मारीशस आ भोजपुरी

भोजपुरी दुनिया में एगो फैशन बा कहे कि सात समु्न्दर पार गइल गिरमिटीहा मजदूरन के परिवार से बसल मारीशस मे आजुले भोजपुरी भाषा, संस्कार, आ संस्कृति जिन्दा बा. ई बाति कहि के हमनी का अपना आप के तसल्ली दिहिला कि चलऽ कहीं ना कहीं भोजपुरी जिन्दा त बिया ! बाकिर जब एह बात के असल विश्लेषण करे बईठल जाव त पता चल जाई कि भोजपुरी के मौजूदा हाल का बा आ एकर भविष्य का बा. हमनी जइसन कुछ लोग अपना भाषामोह का चलते काल्पनिक दुनिया में जी रहल बा जबकि नयकी पीढ़ी तेजी से भोजपुरी से बिलग होत जात बा.
अपने देश में महुआ चैनल कहेला त अपना के भोजपुरी के चैनल बाकिर ओह पर भौजपुरी के का हाल बा कहियो दू घंटा चैनल चला के देख लीं. के बनी करोड़पति में जब देखनी कि भोजपुरी से कमाये खाये वाला लोग के तरे भोजपुरी से अलगा हो के हिन्दी में बतियावत बा. शो के एंकर चूंकि खालिस भोजपुरी ना बोल सकसु से ऊ अधिकतर डायलाग हिन्दी में मारेले आ बीच बीच में कुछ रटल रटावल भोजपुरी वाक्य छींटत रहेलन. रविकिशन, निरहुआ, मनोज तिवारी जइसन लोग अगर सार्वजनिक कार्यक्रम में, खासकर जब ऊ भोजपुरी में होखल बतावल जात होखे आ भोजपुरी के चैनल होखे के दावा करे वाला चैनल पर देखावल जात होखे, अगर हिन्दी में बोकाव त का कहल जाई ! इहे नू कि भोजपुरियन के बुड़बक बनाके आपन रोटी सेंकल जा रहल बा.

खैर बात बहकि गइल जवन अइसनका मौका पर अक्सर हो जाला. बाति चलत रहुवे मारीशस के. आईं ओही पर लवटल जाव. काहे कि मारीशस के लघु भारत कहल जाला आ मारीशस आ भारत में बेसी के अन्तर नइखे. अन्तर बा त हमनी किहाँ अंग्रेजन के गुलामी के असर जिन्दा बा त ओहिजा फ्रांस के. हमनी किहाँ अंगरेजी फेंटल शब्दन के बहुतायत बा त मारीशस में फ्रेंच के. ओहिजा के मूल भाषा क्रिओल में फ्रेंच, डच, चीनी,हिन्दी, भोजपुरी सभकर थोड़बहुत प्रभाव देखे के मिल सकेला बाकिर क्रिओल के भोजपुरी से सौतिया डाह जग जाहिर बा. त मारीशस में हालही में टीनेजर रिसर्च अनलिमिटेड का तरफ से करावल एगो सर्वे के निष्कर्ष बतावत बा कि मारीशस में करीब एक लाख बासठ हजार टीनेजर भा नवही बाड़न. टीनेजर ओह उमिर के लोग के कहल जाला जवना में टीन लागल होला. थर्टीन, फोर्टीन, फि्फ्टीन होत नाइन्टीन ले के बीच के उमिर के नवही टीन कहाले. त एह टीन के सामाजिक महत्व बहुत बा काहे कि ई देश के भावी पीढ़ी ह आ कुल आबादी के आठवाँ हिस्सा. एह टीनेजर के सर्वे में देखल गइल कि भोजपुरी तेजी से आपन जगहा छोड़ले जात बिया आ घर का भितरो क्रिओल भा अंगरेजी के दखल तेजी से बढ़ रहल बा. करीब ९८ फीसदी नवही अपना घर में क्रिओल बोलेले जबकि भोजपुरी बोलेवालन के संख्या पाँचे फीसदी बा. बिखरत पारिवारिक मूल्य, अंतरसामुदायिक शादी बिआह का चलते हो सकेला कि बाप के भाषा कुछ अउर होखे, माई के कुछ अउर. आ एह परिवारन में क्रिओल भा अंगरेजी के इस्तेमाल बेसी सहज लागत होखे.

कारण भा ओकरा के समुझावल जवना तरह से कइल जाव, सच्चाई इहे बा कि भोजपुरी के महत्व दिन पर दिन घटल जात बा. हमनी के दिन पर दिन भोजपुरी से बिलग होखल जात बानी जा. जरुरत बा कि भोजपुरी के हित चिन्ता करे वाला लोग एहपर विचार करो, रास्ता निकालो कि भोजपुरी के जियतार कइसे बनवले राखल जाव आ एकरा के रोजी रोटी के भाषा कइसे बनावल जाव. जबले भोजपुरी के रोजी रोजगार के भाषा ना बनावल जा सके तबले एकरा भविष्य पर बदरी छवले रही.

भोजपुरी के संवैधानिक मान्यता दिआवे से बेसी जरुरत भोजपुरी में अधिका से अधिका साहित्य रचना के, दोसरा भाषा से ज्ञान विज्ञान के किताबन के भोजपुरी अनुवाद कइला के, भोजपुरी में हर तरह के साहित्य उपलब्ध करवला के बा. कतना बेर एकही बात दोहराईं.भोजपुरी के प्रकाशन कमाई करे के के कहो आपन खरचा तक ना निकाल पाव सँ. अइसना में कवनो प्रकाशन पूरा दुनिया में पसरल भोजपुरियन के अपना दायरा में कइसे ले आवे. इंटरनेट एगो माध्यम हो सकेला जवना के तेजी से विस्तारो हो रहल बा आ रोजे नया नया लोग एकरा से जुड़ल जा रहल बा. एही सोच के ध्यान में राखत अँजोरिया अपना शुरूआते से भोजपुरी साहित्य के निशु्ल्क वितरण में लागल बिया. पहिला बेर भोजपुरी के कवनो किताब अँजोरिये पर पूरा के पूरा निकलल, पहिला बेर अँजोरिये पर कवनो पत्रिका पूरा के पूरा पेश कइल गइल. दुख के बात इहे बा कि ओकरा बाद कवनो नया पत्रिका भा प्रकाशक एह मुफ्त सुविधा के फायदा उठावे ना अइलन. अंजोरिया पर कई गो किताब पूरा के पूरा उपल्बध बा, एक से बढ़ के एक प्रतिनिधि रचना मौजूद बा बाकिर दुख बा त एह बाति के कि अंजोरिया पर आवे वाला पाठकन के एगो बड़हन हिस्सा बस फिलिम वाला पन्ना तक मतलब राखेला. कहियो नइखी देखले पढ़ले कि कवनो साहित्यिक रचना पर सही आ विस्तार से चरचा भइल होखो.

रउरे सही सही बताईं कि अँजोरिया पर के कतना रचना, कतना साहित्य रउरा पढ़ले बानी ?

बात जहाँ से शूरू भइल ओकर संदर्भ ला डिफाई मीडिया के लेख

8 Comments

  1. चंदन कुमार मिश्र

    मारीशस में भोजपुरी के नौटंकी पर बहुत कुछ जाने के मिलल। हमरा समय कम मिलला के बादो हम अँजोरिया पर आवत रहेनी। शुरु के सारा पत्रिका लगभग पढ़ले बानी। कुछ समय पहिले पुरनका रचननो के देखनी। भोजपुरी जिंदगी पत्रिका अब त पढ़े लायक हो गइल बा बाकिर समय के कमी से पढ़ नइखीं पावत। एही से अभी ले ओपर कवनो टिप्पणी ना कइनी। पढ़ला के बाद क देम।

    साँच त ई बा कि इंटरनेट पर पढ़ला से भोजपुरी चाहे हिन्दी दूनो के कवनो प्रचार ना हो सकेला। हँ फेन एगो शिकाइत बा कि ई कवन जगे से उठा के लिखाता कि भोजपुरी बोलेवाला लोग 20-25 करोड़ बा। हमरा समझ से ई एकदम अतिशयोक्ति बा। 20-25 करोड़ के बात केहू कइले बा पत्रिका। ठीक से ना देख पवनी काहे कि फाइल के वर्ड में बदल के खाली देखले रहनी। अब त नयका डाउनलोड क लेले बानी।

    कलाकार लोग के बाते बेकार बा। हिन्दी आला हिन्दी के भोजपुरी आला भोजपुरी के खाए पर लागल बा। हम सिनेमा आला पन्ना पर एक महीना में एको-दू बेर जानी कि ना एहूमें संदेहे बा।

    मारीशस के साथे अउरो बहुत देश के नाम ले लेके खूब हल्ला होला। आखिर ई सब का ह? हँ, भोजपुरी के डूबे के खतरा त नाहिए बा। बाकिर कुछ सोचे लाएक त बा। हिन्दी बोलला से भोजपुरी के कवनो घाटा त नइखे होत बाकिर जब ले भोजपुरी समझे आला बा आ हमरा भोजपुरी बोले आवेला तब ले हिन्दी के कवनो जरूरते नइखे।
    ई कलाकार लोग आ ई चैनल सब खुलल बा कमाए खातिर। कवनो फाएदा नइखे ए सब से। भोजपुरी के लोग जब कहीं से ए भोजपुरी सिनेमा में लउकबे ना करे त कइसन भोजपुरी? के बनी करोड़पति जइसन बकवास चीज के फायदा का बा। हम त ना ई सब चैनल देखिले ना देख सकीले। रोवला – गावला से होई का?

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    • OP_Singh

      चंदन जी,

      राउर बात कई बेर कड़आ लगला का बावजूद नीक लागेला काहे कि रउरा जवन कहीले तवन अपना अन्तरमन का गहराई से.

      एहीजा रउरा जइसन लोग का बारे में ना कहि के आम भोजपुरिया पाठकन का बारे में कहल गइल बा. हमरा लगे जवन गूगल रिपोर्ट भा दोसरा काउन्टरन से जानकारी मिलेला तवन इहे बा कि बेसी पाठक फिल्म का चलते आवेलन.

      रउरा त ओही पाँत में शामिल बानी जिनका के भाषामोह से जुड़ल कहल गइल बा.

      स्वागत बा रउरा टिप्पणी के.
      राउर,
      ओम

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  2. चंदन कुमार मिश्र

    आदरनीय ओम जी,

    हमरा राउर बात तनिको खराब ना लागल। हम फिल्मी पन्ना पर आवे के बात कवनो गम्भीरता से ना कहले रहनी। आपन बात बता देले रहनी ह। आदत बा तनि कड़ा बोल जाए के, अइसन हो सकेला हमरा में। भाषामोह के बात त हम ना कहेम बाकिर भाषा के साथे जवन अत्याचार लोग कर रहल बा ओपर त खीस बड़बे करेला। पिछला चार दिन से हम एह शोध में लागल बानी कि हमनी के हिन्दी चाहे भोजपुरी में केतना अंग्रेजी शब्द घुस गइल बा जवना खातिर एकदम प्रचलित आ आसान आपन शब्द बा आ सब केहू जानेला, समझेला। त रउरा सुन के आश्चर्य हो ई कि औसत 5000 शब्द अगर एगो पढ़ल-लिखल आदमी बोले त ओमें से 22-2500 शब्द अंग्रेजी के घुस गइल बा तबहूँ कतना लोग हल्ला कर रहल बा कि भाषा पर कवनो खतरा नइखो। अब बताईं ई जान के कइसन लागी? अरविन्द जी भी अंग्रेजी मोह से ग्रस्त बाड़न। lekhakmanch.com/?p=2417 पर देखीं चाहे gyanduttpandey.wordpress.com/2011/07/01/hindi-service-via-jersey-cow/comment-page-1/#comment-23746 पर।

    बाकी सब ठीके बा। आपन आपन बिचार बा लेकिन भोजपुरी आ हिन्दी दूनो खातिर हम सोचेनी आ उम्मेद बा आउरो लोग सोंची।

    राउर,
    चंदन

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  3. चंदन कुमार मिश्र

    अपना भाषामोह में देशमोह में पड़ल त सम्मान के बात बा। एमें हमरा कवनो दिक्कत नइखे। इंटरनेट पर भोजपुरी फिल्मी पन्ना देखेआला लोग से निहोरा बा कि भाषा पर संकट बा, एपर ध्यान दीहीं लोग्। ना त ऊहे हाल होई जवन अंग्रेजन अपना देश पर दोस्त आ ब्यापारी बन के कइलन स्। अन्तर ईहे रही ऊ राजनीतिक साम्राज्य रहे आ अब भाषाई साम्राज्य बा।

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  4. santosh kumar

    संपादक जी
    नमस्कार
    मौरीसस के ई सर्वे से हम ओतना विचलित नइखी. कारन ईहे बा की आजू दुनिया में भोजपुरी क्या सभ भाषा अंग्रेजी के साम्राज्य से जुघ रहल बा.वैसे भी मौरीसस में भोजपुरी क्षेत्र, तमिल आ चाइना के लोग गइल. कबो फ्रेंच आ कबो डच के गुलाम रहल. ओकनी के भाषा कामकाज के भाषा फ्रेंच रहल त स्वाभाविक बा प्रभाव भी रही. अंग्रेजी के वैश्विक प्रभाव बा, रही, आ भारत में अंग्रेजी नइखे… खूब बा. भारत में भी केतना केतना भाषा बा बोली बा ओमे अंग्रेजी के प्रधानता बढल जाता.
    २००९ में, महत्मा गाँधी इंस्टिट्यूट , मोका, मौरीसस में कार्यरत सीनियर लेक्चरर डॉ.राजरानी गोबिन भिखारी ठाकुर के स्मृतिपर्व, जे.ऍन.यु. के प्रांगन में आपन बात रखत ई बात के सूचना देले रहली. ईहे बात येही साल दिल्ली में आइल श्री जगदीश गोवेर्दन जी भी कहले रहीं. डॉ. सरिता बुधू चाहे दीमलाला मोहित जी भा सुचिता रामदीन जी के मानल बा.अभी अभी हम ऍन. जयराम जी के किताब “diversities in the indian dispora ” में हुकुम सिंह जी के आलेख पडले रहीं उ त भाषा के कहो, संस्कृति आ संस्कार, खाना पीना सभ कुछु में बदवाल महसूस करत बड़े. उनका अनुसार ” अब उ “जहाजिभाई” उहे ना रह गईल.
    बाकिर मन के तुराला के जरुरत नइखे. मौरीसस भोजपुरी के नियामक ना तय करेला. मौरीसस के जेतना आबादी से कहीं जादा बिहार के एगो जिला भा उ.प्र. के एगो जनपद के बा जहवा भोजपुरिया के संख्या मौरीसस के कुल आबादी के २० गुना बा. खली हमनी के प. चंपारण में लगभग ४२ लाख से जादे भोजपुरिया रहेले.
    जहा तक भोजपुरी के भासा पर खतरा के सवाल बा त बेबुनियाद बात बा. हेतना कुछ सह के, हिंदी, अंग्रेजी सभ के हवा बेयर बर्दास्त करत आगे बढ़त बा. एमे कोनो संदेह नइखे. अगर भोजपुरिया के संख्या २० करोड़ नईखे त शोध हो रहल बा, विद्वान लोग लागल बाडे एहो पता चल जाई. लेकिन जे भोजपुरिया लाज से, सरम से आ भरम से आपना के भोजपुरी भाषा -भाषी बतावे में लागल बा उ कैसे रुकी…….
    पुन: कहब निराश होखे के जरुरत नइखे……. बगल में नेपाल बा उहाँ भोजपुरी के संविधान में भाषा के रूप में मान्यता के तयारी चालत बा…..
    धन्यवाद
    संतोष पटेल
    एडिटर: भोजपुरी जिंदगी

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  5. डॉ. रामरक्षा मिश्र विमल

    बात गंभीर बा. भाषा ऊहे जिंदा रही जवन बाजार,मनोरंजन आ संपर्क के भाषा बनी. कुछ ठोस काम करेके परी. सोचल आ योजना बनावल दूनो जरूरी बा. नाराबाजी,आत्मप्रशंसा आ निहोरा के ज्यादा असर ना होखे. समय पाके जल्दिए कुछ लिखबि. तब तक ईहे कहबि कि जब तक साँस तब तक आस.

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  6. प्रभाकर पाण्डेय

    छमा करबि महराज, ए लेख के पढ़ले की बाद न हँसे के मन करता न रोवे के…पर इ एकदम सच्चाई बा कि अधिकत्तर कथित भोजपुरिया लोग खाली आपन रोटी सेंक रहल बा…भोजपुरी के हथियार बना के आपन विकास क रहल बा न कि भोजपुरी के।

    रउरी ए वाक्य से हम पूरा तरे सहमत बानी….अउर हमहुँ सुरुवे से इहे कह रहल बानी——

    “भोजपुरी के संवैधानिक मान्यता दिआवे से बेसी जरुरत भोजपुरी में अधिका से अधिका साहित्य रचना के, दोसरा भाषा से ज्ञान विज्ञान के किताबन के भोजपुरी अनुवाद कइला के, भोजपुरी में हर तरह के साहित्य उपलब्ध करवला के बा. कतना बेर एकही बात दोहराईं.” जय हो।।।।

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  7. चंदन कुमार मिश्र

    संतोष जी,

    बेबुनियाद। ईहे शब्द कहले बानी रउरा। बाकिर ईहे बात कह के हिन्दी के जगे अंग्रेजी के शासन स्थापित बा आ ना रही, ई हमार दावा बा। आज ना काल्ह त अंग्रेजी के भारत से छुट्टी लेहीं के पड़ी। भोजपुरी के बात जहाँ तक बा हमरा आपन आँख से देखल त ईहे बा कि अब भोजपुरिया लोग हिन्दी बोलल चाहता। हमरा बिचार से हर गाँव में अब अइसन दू-चार गो घर त बड़ले बा जवन अब हिन्दी बोलल शुरु कर देले बा। ईहो भाषा के समस्या ना ह? आज तक भोजपुरी अपना अकादमिक नौटंकी से आगे ना बढ़ल। लेखक आ कवि अपना पइसा से
    किताब छपवा के अपना दोस्त लोग का बीचे बाँट रहल बा। अइसन कवनो किताब भोजपुरी में नइखे जवना के मांग से प्रकाशक आ लेखक खुश होखो। पिछला सौ साल में कवनो किताब के पाँच गो संस्करण ना निकलल। ईहो स्थिति संतोषजनक बा? हमरा भोजपुरी के एगो बड़ लेखक श्री सूर्यदेव पाठक पराग जी से पाँच बरिस ले पढ़े के मौका मिलल बा। हम देखले बानी कि ओतना बिदवान भइला का बावजूद ऊँहा के कवनो किताब के दोसरका संस्करण के बात सपने बा। 1994 में अभय आनन्द पुरस्कार अछूत उपन्यास पर ऊँहा का मिलल रहे। कम से कम 20-25 गो प्रकाशित किताब का साथे भोजपुरी के महान लोग में ‘पराग के रचना संसार’ नाम से लेखक पर केंफ़्रित किताब सामने आइल। 1978 में आइल ऊँहा के ‘श्रीहीरोचरितमानस’ किताब भोजपुरी के अद्भुत हास्यव्यंग्य किताब बा।

    कवनो बाहरी बिषय जइसे इतिहास, भूगोल, विग़्यान चाहे तकनीक पर भोजपुरी साहित्य भिखारिए बा। ईहो भाषा के अच्छा पक्ष बा? त का खाली पचास गो प्रति छपला से भोजपुरी तरक्की कर सकेले ?

    हमरा कुछ साल पहिले अखिल भारतीय भोजपुरी साहित्य सम्मेलन में जाए के मौका मिलल रहे। अपना क्षेत्र आ कुछ आउर मजबूरी के चलते ओतना त ना बाकिर तनि-मनि भोजपुरी से मतलब त बड़ले बा।

    भोजपुरी बोलेआला के संख्या के बात पर एकदम निराधार बात कहल जाला, ईहे हम मानिले। काहे कि बिहार के अधिकम तीन करोड़, नेपाल आ मारीशस आदि सब देश मिला के अधिकतम दू करोड़, आ उत्तरप्रदेश सहित भारत के सब राज्य मिला के दू-तीन करोड़ से अधिक लोग भोजपुरिया बाड़े, ई संदेह के बात बा। चूँकि हम पिछला चार महीना से हिन्दी आ अंग्रेजी बोलेआला पर मेहनत कर रहल बानी त हमरा कुछ अन्दाजा बा एसे हम ई कह सकतानी। रउरा ईमेल पता पर पर एगो फाइल भेजतानी जवन हमरा किताब के एगो अध्याय बा, ओसे बहुत बाते साफ होई, ई उम्मेद बा।

    भोजपुरी चैनल आ रेडियो के बात। का भोजपुरिया लोग में दस प्रतिशत लोग अइसन बा जवन चैनल आदि से कवनो मतलब रखले बा। फिलिम के बात। भोजपुरी फिलिम के भाषा में हम त ईहे मानिले कि हिन्दी में लिख के शब्द बदल के भोजपुरी सिनेमा बन जाला। का भोजपुरी सिनेमा में 5-10 प्रतिशत फिलिम छोड़ के कवनो फिलिम बा जवन नकल से ना बने आ ओमें भोजपुरी क्षेत्र लउकेला? हम त ना कह सकीं। काहे कि जव न देखावल जाला ऊ भोजपुरी क्षेत्र के हइलहीं नइखी। ईहे भोजपुरी के बिकास बा? भोजपुरी संगीत के हाल के बारे में कुछ कहल जरूरी बा?

    अब ई बतावल जाय कि साहित्य, संगीत, कला, विज्ञान से लेके मनोरंजन तक कहाँ भोजपुरी बढ़त लउकता? का खाली जनसंख्या बढ़ला से भोजपुरी के बिकास हो जाता?

    बुरा ना मानेम। जब भोजपुरी पर कवनो संकट नइखे त हमनिओ के भोजपुरी खातिर कुछ सोचलो के काम नइखे(अबहीं करेके सवाल हमरा खातिर नइखे उठत काहे कि हमार उमिर अबहीं 22 साल बा, हम छात्र बानी, पइसा-ओइसा बा ना), ओम जी अँजोरिओ बन्द क दीं। का काम बा एकर? आलोचना आ सही स्थिति सुन के मजाक उड़वला से का हो जाई?
    जब संकट के बात कइल जाला तब लोग मजाक उड़ाके बात के महत्व ना देवे लोग। ई कवनो नाया बात बा, अइसन बात नइखे। आजो अंग्रेजी मोही लोग जवन हिन्दी के बस फास्ट फूड आ टेबुल पर के नास्ता मानता लोग, ओ लोग के नजर में ई सब बकवासे बा।

    हमरा बात के बुरा ना मानल जाव। जादे कहके का फायदा बा, बहस शुरु हो जाई। इसे अब माफ़ी चाहतानी।

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