मईया लछिमी तू मड़ई में अइतू

– हरीन्द्र हिमकर

मईया लछिमी तू मड़ई में अइतू
दुअरिआ पर दिअरी सजइतीं
मड़ई में अइतू त चटइ बिछइतीं
गाइ का गोबरा से अंगना लिपइतीं
मूज का रसरिआ में आम का पतईयन से
झलर-मलर झलर-मलर झलरी लगइतीं।

मईया लछिमी जो अंखिया घुमइतू
त राह में अंजोरिआ बिछइतीं
हरदी चउरवा से चउका बनउतीं
दूब -धान पंखुरी से चउका सजउतीं
केरा का पतई पर मरचा के चिउरा
आ दही गुड़ परसी के जेवना जेंवंवती।

मईया एकबेर जूठन गिरइतू
त असरा के कलसा सजइतीं
एक बेर अइतू त लइतीं बतासा
बजवइतीं दुअरा पर पिपुही आ तासा
मनफेरवट तोहरो नू होइत हे माई
रहिया बदलतू त बदलित परिभासा।

माई एक बेर खप्पर घुमइतू
त हमहूं पटाखा उड़इतीं
मड़ई में अइतू त चौमुख जरवतीं
तोहरा के खील आ बतासा चढ़उतीं
चन्नन आ चउका पुरइतीं हे माई
हमहूं अंगनवा मे हवन करउतीं।

मईया एकबेर पटरी घुमइतू
तू बिगड़ी बनइतू
त हमहूं दिवाली मनइतीं।


हरीन्द्र हिमकर
रक्सौल

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