगरी देखते चिहुँकस
आरत जन का दुख पर बहसस
भेद करसु अदिमी-औरत में
‘समता’ के बोकरस फउहारा !
उहो बजावे ले एकतारा !
धरम निबाहे में रिसियालन
प्रेम के पजरा कबो ना जालन
प्रेम, दया करुना ममता
पर, धइ लेलन सरकहवा नारा !
उहो बजावे ले एकतारा !
देह, भूख के बाटे बन्डल
रोजी-रोटी में भूमंडल
मायावी-बाजार घुमावे
घूमसु ऊ बन के बंजारा !
उहो बजावेले एकतारा !
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